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पटाखों पर राजनीति के बजाय तार्किक समाधान निकालें

दिल्ली में प्रदूषण

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दिल्ली में दिवाली आते ही वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद बिक्री जारी है, जिससे आस्था, प्रशासन और पर्यावरण के बीच टकराव गहराता जा रहा है।

बीते दशक से दिल्ली में दिवाली के आसपास प्रदूषण की स्थिति खतरनाक हो जाती है और कोर्ट का मानना है कि पटाखों से प्रदूषण और अधिक बढ़ जाता है। लेकिन इस प्रकरण की अहम बात यह है कि पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद बिक्री में कोई कमी नहीं आती, क्योंकि प्रशासन की नाक के नीचे दुकानदार धड़ल्ले से पटाखे बेचते हैं और लोग जमकर खरीदते भी हैं।

बीते 7 अक्तूबर को दिल्ली सरकार ने कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट जाएगी और ग्रीन पटाखों की अनुमति लेगी। वर्ष 2019 से दिल्ली में सभी पटाखों पर बैन है और मुख्यमंत्री ने जनभावना को देखते हुए सीमित ग्रीन पटाखे चलाने की इजाजत मांगी थी। दिल्ली सरकार ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट पटाखों से प्रतिबंध हटाता है तो वह ऐसे सभी कदम उठाने को तैयार है, जिनसे निर्देशों का पूरी तरह पालन हो सके।

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पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि अगर पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध हटा लिया जाता है तो हम अदालत के आदेश के आलोक में आवश्यक कदम उठाने के लिए तुरंत एक बैठक करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि आदेश का पालन हो। सरकार जिन पटाखों की पैरवी कर रही है, उनके विषय में यह बताया जाता है कि ग्रीन पटाखों से सामान्य पटाखों की तुलना में 30 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है। लेकिन कई वर्षों से पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार न तो इसके लिए कोई ठोस काम कर पाई थी और न ही जागरूकता फैला पाई थी। इस बार बारी भारतीय जनता पार्टी की है, जिसे इस कसौटी पर खरा उतरना बाकी है।

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आम आदमी पार्टी के समय में बीजेपी के कई बड़े नेता इस मामले को लेकर केजरीवाल को घेरते थे और कहते थे कि पटाखों पर बैन लगाना हिंदुत्व पर प्रहार है, हालांकि आदेश हर बार कोर्ट का ही होता था और अब भी कोर्ट का ही है। अब यह देखना बाकी है कि दिल्ली सरकार कितनी सक्रियता दिखाती है और किस तरह का समाधान निकालती है।

दरअसल, हम प्रदूषण को लेकर आज तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि इसकी असली वजह क्या है। इस मामले को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। कुछ कहते हैं कि सर्दियों के मौसम में प्रदूषण अपने आप बढ़ जाता है। बीते लगभग दो दशकों में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यह रहा कि दिल्ली से सटे हर कोने में जितनी हरियाली थी, वहां अब बड़ी-बड़ी इमारतें बन चुकी हैं। जैसे गाजियाबाद से सटे राज नगर में लाखों फ्लैट बन चुके हैं। दूसरी ओर गुरुग्राम में जितनी हरियाली थी, आज वहां एक-एक इंच जमीन किसानों ने बेच दी और वहां भी लाखों फ्लैट बन चुके हैं। बल्कि एशिया के सबसे महंगे फ्लैट वहां बिकने लगे हैं।

वहीं तीसरी ओर लोनी बॉर्डर और चौथी ओर फरीदाबाद में भी यही स्थिति है। इसके अलावा विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलाना भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण है, क्योंकि इससे हवा में हानिकारक गैसें और कण फैलते हैं, जैसे मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर। यह धुंध का निर्माण करता है, जो शहर की वायु गुणवत्ता को खराब करता है। पराली जलाने के कारण सर्दियों के महीनों में प्रदूषण का स्तर विशेष रूप से गंभीर हो जाता है, क्योंकि धीमी हवाएं इन प्रदूषकों को शहर के ऊपर फंसा देती हैं।

दिल्ली-एनसीआर में हर रोज सैकड़ों नए वाहन खरीदे जाते हैं, अर्थात राजधानी में अपनी क्षमता से अधिक वाहन हो चुके हैं, जो प्रदूषण बढ़ने का एक और बड़ा कारण है। पटाखों को लेकर कोर्ट की सबसे जटिल समस्या यह है कि दीपावली सर्दी के मौसम में आती है, जब दिल्ली में प्रदूषण पहले से ही बहुत अधिक होता है। कोर्ट का मानना है कि पटाखे जलाने से प्रदूषण और भी बढ़ जाता है। लेकिन प्रतिबंध के बावजूद पटाखों की बिक्री और खरीद में कोई कमी देखने को नहीं मिलती।

पटाखों पर प्रतिबंध को कुछ लोग अपनी आस्था पर चोट मानते हैं, जिसको लेकर कई हिंदूवादी संगठनों और नेताओं के बयान हर वर्ष देखने और सुनने को मिलते हैं। यह बात तय है कि दिवाली हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है और इस पर्व पर पटाखे न जलाकर त्योहार अधूरा लगता है। जब से सनातन परंपरा का उदय हुआ है, तब से यह प्रथा चली आ रही है, और उसे निभाए बिना त्योहार पूरा नहीं लगता।

सवाल यही है कि दिल्ली में इसका समाधान कैसे संभव है, क्योंकि हर वर्ष यही स्थिति दोहराई जाती है, जो त्योहार के उत्साही लोगों में कुंठा पैदा कर रही है। कोर्ट और जनता के बीच फंसा यह भावनात्मक घटनाक्रम अब निराशा का रूप ले चुका है। इसमें एक सवाल यह उठता है कि आखिर राजधानी में इतना पटाखा आ कहां से रहा है? पूर्ण रूप से प्रतिबंध होने के बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में पटाखे किस तरह आ रहे हैं? स्थिति स्पष्ट है कि तंत्र की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं है। तो फिर यह ड्रामा क्यों किया जा रहा है?

बहरहाल, कोर्ट और सरकार को इसका कोई स्थायी समाधान निकालना चाहिए, जिससे लोगों के मन की कुंठा भी दूर हो और त्योहार भी मनाया जा सके।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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