निरंकार सिंह
हर साल जून के पहले रविवार को ‘नेशनल कैंसर सरवाइवर डे’ अर्थात राष्ट्रीय कैंसर विजेता दिवस मनाया जाता है। यह दिवस अमेरिका में विशेष रूप से मनाया जाता है। लेकिन अब शेष सारी दुनिया में मनाया जाने लगा है। यह उन लोगों का सम्मेलन है, जो कैंसर के इलाज के बाद जीवित बच गये हैं। इससे उन लोगों को प्रेरणा मिलती है, जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं। भारत में भी जिन रोगियों ने कैंसर को पराजित करके अपना जीवन बचाया है, उनमें से कुछ लोगाें ने कोलकाता में एक संस्था बनायी है। यह संस्था कैंसर रोगियों के बीच जाकर जीवन के प्रति उत्साह को बढ़ाती है ताकि वे हिम्मत के साथ कैंसर का मुकाबला कर अपना जीवन बचा सकें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हृदय रोग के बाद अब कैंसर दुनिया भर में हो रही मौतों का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। भारत में नेशनल कैंसर रजिस्ट्री के ताजा आंकड़े बताते हैं कि हर साल यहां कैंसर के 14.5 लाख नये मामले आ रहे हैं, इस समय 30 लाख से ज्यादा लोग कैंसर से ग्रस्त हैं और सालाना 6,80,000 से ज्यादा मौतें कैंसर से हो रही हैं। शुरुआती चरण में पता लगने पर जान बचायी जा सकती है। लेकिन सिर्फ 12.5 फीसदी भारतीय ऐसे हैं जो शुरुआत में ही चिकित्सा का सहारा ले पाते हैं। इसलिए जन सामान्य में जागरूकता फैलाकर भी कैंसर से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है। यह संस्था यही काम कर रही है ताकि कैंसर रोगियों की जान बचायी जा सके।
इसके लिए उन्होंने बाकायदा कौंसिल फार कैंसर केयर (सीसीसी) नामक संस्था बनायी है। इन लोगों का कहना है कि कैंसर पहले वृद्धावस्था का रोग माना जाता था और कभी-कभार कहीं सुनने में आता था कि फलां आदमी को कैंसर हो गया है। आज यह महामारी की तरह तेजी से फैलता जा रहा है। उम्र का भी कोई बंधन नहीं रह गया, छोटे बच्चे से लेकर युवा, अधेड़, वृद्ध सब इसके शिकार हो रहे हैं। कैंसर के कष्टों और कैंसर से हो रही मौतों ने ऐसा भयपूर्ण वातावरण बना दिया है कि कैंसर की घोषणा होते ही कैंसर का रोगी यह मान लेता है कि अब तो मृत्यु निश्चित है। लेकिन समय से ली गयी प्रचलित चिकित्सा की सेवाओं तथा वैकल्पिक चिकित्सा के प्रयासों ने इस धारणा को बदलने की पृष्ठभूमि रख दी है। अब कैंसर के हारने का और इंसान के जीतने का सिलसिला शुरू हो गया है। अब यह धारणा भी बलवती हुई है कि प्राकृतिक चिकित्सा से संयमित जीवन व योग आदि से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास किया जा सकता है। यह संस्था कैंसर की चिकित्सा में कार्यरत प्रचलित चिकित्सा व्यवस्था के साथ-साथ वैकल्पिक चिकित्सा सेवाओं की संभावनाओं के विषय में कैंसर रोगियों को अवगत कराने का अभियान चला रही है जिसके द्वारा कैंसर को परास्त किया जा सकता है।
कौंसिल फाॅर कैंसर केयर (सीसीसी) ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ प्रमुख बिंदु निर्धारित किये हैं। वह कैंसर रोगियों में व्याप्त निराशा को दूर करने के साथ-साथ कैंसर के प्रति फैली भ्रांतियों को दूर करने का अभियान चला रही है। कैंसर के कारणों और बचाव के लिए जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ यह कमजोर वर्गों की सहायता के लिए भी प्रयासरत है।
जब किसी को पता चलता है कि उसे कैंसर हो गया है तो उसकी प्रतिक्रिया यही होती है कि अब वह ठीक नहीं होगा और उसकी मृत्यु निश्चित है। यह संस्था तमाम ऐसे उपाय कर रही है जिसमें कैंसर रोगी और उसके परिजनों में जीवन के प्रति आशा बनी रहे और अवसाद में जाने से उन्हें बचाया जा सके। सीसीसी कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों के उस विश्वास को कि कैंसर का मतलब मृत्यु है, उनके दिल से निकालने के लिए कैंसर के विजेताओं को उदाहरण रूप में उनके सामने ला रही है जिससे उनके मन में भी यह विश्वास जगे कि हम भी इनकी तरह कैंसर पर विजय पा सकते हैं। कैंसर के जिन कारणों को कैंसर का उत्तरदायी माना जा रहा है, उनसे जन-जन को अवगत कराकर सावधान और सजग रखने की दिशा में यह संस्था अभियान चला
रही है।
सीसीसी जन-जन तक यह संदेश देने का प्रयास करती है कि कैंसर की संभावना व्यक्त होते ही किस प्रकार समय से जांच और अस्पताली व्यवस्था तक पहुंचकर उपचार शुरू किया जाये। यह संस्था अपने अनुभवी लोगों की सहायता से कैंसर होने के कारणों के प्रति लोगों को जानकारी प्रदान करती है और यह भी बताती है कि हम कैसे कैंसर से बच सकते हैं।
कौंसिल फार कैंसर केयर का कहना है कि कैंसर के मोर्चे पर भारतीय वैज्ञानिक निरंतर शोध-अनुसंधान में रत हैं। डीएस रिसर्च सेंटर कोलकाता के वैज्ञानिकों ने खाद्य पदार्थों की पोषक ऊर्जा से उस औषधि को तैयार करने का दावा किया है। कहा जा रहा है कि कैंसर कोशिकाओं पर लगाम लगाकर उसका उन्मूलन संभव है। कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय के नैदानिक अनुसंधान केन्द्र (सीआरसी) के निदेशक डा. टीके चटर्जी के अनुसार- ‘पोषक ऊर्जा से तैयार की गई औषधि सर्वपिष्टी के पशुओं पर किये गये परीक्षण के परिणाम उत्साहजनक पाये गये हैं।’ सामान्यत: यह धारणा रही है कि पशुओं के शरीर पर किये गये सफल प्रयोग मानव शरीर के लिये भी नई उम्मीद जगाते हैं।
हमारे देश में लोग अंधविश्वासों और अफवाहों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह कैंसर जैसी बीमारी और इसके उपचार के प्रति भी तरह-तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। सीसीसी कैंसर के विषय में सही जानकारी प्रदान कर कैंसर को लेकर आम जन में फैली तरह-तरह की भ्रान्तियों को दूर करने का अभियान चलाकर कैंसर के भय को कम करने का प्रयास कर रही है। विडंबना यह है कि दूसरी तरफ कैंसर रोगियों की एक बहुत बड़ी संख्या चिकित्सा की महंगी व्यवस्था के चलते चिकित्सकीय सेवाओं से वंचित रह जाती है। सीसीसी का प्रयास उन संभावनाओं की तलाश करना है जिससे हर कैंसर रोगी को चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हो सकें। यह संस्था सरकारी व गैर सरकारी चिकित्सा संस्थाओं, समाज सेवी संस्थाओं, बुद्धिजीवी वर्ग- सबको साथ लेकर कैंसर के विरुद्ध संघर्ष हेतु अभियान चलाने का प्रयास कर रही है। संस्था ऐसे अवसरों और संसाधनों का पता लगाकर गरीब रोगियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास करती है।
-लेखक हिन्दी विश्वकोष के पूर्व सहायक संपादक हैं।