देश में एक बार फिर दीवाली हो गयी जी! कितने सौभाग्यशाली हैं हम कि दीवाली अब साल में बस एक ही बार नहीं आती। कई बार आने लगी है। पहले त्योहार साल में एक बार आता था और बीमारियां कई बार आती थी-सर्दी-जुकाम, बुखार वगैरह। मुश्किलें भी बार-बार आती थीं। लेकिन अब अच्छी बात यह है कि त्योहार भी साल में कई बार आने लगे हैं। इतनी बार तो साल में बारिश भी नहीं होती। अब देखिए दो-एक महीने पहले ही तो हमने दीवाली मनायी थी कोरोना को भगाने के लिए। दीये जलाए थे, मोमबत्तियां जलाई थी, शंख फूंके थे और पटाखे फोड़े थे। कोरोना तो नहीं भागा, उसे शायद अपना यह स्वागत पसंद आ गया था। बताओ किसी और देश में ऐसा स्वागत हुआ उसका।
पर चलो इसी बहाने हमने दीवाली जरूर मना ली थी। और अब फिर मना ली। श्रीरामजी का मंदिर बन रहा है न, इसलिए। दीवाली तो श्रीरामजी का ही त्योहार है। इसलिए जरूरी तो नहीं है कि उनके अयोध्या आगमन पर ही दीवाली मनायी जाए, उनके मंदिर के भूमि पूजन पर भी दीवाली मनायी जा सकती है। इस तरह के आगे और भी कई मौके आएंगे दीवाली मनाने के। हो सकता है मंदिर की नींव खुदाई पर दीवाली मनाने का आह्वान हो जाए और फिर उद्घाटन पर।
सरकार भी तो कभी अपने सौ दिन पूरे होने का जश्न मनाती है और कभी साल पूरे होने का। तो जैसे सरकार का जश्न कई बार मनाया जा सकता है, वैसे ही दीवाली भी कई बार मनायी जा सकती है। अब क्योंकि दीवाली साल में कई बार मनायी जाने लगी है, इसलिए जरूरी नहीं है कि हर दीवाली से पहले दशहरा आए ही, रामलीला हो ही। रावण दहन एक दीवाली में हो जाए काफी है। हर दीवाली में रावण दहन कतई जरूरी नहीं है। दीवाली की खास बात यह है कि यह दीवाले में भी मनायी जा सकती है। जैसे होली की खासियत है कि उसे खाली जेब भी मनाया जा सकता है। राजनीति में तो कीचड़ की होली भी खूब खेली जाती है। कुर्ताफाड़ होली भी खेली जा सकती है। इसी तरह दीवाले में भी दीवाली मनायी जा सकती है।
अब देखिए न कोरोना की वजह से लोगों की नौकरियां चली गयीं। काम-धंधे बंद हो गए। बाजार बंद हो गया। तमाम आर्थिक गतिविधियां ठप हैं। मजदूर शहर छोड़कर गांव गए, पर वहां भी काम तो कोई नहीं है। जेब में धेली-दुवन्नी कुछ नहीं। फिर भी हमने दीवाली तो मना ही ली। अब रामजी कृपा करेंगे कि अगली दीवाली हम खूब धूमधाम से मनाएं और रामजी के साथ ही साथ लक्ष्मीजी की भी कृपा हो।