समय का पंछी उदासी को कुतरने की कोशिश में लगा हुआ था। उदास आंखों में दुनिया-जहां की नदियां लिए भटकती देह को बस एक हौसले ने थाम रखा था कि कोई है जो आयेगा, चुपचाप बैठेगा एकदम करीब। जिसके कांधे पर सर रख के बरस लेंगी कुछ बदलियां और सांसों को तनिक सुख मिलेगा। बस तिनका भर उम्मीद हो तो जीवन आसान होने लगता है और फिर हुआ यूं कि एक रोज शहर भोपाल चला आया शहर देहरादून से मिलने। भोपाल की झील का देहरादून की पहाड़ियों, नदियों और रास्तों से मुलाकात का मौसम आया। आम और लीची के कच्चे फलों की खुशबू पूरी फिजा में इस कदर बिखरी हुई थी कि कोई कमजर्फ ही होगा जो इस खुशबू से बावरा न हो उठे। इस खुशबू में जब भोपाल शहर के रास्तों की, झील की वहां के दोस्तों की खुशबू शामिल हुई तो देहरादून के मिजाज़ में जरा गुरूर की रंगत भी घुल गयी।
मेरे लिए भोपाल का अर्थ श्रुति ही है। मैं यूं भी शहरों को वहां रहने वाले लोगों के नाम से जानना पसंद करती हूं। ये लड़की मोहब्बत में पगी हुई है। कबसे कहा था इसने कि जब आप बेटू को छोड़कर आएंगी न तब उदास होंगी लेकिन मैं होने नहीं दूंगी और मैं आ जाऊंगी। और वो आ गयी। घर का कोना-कोना उसकी ख़ुशबू में नहाया हुआ है। उसका होना भर उदासियों को दूर करने को काफी है। कहां कुछ कहना सुनना होता है। मुलाकात में नेह से डबडब करती रहती हैं आखें। ज़िन्दगी क्या है सिवाय मोहब्बत के। दोस्त जब मोहब्बत की बारिशें लेकर आयें और आपको तर-ब-तर कर दें तो कहने सुनने को क्या रह जाता है।
हम नदियों में पैर डाले नीले आसमान से झरती खुशबू में डूबे रहते हैं। मेरे कांधे पर उसका सर होता है। लगता है दुनिया सिमटकर इन हथेलियों में आ गयी है। शहर मुस्कुरा रहा है। मेरी आंखें नम हैं। देवयानी कहती है, ‘तुम्हारा कुछ समझ नहीं आता, खुश होती हो तो भी रोती हो, दुखी होती हो तो भी।’ ज्योति कहती है, ‘तुम्हारा ऐसा होना ही नॉर्मल होना है।’ संज्ञा कहती है, ‘बेटू की चिंता छोड़ दो उसकी मासियां हैं यहां तुम बस खुद को संभालो।’ विभावरी कहती है, ‘आपको अब नए सिरे से ज़िन्दगी को जीना शुरू करना चाहिए।’ सब दोस्त बस एक पुकार की दूरी पर हैं। सबने सब संभाल रखा है। मैं तो एकदम आज़ाद हूं। डबडबाती आंखों में प्रेम ही प्रेम है। आसमान से जैसे कोई ख्वाब बरस रहा है… जीवन कितना सुंदर लगने लगा है।
साभार : प्रतिभा कटियार डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम