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वर्षा ऋतु के जीवनदायी जादू को महसूस कीजिए

अंतर्मन
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वर्षा ऋतु के इन महीनों में सहज उपलब्ध व्यापक ऊर्जा का, अपने भीतर की जीवन ऊर्जा से, हम यदि सही-सही समन्वय बिठाना सीख लें, तो न सिर्फ शारीरिक स्तर के आयाम, अपितु मानसिक और आध्यात्मिक आयामों का भी संवर्धन संभव है।

मनुष्य भौतिक लिप्साओं और आपाधापी की जिंदगी में प्रकृति में हो रहे सूक्ष्म परिवर्तनों को महसूस नहीं करता। साथ ही बदलते मौसम चक्र के हमारे शरीर में पड़ने वाले प्रभावों और बदलावों को भी हम अनदेखा करते हैं। दरअसल, हमारे जीवन में कृत्रिमता के गहरे हस्तक्षेप ने हमें प्रकृति के सुखमय प्रभाव के अहसास से वंचित कर दिया है। वातानुकूलित कमरों में बैठकर हम अहसास ही नहीं करते कि प्रकृति कैसे रूप-रंग बदल रही है।

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अब यदि हम वर्षा ऋतु को ही देखें तो यह हमारे परिवेश ही नहीं हमारे शरीर में भी बदलाव करती है। कभी आपने बारिश के इस मौसम में अपनी एड़ी, तलवे या त्वचा की चमक को महसूस किया है! गर्मी और सर्दी में बहुत हद तक फट चुकी एड़ियां तथा शुष्क हो गई त्वचा, इस मौसम में पुनः खिल जाती है। यह, वह समय होता है जब ‘जीवन’ तेजी से अभिव्यक्त हो रहा होता है। विडंबना यह है कि हम इस बदलाव की अनदेखी करके इस सुख से वंचित हो जाते हैं।

यह मौसम, जीवन को स्फूर्णा देता है। जंगल, जमीन और प्रकृति में नवजीवन का संचार होता दिखाई देता है। इन महीनों के वातावरण में जीवनदाई शक्ति अपने चरमोत्कर्ष में उपलब्ध होती है। हवा की नमी, धूप-छांव का समन्वय, ऊर्जाओं की व्यापकता आदि तमाम जीवनदाई घटक, सहजता से क्रियान्वित हो जाते हैं। इस कालखंड में, प्रकृति में बह रहा जीवन सक्रिय होकर प्रचुरता से अपनी ताकत का प्रदर्शन करता है।

यह मौसम हमारे भीतर बह रही जीवनीशक्ति को संजोने और उसे रिचार्ज करने का है। प्रकृति और इस वातावरण को जी भर कर पीने से यह कार्य आसानी से संभव हो जाता है। इस वक्त प्रचुरता में सुलभ जीवनदाई ऊर्जा का उपयोग करके, शरीर अपने भीतर के ह्रास की मरम्मत स्वतः कर लेता है।

सुबह-सुबह, बादलों से आच्छादित आकाश के नीचे मेैट बिछाकर लेट जाइए। आधे घंटे जी भर कर सांस लीजिए। लंबी सांस! लीजिए, कुछ रोकिए और छोड़िए। वातावरण की नमी को पीजिए। सांस के साथ उस नमी को भीतर महसूस कीजिए। रीढ़ की हड्डी में आती-जाती सांस का अनुभव कीजिए। उस गहरी सांस के साथ रीढ़ की हड्डी के फूलने और सिकुड़ने पर कुछ केंद्रित हो जाइए। शरीर को जितना हो सके स्ट्रेच कीजिए। आकाश को छूने के लिए स्वयं को फैलाइए। हड्डियों पर थोड़ा जोर डालिए। उन केंद्रों पर ध्यान लगाइए, जहां अक्सर दर्द रहता है। मसलन, घुटने, कमर आदि। इस मौसम में किया गया यह प्रयोग जीवन को निश्चित रूप से स्फूर्णा देगा। बस, विचारों के मध्य यांत्रिक रूप से नहीं करना है। करने में केंद्रित होना है।

निस्संदेह, इन महीनों में सहज उपलब्ध व्यापक ऊर्जा का, अपने भीतर की जीवन ऊर्जा से, मनुष्य यदि सही सही समन्वय बिठाना सीख ले, तो न सिर्फ शारीरिक स्तर के आयाम, अपितु मानसिक और आध्यात्मिक आयामों का भी संवर्धन संभव है। इस संवर्धन से प्राण शक्ति के घनत्व का ऐसा पुनर्भरण हो सकता है, जो न सिर्फ शरीर में व्याप्त गंभीर रोगों की संभावना को क्षीण करने की क्षमता प्रदान कर सकता है, बल्कि जीवन चलाने वाले मुख्य अंगों का लंबे समय तक ह्रास होने से रोक सकता है। इस विधा से व्यक्ति अपने भीतर की कार्यप्रणाली को इतना दुरुस्त रख सकता है कि वह लंबे समय तक रोगमुक्त, शक्ति संपन्न और दीर्घायु को प्राप्त हो सकता है। इन तकनीकों के जानकार, कई ऋषि-मुनियों के किस्से प्रचलित हैं, जो दो-पांच सौ वर्षों तक युवावान रहते थे।

जीवन में सफलता की एक ही तकनीक है। समन्वय की तकनीक। और, इसका रास्ता बाहर नहीं, भीतर ही है। जिसे हम महसूस करने का प्रयास ही नहीं करते। पहले स्वयं से योग स्थापित करके अपने शरीर के भीतर की हलचल को जानना होगा। जानना होगा उन स्पंदनों और संवेगों को जिनके इशारों पर ध्यान देना, कभी हमारी प्राथमिकता में रहा ही नहीं! एक बार स्वयं से स्वयं का यह संबंध स्थापित हो जाए तो होश जागेगा। यदि हम होशपूर्ण होंगे, तब बाहर के उन आयामों से भी साक्षात्कार हो सकेगा, जिनसे जीवन को सुदृढ़ किया जा सकता है। देखकर जानने, जान कर अनुभव करने और अनुभव से स्वयं पर उसके उपयोग कर पाने के रास्ते भी खुलेंगे। सफर लंबा हो सकता है, लेकिन चमत्कारी प्रभाव और मनुष्य जीवन की सार्थकता सिद्ध करने वाला होगा। इन प्रयोगों से होने वाले सफल प्रभाव, परिपूर्णता (फुलफिलमेंट) का अहसास कराने वाले होंगे। जो हमारे व्यक्तित्व में गुणात्मक संवर्धन करेंगे।

लेकिन इसके लिये हमारे जीवन व्यवहार की उन बाधाओं की अनदेखी करें, जो हमारी एकाग्रता भंग करती हैं। ध्यानाकर्षण की गैर-जरूरी चीजों और गैरवाजिब विषयों से स्वयं को हटाए बिना यह संभव नहीं होगा। बहुत बड़े संकल्प के साथ प्राथमिकता तय करने से ही उन मंजिलों तक पहुंच पाएंगे, जिनके लिए मानव जीवन मिला है। सही मायनों में जीवन के वास्तविक उद्देश्यों को समझने की गंभीर पहल करते ही नहीं हैं। यदि हम ऐसा करते हैं तो निरोग को उपलब्ध होकर सुखी जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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