पास के बाजार में ज्वैलरी के एक शो रूम पर डाका पड़ गया। दो डाकू मोटरसाइकिल पर आये, रिवाल्वर दिखाई और लूटकर चले गये। फिर टीवी चैनल आये, दे दनादन शो रूम मालिक का इंटरव्यू, ऐसे लूटा, वैसे लूटा, कैसे लूटा। मैंने देखा दिनभर तो शो रूम के मालिक का इंटरव्यू हुआ, फिर अगले शो रूम के मालिक की पत्नी भी टीवी चैनल पर थी, बताते हुए कि हम कैसे लुट गये। पूरे शहर में उस टीवी ज्वैलर का प्रचार हो गया। इतना प्रचार तो लाखों खर्च करने पर भी न मिलता।
अगले दिन शो रूम पर जमकर भीड़ आयी, यही चर्चा थी कि देखो यही शो रूम है जो कल टीवी पर दिखा था और यही कुमार साहब हैं, जो कल टीवी पर आये थे। मिसेज कुमार भी बीच-बीच में बताती जाती थीं, जी मैं भी कल टीवी पर आयी थी। कुमार दंपति शहर में सेलिब्रिटी टाइप हो गये, एक लूट में।
मेरे परिचय के कुछ ज्वैलरों ने मुझसे निवेदन किया कि अगर आपके परिचय में कुछ लुटेरे हों, तो एक लूट हमारे शो रूम पर भी करवा दीजिये। लोगों को ऐसा लगता है कि लेखक व पत्रकार लुटेरों, डाकुओं, नेताओं के साथ उठते-बैठते हैं तो शायद कुछ करवा दें। मैंने कहा क्या बात कर रहे हैं, लूट को निमंत्रण दे रहे हैं, उन्होंने कहा जी बिलकुल इससे सस्ती पब्लिसिटी नहीं मिल सकती।
चर्चा बहुत जरूरी है। टीवी पर आ जायें, चाहे जिस वजह से आ जायें। टीवी पर आ जायें, सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे वीडियो डाल दें कि सब चर्चा करें, यह भी आजकल बहुत हो रहा है। भद्र महिलाएं ऐसे-ऐसे नृत्य कर रही हैं, और ऐसे वस्त्रों में कर रही हैं कि अचरज होता है कि इन्हें देखने वाले किस कदर लफंडर होंगे। महिलाएं लफंडर नहीं थीं, पर लाइक, चर्चा की चाह ने उन्हें डीम्ड लफंडर, यानी लफंडर के समकक्ष बना दिया है। चर्चा की भूख क्या-क्या करवा देती है। एक प्राचीन संस्कृत श्लोक के अनुसार कामातुर को भय और लज्जा नहीं होती। ऐसे ही चर्चातुर को भय और लज्जा नहीं होती।
एक प्रोफेसर ने मुझसे सलाह मांगी कि चर्चा में कैसे आऊं। मैंने कहा कि वस्त्रमुक्त होकर इंडिया गेट में पढ़ाना शुरू कर दो। एक ही दिन में चर्चा हो जायेगी। प्रोफेसर निकल लिये इंडिया गेट की तरफ। टीवी वालों को रोज कुछ खबर चाहिए। किसी सुंदरी की धनिया की दुकान पर आधा किलो धनिया चोरी हो जाये तो इसे टीवी चैनल राष्ट्रीय खबर बना देंगे, अगर धनिया सुंदरी फोटोजेनिक हुई, तो फिर यह खबर कई दिनों तक चलेगी। टीवी पर आना परम पुण्य वाला काम है, हरेक को करना है।