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साहूकारों के शिकंजे से मुक्त नहीं हुए किसान

सरल बैंकिंग सुविधा मिले

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छोटे किसानों को जब आय की अस्थिरता, मौसमी जोखिमों और सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता की कमी का सामना करना पड़ता है, तब वे मजबूरीवश ऊंची ब्याज दरों के बावजूद साहूकारों से ऋण लेने को विवश हो जाते हैं।

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की ग्रामीण धारणा सर्वेक्षण रिपोर्ट 2025 के अनुसार, ग्रामीण भारत में ऋण प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला है। पहली बात, अब 54.5 प्रतिशत ग्रामीण परिवार केवल औपचारिक स्रोतों—क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियां, सूक्ष्म वित्त संस्थान से ऋण ले रहे हैं, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। इससे ग्रामीण आर्थिक शोषण से बच रहे हैं क्योंकि इन ऋणों पर ब्याज दरें नियंत्रित होती हैं। दूसरी ओर, अभी भी 22 प्रतिशत परिवार अनौपचारिक स्रोतों—साहूकार, दोस्त, परिवार—पर निर्भर हैं, जहां ब्याज दरें 17-18 प्रतिशत से अधिक हैं। इसके अतिरिक्त, 23.5 प्रतिशत ग्रामीण परिवार दोनों प्रकार के स्रोतों से ऋण ले रहे हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति जटिल हो जाती है।

दरअसल, गांवों में किसानों को औपचारिक ऋण से जोड़ने के मद्देनजर सरकार द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, सहकारी समितियों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था आदि प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। इससे ग्रामीण लोगों की क्रयशक्ति में वृद्धि, डिजिटल उपयोग में वृद्धि, खपत में वृद्धि, ग्रामीणों की बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच, गांवों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार, ग्रामीण भारत के लोगों की पूरक आय में वृद्धि जैसी सकारात्मक पृष्ठभूमि निर्मित हुई है।

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वर्ष 2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब तक 9.7 करोड़ से अधिक सीमांत किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से 20 किस्तों में कुल 3.9 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जा चुकी है, जिससे उन्हें खेती-किसानी से जुड़े खर्चों में महत्वपूर्ण राहत मिली है। वहीं पीएम स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीणों को उनकी जमीन का कानूनी हक देकर उनके आर्थिक सशक्तीकरण का नया अध्याय लिखा जा रहा है। इन सब प्रयासों से ग्रामीण लोगों की खर्च के साथ बचत बढ़ रही है।

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चिंताजनक तथ्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी लगभग 22 फीसदी लोग ऋण के लिए साहूकारों और अन्य अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं। विशेष रूप से छोटे किसानों को जब आय की अस्थिरता, मौसमी जोखिमों और सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता की कमी का सामना करना पड़ता है, तब वे मजबूरीवश ऊंची ब्याज दरों के बावजूद साहूकारों से ऋण लेने को विवश हो जाते हैं। कई बार सामाजिक और जनसांख्यिकीय कारक भी साहूकारों से ऋण लेने के मद्देनजर असर डालते हैं। वैसे छोटे किसान औपचारिक स्रोतों से ऋण लेना तो चाहते हैं, लेकिन कई बार दस्तावेज़ की कमी, गारंटीदाता की कमी एवं अन्य शर्तें बाधा डालती हुई दिखाई देती हैं।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वेक्षण के अनुसार लगभग पचास प्रतिशत कृषि परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक किसानों को ऋण के लिए संस्थागत बैंकों के साथ-साथ गैर-संस्थागत स्रोतों जैसे साहूकारों और रिश्तेदारों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। कई बार ये छोटे किसान भारी-भरकम ब्याज दर से ऋण चुका पाने में असमर्थ रहते हैं। ऐसे में उन्हें ब्याज के बोझ को हल्का करने के लिए फिर ऋण लेना होता है और ऐसे छोटे किसान साहूकारों के ऋण जाल में फंसते चले जाते हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक की 2024-25 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग शाखाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। बैंक शाखाओं की संख्या मार्च 2010 के 33,378 से बढ़कर दिसंबर 2024 तक 56,579 हो गई है। इसके साथ ही सहकारी समितियों का नया विस्तार दिखाई दे रहा है। ऐसे में साहूकारों और अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता घटाने के लिए दूसरे कदम भी उठाने की जरूरत है।

छोटे ऋणों और कम अवधि के ऋण वाली कई योजनाएं तैयार करके साहूकारों पर निर्भरता कम करनी होगी। ग्रामीण ऋण लागत कम करने और विश्वास बढ़ाने के लिए तकनीक का लाभ उठाया जाना होगा। औपचारिक ऋणों के लिए बेहतर प्रोत्साहन और डिजिटल उपकरणों से लैस बैंक प्रतिनिधियों को ग्रामीण परिवारों और संस्थानों के बीच समन्वय का माध्यम बनाया जाना होगा। इसके साथ ही, वित्त-तकनीक कंपनियों द्वारा ग्रामीण कर्ज धारकों के लिए विश्वसनीय क्रेडिट प्रोफाइल तैयार करने के लिए वैकल्पिक क्रेडिट स्कोरिंग डेटा का उपयोग किया जाना होगा।

गांवों में साहूकारों पर ऋण निर्भरता की प्रवृत्ति को रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के छोटे व्यवसायों को विश्वसनीय संस्थागत वित्तीय सेवाएं प्रदान करने हेतु लक्षित नीतिगत उपाय सुनिश्चित किए जाने होंगे। खासतौर से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक मजबूत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) की भूमिका को प्रभावी बनाना होगा। गांवों में तरलता संबंधी चिंताएं दूर करने के लिए एनबीएफसी के लिए एक मजबूत पुनर्वित्त सुविधा तत्काल सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के तहत प्रतिभूति हितों को लागू करने के लिए ऋण राशि की सीमा को और घटाना अत्यधिक लाभकारी कदम होगा।

सरकार ने किसानों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए जो कानून बनाए हैं, उनके पर्याप्त परिपालन पर ध्यान देना होगा। गांवों में प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का तेजी से विस्तार करना होगा, जिससे छोटे किसानों की संस्थागत ऋण तक पहुंच बढ़ाई जा सकेगी।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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