भरत झुनझुनवाला
उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत अपेक्षा के अनुरूप है क्योंकि भाजपा सरकार ने कानून-व्यवस्था में विशेष सुधार हासिल किया है। महत्वपूर्ण है पंजाब में आप की जीत जो कि दर्शाती है कि केवल पुलवामा, कानून व्यवस्था अथवा रोजगार के वादों से जनता का पेट नहीं भर रहा है। जनता को अपने जीवन स्तर में सुधार चाहिए। जिस प्रकार आप ने दिल्ली में बिजली, पानी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में सुधार किया है वही अपेक्षा पंजाब के लोगों की आप सरकार से होगी। इस दृष्टि से आप की जीत महत्वपूर्ण है। फिर भी बिजली-पानी की सीमा है। जनकल्याण का प्रत्यक्ष आधार बिजली, पानी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा हो सकता है लेकिन इनके पीछे असल जरूरत रोजगार की ही होती है। यदि रोजगार न हो तो मुफ्त में मिल रही बिजली से चलने वाले पंखे के नीचे भी नींद नहीं आएगी। इस बात को केंद्र सरकार ने समझा भी है। वित्तमंत्री ने बजट में पूंजी खर्चों में भारी विस्तार किया है और आशा जाहिर की है कि कि इससे रोजगार बनेंगे। लेकिन पूंजी खर्चों का विस्तार तो भाजपा के बीते 7 वर्षों से करती आयी है फिर रोजगार बन क्यों नहीं रहे?
कारण यह है कि पूंजी खर्चों से रोजगार बन भी सकते हैं और नष्ट भी हो सकते हैं। जैसे यदि रोबोट में पूंजी निवेश किया जाए तो रोजगार का हनन होता है। पूंजी निवेश अवश्य होता है लेकिन जो काम पहले श्रमिक द्वारा किया जा रहा है वह अब रोबोट द्वारा किये जाने से रोजगार का हनन होता है। दूसरी तरफ यदि वही पूंजी निवेश गांव की सड़क अथवा कस्बे की वाईफाई में किया जाए तो रोजगार का सृजन होता है क्योंकि आम आदमी को अपने माल को बाजार तक पहुंचाने अथवा मार्केट करने में सुविधा होती है। इसलिए केवल पूंजी निवेश से रोजगार उत्पन्न नहीं होता बल्कि यह देखना चाहिए कि किस प्रकार का पूंजी निवेश किया जा रहा है।
अपने सामने विशेष समस्या जनसंख्या की है। 70 एवं 80 के दशक में स्वास्थ्य सुविधाओं और भोजन की उपलब्धता में अपने देश में भारी सुधार हुआ था, जिसके कारण बाल मृत्यु दर में गिरावट आई और उस समय हमारी जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई। उस समय पैदा होने वाले बच्चे अब वयस्क हो चले हैं और अब यह श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए हमारे सामने चुनौती केवल वर्तमान रोजगार के स्तर को बनाए रखने की नहीं है। हमारे सामने चुनौती है कि अधिक संख्या में श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे नए युवाओं के लिए अतिरिक्त रोजगार उत्पन्न करें। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि अपने देश में मैन्युफैक्चरिंग में कुल रोजगार में गिरावट आ रही है क्योंकि उत्तरोत्तर पूंजी निवेश ऑटोमेटिक मशीनों में किया जा रहा है। इसलिए पूंजी निवेश से रोजगार उत्पन्न होने की संभावना कम ही है।
समस्या वैश्विक है लेकिन हमारी परिस्थिति ज्यादा प्रतिकूल है। एपीजे स्कूल ऑफ मैनेजमेंट द्वारा प्रकाशित एक पर्चे के अनुसार यदि हमारे जीडीपी में 1 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो 0.2 प्रतिशत की वृद्धि रोजगार में होती है। दूसरे अध्ययन के अनुसार 1 प्रतिशत जीडीपी की वृद्धि से वैश्विक स्तर पर रोजगार में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि होती है। अर्थ हुआ कि दूसरे देशों की तुलना में अपने देश में आर्थिक विकास से रोजगार कम बन रहे हैं जबकि हमारी जरूरत दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा रोजगार बनाने की है।
इस परिस्थिति में हमको रोजगार पैदा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। पहला कार्य यह किया जा सकता है कि ‘मेक इन इंडिया’ पर फोकस करने के स्थान पर हम ‘सर्वड फ्रॉम इंडिया’ पर ध्यान दें। जैसा ऊपर बताया गया है मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार उत्पन्न नहीं हो रहे हैं लेकिन तमाम ऐसी सेवाएं हैं, जिनको ऑटोमेटिक मशीनों से नहीं किया जा सकता जैसे बच्चों को शिक्षा देना, अस्पतालों में मरीजों की सेवा करना, किताबों का ट्रांसलेशन करना, फिल्में बनाना इत्यादि। यदि हम इन सेवाओं के उत्पादन पर ध्यान दें तो हम इन सेवाओं का सम्पूर्ण विश्व को निर्यात कर सकते हैं जैसे अमेरिका के रोगियों को भारत में लाकर अच्छा स्वास्थ्य उपचार उपलब्ध कराया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जहां मैन्युफैक्चरिंग में निवेश से रोजगार घटते हैं वहां सेवा क्षेत्र में निवेश से निश्चित रूप से रोजगार में वृद्धि होगी क्योंकि सेवाओं को ऑटोमेटिक मशीनों से प्रदान करना संभव नहीं है।
यहां समस्या यह है कि अपने देश के युवा ट्रांसलेशन जैसी स्किल को हासिल करने में रुचि नहीं रखते हैं। उनके जीवन का एकमात्र सपना सरकारी नौकरी का है। वे देखते हैं कि सरकारी नौकर फल-फूल रहे हैं और भ्रष्टाचार की भी कमाई पा रहे हैं जबकि अन्य तमाम स्किल्ड लोगों की आय न्यून बनी हुई है। इसलिए उनका ध्यान स्किल हासिल करने में नहीं है। वे स्वयं रोजगार करके आय अर्जित करना ही नहीं चाहते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य है कि सरकारी नौकरी की पात्रता बन जाए इसके लिए जरूरी प्रमाण पत्र हासिल कर लें और येन केन प्रकारेण सरकारी नौकरी हासिल कर लें। इसलिए अपने देश के युवा जब तक ऐसी स्किल को हासिल नहीं करेंगे, जिसे वे बाजार में बेचकर अपनी आय न अर्जित कर सकें तब तक अपने देश में रोजगार उत्पन्न होना कठिन है। इसलिए सरकार को चाहिए कि सरकारी नौकरी का जो आकर्षण है उसको घटाए। इसका सीधा उपाय है कि सरकारी सुविधाओं को कम कर दें तो युवाओं को सरकारी नौकरी का लालच कम हो जाएगा और वे स्किल हासिल करने पर ध्यान देना शुरू करेंगे।
दूसरा कदम सरकार यह उठा सकती है कि श्रम कानूनों को लचीला बनाया जाए, जैसा कि ऊपर बताया गया है आज फैक्टरियों में उद्यमियों द्वारा ऑटोमेटिक मशीनों का उपयोग किया जाता है क्योंकि वे अधिक संख्या में श्रमिकों को रोजगार देने में हिचकते हैं। कारण यह कि अपने देश में श्रम कानून इतने सख्त हैं कि श्रमिक यदि मन लगाकर काम न करे तो उसे बर्खास्त करना लगभग असंभव हो जाता है। इसके अलावा ट्रेड यूनियन द्वारा हड़ताल इत्यादि की समस्याएं भी रहती हैं। इसलिए मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार का सृजन नहीं हो रहा है। उद्यमियों को श्रमिकों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि श्रम कानून को लचीला बनाया जाए और उद्यमी के लिए यह आसान किया जाए कि वह अपनी जरूरत और श्रमिक की कुशलता के अनुसार उन्हें रोजगार दे सके अथवा बर्खास्त कर सके। तब उद्यमियों द्वारा श्रमिकों का उपयोग बढ़ेगा और देश में रोजगार बढ़ेंगे। वर्तमान चुनाव में स्पष्ट हो गया है कि जनता को अपने जीवन स्तर में सुधार चाहिए और मेरा अनुमान है कि अगले चुनाव में रोजगार का मुद्दा प्रमुख होगा, इसलिए समय रहते राज्य एवं केंद्र सरकारों को रोजगार नीति लागू करनी चाहिए, जिससे कि देश में रोजगार पर्याप्त संख्या में उत्पन्न हो।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।