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ट्रंप की पाठशाला में नतमस्तक यूरोपीय नेता

फ्रांसीसी-पोलिश भू-अर्थशास्त्री डैनियल फूबर्ट ने एक्स पर कहा कि ‘यूरोपीय संघ ने यूरोप को अर्थहीन बना दिया है।’ फ़ुबर्ट ने कहा, ‘यूरोपीय नेता बड़ी संख्या में वाशिंगटन पहुंचे। अपनी बात कहने के लिए बेताब। वे साझेदार के रूप में नहीं,...
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फ्रांसीसी-पोलिश भू-अर्थशास्त्री डैनियल फूबर्ट ने एक्स पर कहा कि ‘यूरोपीय संघ ने यूरोप को अर्थहीन बना दिया है।’ फ़ुबर्ट ने कहा, ‘यूरोपीय नेता बड़ी संख्या में वाशिंगटन पहुंचे। अपनी बात कहने के लिए बेताब। वे साझेदार के रूप में नहीं, बल्कि याचिकाकर्ता के रूप में आए थे, एक ऐसे व्यक्ति के शब्द का इंतज़ार कर रहे थे जिसके पास अब सारे पत्ते हैं।’

व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर एक तस्वीर को जिसने भी देखा, जुगुप्सा से भर गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ओवल ऑफिस के सिंहासन पर विराजे हुए। उनके गिर्द यूरोप के प्रमुख नेता इस अंदाज़ में बैठे दिख रहे हैं, गोया पाठशाला चल रही हो। इसे सत्ता का ‘शर्मनाक खेल’ बताया गया, जिससे वैश्विक एकता के प्रदर्शन पर ग्रहण लग गया है। इस कवायद को अमेरिकी चौधराहट का विकृत रूप कहिये। ब्रिटिश ऑनलाइन समाचार पत्र, ‘द इंडिपेंडेंट’ के अनुसार, ‘सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने कहा, कि ट्रंप के रेज़ोल्यूट डेस्क के सामने वाली कुर्सियों पर यूरोपीय नेताओं के बैठने की व्यवस्था देखकर ऐसा लगा जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति ‘अनियंत्रित स्कूली बच्चों’ के एक समूह की मेज़बानी कर रहे हों।’

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सोमवार को, ट्रंप ने पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की मेज़बानी की, और फिर यूक्रेन संकट के समाधान के हवाले से व्हाइट हाउस में सात यूरोपीय नेताओं के साथ बैठक की। इस बैठक में ट्रंप, ज़ेलेंस्की, ब्रिटेन के सर कीर स्टारमर, फ्रांस के इमैनुएल मैक्रों, इटली की जियोर्जिया मेलोनी, जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़, फ़िनलैंड के अलेक्जेंडर स्टब, नाटो महासचिव मार्क रूट, और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन देयर लेयेन शामिल थीं। जर्मन मीडिया के अनुसार, ‘यूरोपीय नेता ज़ेलेंस्की के चारों ओर एक सुरक्षात्मक अर्धवृत्ताकार घेरे में बैठे थे, वो यह सुनिश्चित करने के लिए उत्सुक थे कि ओवल ऑफिस में एक और अपमान न हो, और ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन कायम रहे।’

ब्रसेल्स स्थित यूरोपियन पॉलिसी सेंटर में यूरोपीय और वैश्विक मामलों के निदेशक अल्मुट मोलर ने एक ईमेल के ज़रिये रिएक्ट किया, ‘यह एक ऐसी बैठक थी, जहां यूरोपीय लोगों को अपनी एकता और दृढ़ संकल्प दिखाने का मौका मिला। यूरोप शक्तिहीन नहीं है।’ लेकिन ठीक से देखा जाये, तो इसमें यूरोप-अमेरिकी सुप्रीमेसी झलक रही थी। दुनिया को यह बताना था, कि ट्रांस-अटलांटिक मसलों को कोई एशियाई-अफ्रीकी नेता नहीं सुलझाएगा। पीएम मोदी तो जैसे अप्रासंगिक हों। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 21 से 23 अगस्त 2024 के बीच पोलैंड एवं यूक्रेन की यात्रा पर गए थे। तब ट्रंप, अमेरिकी चुनाव में व्यस्त थे। लेकिन, शायद उन्होंने तय कर लिया था, कि यूक्रेन की शांतिवार्ता का श्रेय किसी एशियाई नेता को नहीं मिलना चाहिए।

वर्ष 1991 में यूक्रेन की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से कीव की यात्रा करने वाले मोदी पहले भारतीय नेता बन गए। मोदी की कीव यात्रा ने ग्लोबल सुर्खियां बटोरी थी। शांतिदूत के रूप में मोदी की भूमिका, यूरोपीय नेताओं के गले से नीचे नहीं उतर रही थी। गुज़रे सोमवार को व्हाइट हाउस ने उन प्रमुख यूरोपीय नेताओं से घिरे ट्रंप की तस्वीर पोस्ट करते हुए, इसे ‘एक ऐतिहासिक दिन’ बताया, और कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ‘शांति के राष्ट्रपति’ हैं। यह ज़बरदस्ती और बेशर्मी भरा सन्देश है, कि ‘पीस प्रेसिडेंट’ को ‘नोबेल पीस प्राइज़’ चाहिए। यह सारा प्रपंच उसी के वास्ते है।

हालांकि, एक्स प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ भू-राजनीतिक पर्यवेक्षकों और नेटिज़न्स ने माना कि ट्रंप की मेज के सामने बैठे यूरोपीय नेताओं की यह नई तस्वीर ‘शर्मिंदगी और अपमान’ के क्षण का संकेत देती है। इस तस्वीर पर टिप्पणी करते हुए, फ्रांसीसी-पोलिश भू-अर्थशास्त्री डैनियल फूबर्ट ने एक्स पर कहा कि ‘यूरोपीय संघ ने यूरोप को अर्थहीन बना दिया है।’ फ़ुबर्ट ने कहा, ‘यूरोपीय नेता बड़ी संख्या में वाशिंगटन पहुंचे। अपनी बात कहने के लिए बेताब। वे साझेदार के रूप में नहीं, बल्कि याचिकाकर्ता के रूप में आए थे, एक ऐसे व्यक्ति के शब्द का इंतज़ार कर रहे थे जिसके पास अब सारे पत्ते हैं।’

‘आई मीम देयर फोर आई एम’ नाम के एक अन्य नेटिजन ने एक्स पोस्ट की गई तस्वीर पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘इतिहास हमारे सामने घटित हो रहा है! यूरोपीय नेता राष्ट्रपति ट्रंप की मेज के चारों ओर बैठे हैं। यक़ीन नहीं हो रहा कि ये लोग इतने क्षुद्र हो सकते हैं।’ एक स्तंभकार अभिषेक ने एक्स पर कहा कि ‘ट्रंप भारत से नाराज़ क्यों हैं? क्योंकि यूरोपीय नेता असंभव स्तर का अपमान सह रहे हैं। इतालवी प्रधानमंत्री, जर्मन चांसलर, फ्रांसीसी राष्ट्रपति... सभी प्रिंसिपल के कार्यालय में बच्चों की तरह बैठे हैं... लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी का इस तरह बैठना असंभव है।’ ऐसी टिप्पणी पर कैसे तार्किक मानें?

लेकिन मुश्किल पुतिन के साथ है। अलास्का में ट्रम्प से मुलाक़ात को पुतिन ने शेयर किया, लेकिन वो भी खुलकर नहीं कहते कि शांतिवार्ता भारत के किसी लोकेशन में हो। क्यों आखिर? पुतिन के लिए, भारत में शांति वार्ता तो सबसे सुरक्षित है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) का गिरफ़्तारी वारंट जारी है। आरोप है कि पुतिन ने यूक्रेनी बच्चों को रूस में अवैध रूप से स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। गैर-नाटो सदस्य स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया ने कहा है कि वे यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ संभावित शिखर सम्मेलन के लिए पुतिन की मेज़बानी के लिए तैयार हैं। स्विट्जरलैंड के विदेश मंत्री इग्नाज़ियो कैसिस ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति शांति सम्मेलन के लिए यात्रा कर रहा है, तो संघीय सरकार अंतर्राष्ट्रीय गिरफ़्तारी वारंट के तहत किसी व्यक्ति को छूट दे सकती है।

पीएम मोदी जिनसे बेहिचक गले मिलते हैं, उनमें से एक हैं फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों। मैक्रों ने भी जिनेवा को एक संभावित स्थल के रूप में सुझाया है, और इसे तटस्थ स्थान बताया है। क्या भारत ‘तटस्थ स्थल’ नहीं है? ऑस्ट्रिया के चांसलर क्रिश्चियन स्टॉकर ने वियना की लंबी परंपरा का हवाला देते हुए शांति वार्ता की मेज़बानी की पेशकश की। क्रिश्चियन स्टॉकर के कार्यालय ने कहा, कि हम पुतिन की भागीदारी को अनुमति देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय से संपर्क करेंगे। नाटो का सदस्य तुर्की भी, ‘मान न मान मैं तेरा मेज़बान’ बनने को व्याकुल है। पिछली द्विपक्षीय रूस-यूक्रेन वार्ता इस्तांबुल में हुई थी। डबल गेम खेलने वाला तुर्की दावा करता है, कि हम मास्को से अधिक मैत्रीपूर्ण संबंधों को निभा रहे हैं।

व्हाइट हाउस ने अब तक पोलिटिको की उस रिपोर्ट पर आधिकारिक रूप से टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि वह पुतिन, ज़ेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की त्रिपक्षीय बैठक के लिए बुडापेस्ट को स्थल के रूप में विचार कर रहा है। लेकिन व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने मंगलवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, कि दोनों नेताओं ने हंगरी की राजधानी में शिखर सम्मेलन आयोजित करने की संभावना पर चर्चा की थी। पोलिश प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने यूक्रेन के लिए निरंतर समर्थन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। यह सारी कवायद, ‘जैसी बही बयार, पीठ तब तैसी कीजिये’, वाली है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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