ट्रंप के दबाव में रूसी तेल पर ईयू का खेल
यूरोपीय संघ ने घोषणा की कि सदस्य देशों को अब भारत आदि बाज़ारों से वैसे परिष्कृत ईंधन खरीदने की अनुमति नहीं होगी, जो मूलतः रूस से आयातित होगा। कहा गया कि भविष्य में परिष्कृत ईंधन आयातकों को प्रमाण देना होगा कि यह रूसी कच्चे तेल से उत्पादित नहीं है। लेकिन ये उपाय कनाडा, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड, यूके और अमेरिका से आयात पर
लागू नहीं होते हैं।
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हम इस बात से खुश थे, कि भारत ने प्रसंस्करण किये तेल के निर्यात में सऊदी अरब को पीछे छोड़ दिया था। यूरोप वालों को मालूम था कि तेल कहां से आ रहा है, भारत की कौन-सी रिफाइनरी में इनका प्रसंस्करण किया जा रहा है। किन ‘शैडो टैंकरों’ के ज़रिये इनकी ढुलाई की जा रही है। लेकिन दोहरे चरित्र वाले यूरोप ने अचानक से पलटी मारी, और भारत की रिफाइनरी के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाकर अमेरिका के समक्ष परमहंस बनने की कवायद शुरू कर दी। वैसे शैडो टैंकर, जो कच्चे या प्रसंस्करित तेल एक महाद्वीप से दूसरे तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल में थे, उसके स्वामित्व को लेकर ग्रीस भी जांच के घेरे में है, जो यूरोपीय संघ का सदस्य देश है। अमेरिका का पिट्ठू और नाटो का सदस्य तुर्की भी इसमें फंसा है, जो रूसी तेल को शैडो टैंकर के ज़रिये यूरोपीय देशों को सप्लाई करता था।
छाया टैंकरों के पास वैध कागज़ात, बीमा वगैरह नहीं होते। फ़र्जी बीमा के ज़रिये ये तेल की अवैध ढुलाई करते हैं। ड्रायड ग्लोबल के अनुसार, ‘यह बेड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, जिनकी संख्या 1500 पार है।’ यूक्रेन युद्ध के बाद शैडो टैंकर्स सबसे अधिक इस्तेमाल में हैं। तरल माल का बार-बार एक टैंकर से दूसरे टैंकर में स्थानांतरण, डेटा में हेराफेरी करना, और स्वचालित पहचान प्रणाली को ब्लैकआउट करना, ये सब शैडो टैंकर्स संचालकों के लिए साधारण सी बात है। जो पश्चिमी देश अपने आपको परमहंस बताते हैं, रूस ने उन्हीं पश्चिमी देशों की कंपनियों से पुराने जहाज़ ख़रीदे।
कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का अनुमान है, कि रूस ने 2022 से अपने बेड़े के लिए शैडो टैंकर खरीदने में लगभग 10 अरब डॉलर खर्च किए। यह बेड़ा उन क्षेत्रों के लिए गंभीर पर्यावरणीय और वित्तीय जोखिम को भी दावत देता है, जिन देशों से यह गुजरता है। खासकर किसी रिसाव की स्थिति में उन देशों की जान अटकी रहती है। यूरोपीय संसद की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ‘60 प्रतिशत जर्जर जहाजों को पश्चिमी यूरोपीय मालिकों ने बेचा था, जिनमें ग्रीस के टैंकर मालिक अब तक के सबसे बड़े विक्रेता रहे हैं। शेष 40 फीसद ऐसे जंक जहाज भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और वियतनाम सहित कई देशों में फैले हुए हैं।’
10 जनवरी 2025 को अमेरिका ने 183 रूस नियंत्रित जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिए, जिनमें से 75 ऐसे टैंकर शामिल हैं, जिनकी पहचान छाया बेड़े के रूप में की गई है। ऐसे जहाजों की पहचान अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) कोड द्वारा की गई है। इन एक्सपायरी डेट वाले जहाजों को कब, और किसने बेचा? उसका पता लगाने के लिए ब्लूमबर्ग डेटा और आईएमओ कोड का उपयोग करते हैं।
अब सवाल यह है, कि भारत ने जो तेल अपने यहां आयात किये, और फिर उसका प्रसंस्करण कर विभिन्न देशों को निर्यात किये, क्या उसके लिए शैडो जहाजी बेड़ों का इस्तेमाल हुआ था? हालांकि, भारत के पास कोई छाया बेड़ा नहीं पाया गया है, लेकिन उस पर छाया बेड़े में शामिल टैंकरों के ज़रिए रूसी तेल के परिवहन को सुगम बनाने का आरोप लगाया गया है। दुबई स्थित कुछ भारतीय कंपनियां और संस्थाएं, जिनके भारत से संबंध हैं, रूसी तेल के परिवहन में शामिल रही हैं। भारतीय नौवहन रजिस्टर (आईआरएस) ने तेल ढुलाई वाले जहाजों के प्रमाणन में ज़बरदस्त वृद्धि दर्ज़ की है, जिससे चोरी-छिपे तेल भेजने में उनकी संलिप्तता का संदेह बढ़ा है। हालांकि, आईआरएस का कहना है कि जिन जहाजों को वह प्रमाणित करता है, वे लाइबेरिया और साइप्रस जैसे देशों के झंडों के तहत पंजीकृत हैं, न कि रूसी झंडे के तहत।
यूरोपीय संघ ने 20 जुलाई को घोषणा की, कि सदस्य देशों को अब भारत और तुर्की जैसे बाज़ारों से वैसे परिष्कृत ईंधन खरीदने की अनुमति नहीं होगी, जो मूलतः रूस से आयातित होगा। मुनादी यह भी हुई कि 21 जनवरी, 2026 से, परिष्कृत ईंधन के आयातकों को यह प्रमाण देना होगा, कि यह रूसी कच्चे तेल से उत्पादित नहीं किया गया था। मज़ेदार है, कि ये उपाय कनाडा, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड, यूके और अमेरिका से आयात पर लागू नहीं होते हैं।
लेकिन क्या यह सब कुछ ट्रम्प के दबाव के पहले से चल रहा था? पिछले साल, एक स्वतंत्र शोध संगठन, ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर’ (सीआरईए) ने पाया, कि तीन प्रमुख भारतीय रिफाइनरियों जामनगर, वडिनार और मैंगलोर ने रूसी कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया था, और पश्चिमी बाजारों में परिष्कृत उत्पादों का निर्यात कर रही थीं। सीआरईए ने यह भी पाया, कि तुर्की के तीन बंदरगाह रूसी ईंधन का आयात कर रहे थे, जिसे बाद में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के आयातकों तक पहुंचाया गया।
यूरोपीय संघ ने भारत स्थित नायरा एनर्जी लिमिटेड सहित कई कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की है, जो वडिनार रिफाइनरी का संचालन करती है। यूरोपीय संघ का कहना है कि इस रिफ़ाइनरी का 49 प्रतिशत स्वामित्व रूसी सरकारी तेल कंपनी ‘रोसनेफ्ट’ के पास है। मास्को स्थित ‘रोसनेफ्ट’ रूस की एक ‘प्रमुख रिफ़ाइनर’ है, जिसका अर्थ निकाला गया है, कि नायरा एनर्जी क्रेमलिन को ‘राजस्व का एक बड़ा स्रोत’ मुहैया कराती है। रविवार को यूरोपीय संघ द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के तुरंत बाद, तेल टैंकर ‘तलारा’ ने नायरा एनर्जी से तेल ढुलाई की योजना त्याग दी और वाडिनार बंदरगाह से यू-टर्न ले लिया। हालांकि, ये उपाय यूरोपीय संघ द्वारा अपनाए गए हैं, लेकिन अन्य जी 7 सदस्यों द्वारा नहीं। यूरोपीय संघ ने रूसी कच्चे तेल की मूल्य सीमा को भी 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से घटाकर 47.60 अमेरिकी डॉलर कर दिया है, जो यूरोपीय संघ के अनुसार, मौजूदा बाजार मूल्यों के अनुरूप है। ईयू ने 105 जहाजों पर प्रतिबन्ध के साथ- साथ यूएई की इंटरशिपिंग सर्विसेज (एलएलसी) पर भी रोक लगा दी।
लेकिन इस बीच ट्रम्प के दूत, स्टीवन चार्ल्स विटकॉफ, जो एक अमेरिकी वकील और रियल एस्टेट निवेशक हैं, उन्हें नए प्रस्ताव के साथ मास्को भेजा गया है। ट्रम्प का दांव अब इस बात पर टिका है कि विटकॉफ मास्को से क्या लेकर लौटते हैं। इस मिशन की सफलता, या विफलता यह तय कर सकती है, कि अमेरिका क्रेमलिन के साथ अपने प्रतिबंधों के युद्ध को आगे बढ़ाएगा, या पीछे हटेगा। ध्यान दीजिये, एनएसए अजित डोभाल भी इस समय मास्को में हैं। विटकॉफ क्या डोभाल से भी विमर्श करेंगे? इससे पहले इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने लगातार पुतिन से बात की है। पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि ‘रूस ने धीरे-धीरे मेंढक को उबालना सीख लिया है’, क्योंकि मास्को, वैश्विक प्रतिक्रिया को भड़काए बिना चुपचाप रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त कर रहा है। क्या नई दिल्ली उसी राह पर है?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।