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सत्ता संघर्ष में एर्दोआन के उत्तराधिकारी का प्रश्न

तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन की सत्ता संकट में है। आर्थिक मंदी, डिग्री विवाद और व्यापक विरोध प्रदर्शनों ने उनकी छवि को प्रभावित किया है। राजनीतिक उत्तराधिकारियों पर बहस तेज़ हो रही है, जिससे पार्टी में अस्थिरता बढ़ गई है। इस्तांबुल...

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तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन की सत्ता संकट में है। आर्थिक मंदी, डिग्री विवाद और व्यापक विरोध प्रदर्शनों ने उनकी छवि को प्रभावित किया है। राजनीतिक उत्तराधिकारियों पर बहस तेज़ हो रही है, जिससे पार्टी में अस्थिरता बढ़ गई है। इस्तांबुल के मेयर और विपक्षी नेता एक्रेम इमामोग्लू को गिरफ्तार किया जाना इस स्थिति को और जटिल बना रहा है।

एर्दोआन ख़ैरियत से नहीं हैं। एर्दोआन के करीबी लोगों में, उनके बाद के भविष्य को लेकर बहस फिर से तेज़ हो गई है। हालांकि पार्टी का एक हिस्सा दावा करता है कि राष्ट्रपति रेज़ेप तैय्यिप एर्दोआन खुद 2028 में पद छोड़ने का इरादा नहीं रखते, लेकिन पार्टी की अंदरूनी स्थिति उबाल पर है। वर्ष 2017 में एक जनमत संग्रह के बाद, तुर्की की सरकार संसदीय प्रणाली से राष्ट्रपति प्रणाली में बदल गई।

तुर्की में संभावित उत्तराधिकारियों के नाम तेज़ी से चर्चा में आ रहे हैं। हकान फ़िदान 2010 से 2023 तक तुर्की ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख रहे हैं और अब विदेश मंत्री हैं। वह एर्दोआन के सबसे भरोसेमंद लोगों में से एक हैं, लेकिन राष्ट्रपति परिवार में उन्हें लेकर थोड़ी सावधानी बरती जाती है। इब्राहिम कालिन 2014 से तुर्की राष्ट्रपति के प्रेस सचिव और 2023 से राष्ट्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख हैं। उन्हें एक बुद्धिजीवी और शासन के सबसे करीबी विचारकों में से एक माना जाता है। बिलाल एर्दोआन राष्ट्रपति के बेटे हैं, मुख्य ‘वंशवादी’ उत्तराधिकारी और अखिल तुर्कवाद के दूत के रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी छवि कमज़ोर है। उनका अतीत निंदनीय रहा है, ख़ासकर 2013 के ‘टेलीफ़ोन रिकॉर्ड’ के दौरान ‘लाखों लोगों के लापता होने के मामले’ को लेकर।

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सेल्कुक बयारकतार एर्दोआन के दामाद हैं, जो बयारकतार ड्रोन के डिज़ाइनर हैं। वे तुर्की राष्ट्रवादियों के प्रतीक हैं। बेरात अल्बयारक एक और दामाद हैं, जो पूर्व वित्त और ऊर्जा मंत्री हैं, जिनके कार्यकाल में तुर्की में संकट शुरू हुआ था। लेकिन आर्थिक विफलता और घोटालों के बाद, उन्हें अपना पद खोना पड़ा। सुलेमान सोयलू एक पूर्व गृह मंत्री हैं जो सुरक्षा हलकों में प्रभावशाली हैं। लेकिन पेकर के घोटालों और आरोपों ने उनकी दावेदारी बहुत कमज़ोर कर दी। विदेश मंत्री हकान फ़िदान रूस के लिए सबसे अच्छा विकल्प लगता है। कठोर, लेकिन व्यावहारिक। सबसे विवादास्पद सेल्कुक बयारकतार हैं, जो रूसी संघ के ख़िलाफ़ पश्चिमी गठबंधन के पैरोकार हैं।

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वह साल 1994 था, जब एर्दोआन इस्तांबुल के मेयर बने, जबकि उनके अब कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एक्रेम इमामोग्लू ने व्यवसाय प्रशासन संकाय से स्नातक किया। इमामोग्लू और एर्दोआन ने अपने राजनीतिक करियर को एक जैसे तरीक़े से बनाया है। दोनों इस्तांबुल के मेयर रहे हैं, और दोनों ही उस पद पर रहते जेल गए हैं। एर्दोआन 1994 में इस्तांबुल के मेयर बने, लेकिन पांच साल बाद एक राजनीतिक रैली में राष्ट्रवादी कविता — 'मीनारें हमारी संगीनें हैं और गुंबद हमारे हेलमेट हैं।' पढ़ने के बाद धार्मिक नफ़रत भड़काने के आरोप में उन्हें जेल भेज दिया गया। उस समय धर्मनिरपेक्ष अदालतों ने कविता को एक ख़तरे के रूप में देखा था। राष्ट्रपति बनने से पहले एर्दोआन प्रधानमंत्री रहे, उन्होंने 20 से ज़्यादा वर्षों तक तुर्की पर कब्ज़ा बनाए रखा और वहां के लोकतंत्र पर अपनी पकड़ मज़बूत की। और एर्दोआन के ही रास्ते पर चलते हुए इमामोग्लू तुर्की के सबसे बड़े शहर इस्तांबुल के मेयर बने। इमामोग्लू लंबे समय से अपनी पार्टी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) के नेता रहे हैं और अब उन्हें एर्दोआन का सबसे मज़बूत प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।

19 मार्च, 2025 को, इस्तांबुल के मेयर और विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार एक्रेम इमामोग्लू को फ़र्ज़ी डिग्री, भ्रष्टाचार, जबरन वसूली, रिश्वतखोरी, धन शोधन और आतंकवाद, विशेष रूप से पीकेके का समर्थन करने के संदेह में तुर्की पुलिस ने हिरासत में लिया था।

तुर्की में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए, उम्मीदवार द्वारा उच्च शिक्षा पूरी कर ली होनी चाहिए। लेकिन 18 मार्च को, देश की विपक्षी पार्टी द्वारा इमामोग्लू को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करने और एर्दोआन के ख़िलाफ़ आधिकारिक चुनाव लड़ने से कुछ ही दिन पहले, उनकी डिग्री रद्द कर दी गई।

इस गिरफ्तारी के बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दो हज़ार से अधिक लोग गिरफ्तार हुए, जिनमें से अधिकांश अभी जेल में हैं। लोगों ने राष्ट्रपति एर्दोआन की डिग्री को भी जुगाड़ वाला बताया। राष्ट्रपति एर्दोआन की आधिकारिक जीवनी, ‘एक्सटर्नल’, में लिखा है कि उन्होंने 1981 में मरमरा विश्वविद्यालय के आर्थिक और वाणिज्यिक विज्ञान संकाय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी।

लेकिन हाल के दिनों में तुर्कों ने ट्विटर पर (या तो अपनी डिग्री दिखाओ या फिर इस्तीफ़ा) वायरल करते हुए राष्ट्रपति पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। इस हैशटैग का इस्तेमाल करके हजारों री-ट्वीट किए गए हैं। एक म्यूज़िक वीडियो भी है, जिसमें राष्ट्रपति से अपनी उच्च शिक्षा का प्रमाण प्रस्तुत करने का आह्वान किया गया है। राष्ट्रपति एर्दोआन को इस मामले में मरमरा विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट से कोई मदद नहीं मिली है, जहां बताया गया है कि उपरोक्त संकाय कभी अस्तित्व में ही नहीं था, बल्कि आर्थिक एवं प्रशासनिक विज्ञान संकाय की स्थापना 1982 में हुई थी।

एर्दोआन की डिग्री की प्रामाणिकता पर संदेह सबसे पहले 2014 में, उनके राष्ट्रपति चुने जाने से पहले, एक विपक्षी सांसद ने जताया था, जिसमें दावा किया गया था कि 2014 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मरमरा विश्वविद्यालय के अभिलेखागार बंद कर दिए गए थे। और पिछले कुछ दिनों में पुरानी रिपोर्टों के फिर से साझा होने के परिणामस्वरूप यह चर्चा फिर से शुरू हो गई है, जिसमें कहा गया है कि मरमरा विश्वविद्यालय के अभिलेखागार फिर से खोल दिए गए हैं, लेकिन राष्ट्रपति की डिग्री नहीं मिल रही है। तुर्की में राष्ट्रपति बनने के लिए आधिकारिक तौर पर चार साल की डिग्री होना अनिवार्य शर्त है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि अगर उनकी डिग्री असली नहीं पाई गई, तो क्या उन्हें पद से हटाया जा सकता है।

एर्दोआन चाहे जितना भी राष्ट्रवाद बघार लें, इस देश की अर्थव्यवस्था ख़राब हालत में है। एर्दोआन के अपने मतदाता भी उच्च मुद्रास्फीति, आय असमानता, आवास और रसोई की लागत, और युवाओं के लिए बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं। बेहतर जीवन बनाने के आर्थिक अवसर और भी अधिक मायावी होते जा रहे हैं। वास्तव में, जैसे ही डिप्लोमा रद्द के विरुद्ध लोग सड़क पर उतरे, बाज़ारों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। केंद्रीय बैंक को मुद्रा भंडार से पैसे निकालने पड़े। मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए अब तक 40 अरब डॉलर का उपयोग करना पड़ा।

तुर्की में सबसे बदनाम अदालतें हुई हैं, जो एर्दोआन की तरफ़दारी कर रही हैं। दो साल से तुर्की का जेन-जेड उनकी असलियत उजागर करने में लगा है। एर्दोआन कब तक जेन-जेड को दबाए रखेंगे? यह भी एक सवाल है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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