दिनेश चमोला ‘शैलेश’
आज संसार का प्रत्येक प्राणी अपने-अपने निर्धारित जीवन-लक्ष्यों के अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों में खुशियां प्राप्त करने के लिए न केवल प्राणपण से जूझ रहा है, बल्कि उसे पाने के लिए वह अनेक प्रकार के हथकंडे भी अपना रहा है ताकि इस भौतिकता की चकाचौंध से ऊबते हुए वह कुछ पल, दिन, सप्ताह, माह अथवा वर्ष खुशियों के साम्राज्य में बिता सके व अपने जीवन को उपादेय, स्मरणीय व संग्रहणीय बना सके।
यद्यपि खुशी अंदर की वस्तु है, फिर भी मनुष्य उसे पाने के लिए बहिर्मुखी संसार में विभिन्न प्रकार के प्रयास करता रहता है। अपने अभीष्ट को पाने के लिए वह नाना प्रकार के मार्गों, उपायों एवं उपक्रमों को तलाशता रहता है। कोई इसे खेल में, कोई भौतिकता में; दुकानदारी में, पढ़ने-लिखने में व कोई इसे खाने-पीने व मौज उड़ाने में ढूंढता है। यह स्वयंसिद्ध है कि यदि आपका मन स्वस्थ है तो आपका तन भी स्वस्थ रहता है। यदि आप खुश हैं तो आपका पास-परिवेश भी इससे खुशियां बटोरने के विकल्प ढूंढता रहता है।
यदि आप अस्वस्थ न होते हुए भी अस्वस्थ से दिखाई देते हैं तो आपके संबंध दरकने लगते हैं। आज के इस घोर भौतिकता के युग में लाभ व लोभ की संस्कृति में पल-बढ़ रहे लोगों को स्वस्थ वातावरण व स्वस्थ भौतिकता वाले संबंध ही लाभकारी प्रतीत होते हैं। आज विपन्न मित्र, भाई अथवा संबंधी का साथ एवं सान्निध्य, लोगों को उस रूप में आकर्षित नहीं कर सकता, जिस रूप में, चाहे वह कोई कृत्रिम संबंधी अथवा मित्र ही क्यों न हो, जिससे लाभ की शत-प्रतिशत प्रत्याशा हो अथवा मनवांछित लोभ की प्रतिपूर्ति होने की गारंटी हो, अधिक महत्व रखता है। आज संबंधों का मूल्यांकन पद, प्रतिष्ठा, प्रदर्शन, धन व प्राप्त होने वाले लाभों के निकष पर होता है। यदि कहीं भी धन वर्षा होने या बड़े लाभ मिलने का अंदेशा हो तो 85 वर्षीय जीर्ण-शीर्ण वृद्ध की रक्त-शिराओं में पंद्रह-पचीसी की उमंग व उत्साह का सैलाब उमड़ने लगता है।
वस्तुतः, खुशी भौतिकता में नहीं, सच्चे आनंद का संग्रह करने में है। आवश्यकताएं व लोभ, पीड़ा व कष्ट का महाजाल बुनती रहती हैं, दूसरों को उस मोहजाल में फंसाने के भ्रम में जीव स्वयं ही उसमें फंस जाता है, ऐसी स्थिति में स्वार्थ के सारे नाते-रिश्ते तितरबितर हो जाते हैं… व अपने किये का फल पाने के लिए व्यक्ति नितांत अकेला छूट जाता है। इस संपूर्ण व्यथा-कथा को नियंत्रित करने का मूल मंत्र है आत्म-नियंत्रण।
स्टोनी ब्रूक विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रतिष्ठित प्रोफेसर तथा एमेरिटस, हॉवर्ड बचलिन ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘द साइन्स ऑफ सेल्फ कंट्रोल’ में स्पष्ट किया है कि किसी के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए जितनी जरूरत अंतर्दृष्टि व आत्म-ज्ञान की है, उससे अधिक व्यावहारिकता की भी है। उनका मानना है कि व्यवहार के हार्मोन पैटर्न के माध्यम से ही खुशी प्राप्त की जा सकती है। आत्मनियंत्रण के कारण किसी गलत मार्ग पर बढ़ने से पूर्व उसकी बुराइयों से आगाह हुआ जा सकता है जो दुर्लभ जीवन के बर्बाद होने तथा जीवन में व्यापने वाले दूसरे भयावह खतरों से भी मनुष्य का बचाव कर सकते हैं। जिस प्रकार एक पियक्कड़ को उसकी पीने की आदतों से निजात दिलाना कठिन है, उसी प्रकार अपने व अपनों के विनाश की ओर अग्रसर व्यक्ति को आत्मनियंत्रण की नकेल से नकेलना कठिन है।
प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार चार्ल्स दुहिग्ग ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘द पर ऑफ हैबिट; व्हाट वी डू इन लाइफ एंड बिजनिस’ में लिखा है कि सही व सकारात्मक दृष्टि से आगे बढ़ना आपको व आपके जीवन को अच्छे परिणाम दे सकता है। लेकिन इसके लिए यह समझना जरूरी है कि किस प्रकार आदतों का निर्माण होता है कि आप बुरी आदतों को छोड़कर अच्छी आदतों की ओर बढ़ना शुरू कर दें या एक-एक कर बुरी बातों को छोड़कर अच्छी बातों को अपने जीवन में अपनाना शुरू भी कर दें। यह प्रबल इच्छाशक्ति से ही सम्भव है।
दृढ़ इच्छाशक्ति, अत्यंत मेहनत से अर्जित आपके मसल्स की तरह है… जिस प्रकार कठोर व्यायाम से आपकी मसल्स मजबूत व सुदृढ़ होती हैं व शरीर का रक्त प्रवाह भी दुरुस्त होता है, उसी प्रकार आत्मनियंत्रण और इच्छाशक्ति से सोच की सकारात्मकता के साथ-साथ मनुष्य में सही दिशा की ओर अग्रसर होने का विवेक व क्षमता भी जागृत होती है। जिस प्रकार प्रत्येक अच्छे कार्य के लिए अच्छी प्रेरणा की पृष्ठभूमि व अच्छे कार्यों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार एक अच्छे जीवन के लिए अच्छी सोच व दृष्टि की सकारात्मकता भी जरूरी है। अतः यह सही है कि कुंठा, नैराश्य व भय के आसुरि-भवनों का संहार केवल खुशियों की सकारात्मकता से ही संभव है।