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रोजगार के अवसर रोकेंगे गरीबी की रफ्तार

जयंतीलाल भंडारी हाल ही में 11 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया...
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जयंतीलाल भंडारी

हाल ही में 11 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में पिछले 15 वर्षों में गरीबी में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है। भारत में 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। 2005-2006 में जहां गरीबों की आबादी 55.1 प्रतिशत थी वह 2019-2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत हो गई।

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इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005-2006 में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गई। खास बात यह है कि भारत में सभी संकेतकों के अनुसार गरीबी में गिरावट आई है। सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूह के लोग शामिल हैं, ने सबसे तेजी से प्रगति हासिल की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पोषण संकेतक के तहत बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोग 2005-2006 में 44.3 प्रतिशत थे जो 2019-2021 में कम होकर 11.8 प्रतिशत हो गए। इस दौरान और बाल मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई। रिपोर्ट के अनुसार खाना पकाने के ईंधन से वंचित गरीबों की संख्या भारत में 52.9 प्रतिशत से गिरकर 13.9 प्रतिशत हो गई है। वहीं स्वच्छता से वंचित लोग जहां 2005-2006 में 50.4 प्रतिशत थे उनकी संख्या 2019-2021 में कम होकर 11.3 प्रतिशत रह गई है। पेयजल के पैमाने की बात करें तो उक्त अवधि के दौरान बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोगों का प्रतिशत 16.4 से घटकर 2.7 हो गया। बिना बिजली के रह रहे लोगों की संख्या 29 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत और बिना आवास के गरीबों की संख्या 44.9 प्रतिशत से गिरकर 13.6 प्रतिशत रह गई है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सहित 25 देशों ने भी अपने यहां गरीबों की संख्या में कमी की है। रिपोर्ट के अनुसार भारत उन 19 देशों की लिस्ट में शामिल है जिन्होंने 2005-2006 से 2015-2016 की अवधि के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मूल्य को आधा करने में सफलता हासिल की।

गौरतलब है कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रकाशित पॉलिसी रिसर्च पेपर्स में भी यह कहा गया है कि भारत में हाल ही के वर्षों में आर्थिक चुनौतियों के बीच गरीबी घटी है। विश्व बैंक के रिसर्च पेपर में गरीबी में गिरावट आने के कई महत्वपूर्ण कारण बताए गए हैं। कहा गया है कि भारत में गरीबों के सशक्तीकरण की कल्याणकारी योजनाओं से गरीबी में कमी आई। असंगठित कामगारों (कैजुअल वर्कर्स) की दिहाड़ी में अधिक बढ़ोतरी हुई। सबसे छोटे आकार का खेत रखने वाले किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हुई। आईएमएफ द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर में कहा गया है कि सरकार के पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है।

नि:संदेह भारत में वर्ष 2014 से लागू की गई डीबीटी योजना देश में गरीबी कम करने में एक वरदान की तरह दिखाई दे रही है। भारत में डीबीटी से कल्याणकारी योजनाओं के जरिए महिलाओं, बुजुर्गों, किसानों और कमजोर वर्ग के लोगों को अकल्पनीय फायदा हो रहा है। जहां कोरोनाकाल में 80 करोड़ लोगों का डिजिटल राशन प्रणाली से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत खाद्यान्न नि:शुल्क दिया गया, वहीं अब विगत एक जनवरी, 2023 से 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को हर महीने खाद्यान्न नि:शुल्क प्रदान किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत आने वाली देश की दो-तिहाई आबादी को राशन प्रणाली के तहत मुफ्त में अनाज देने की पहल दुनियाभर में रेखांकित की जा रही है। 2023 में वर्षभर गरीबों की खाद्य सुरक्षा तथा मुफ्त अनाज का वितरण गरीबी में कमी लाने का अहम उपाय दिखाई दे रहा है। वस्तुतः देश का कृषि उत्पादन देश के गरीबों और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा सहारा बन गया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक चालू कृषि वर्ष 2022-23 में 3305.34 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है। जो देश में अब तक रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन है। खाद्यान्न उत्पादन वृद्धि से गरीबों का सशक्तीकरण हो रहा है।

गौरतलब है कि डिजिटलीकरण के तहत जिस तरह आधार ने लीकेज को कम करते हुए लाभार्थियों को भुगतान के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर-डीबीटी) में मदद की है, उससे भी गरीबों का सशक्तीकरण हुआ है। सरकार ने वर्ष 2014 से लेकर अब तक डीबीटी के जरिए करीब 29 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि सीधे लाभान्वितों के बैंक खातों तक पहुंचाई है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) की सराहना दुनियाभर में की जा रही। दुनियाभर में यह रेखांकित हो रहा है कि गरीबों के सशक्तीकरण में करीब 47 करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 134 करोड़ आधार कार्ड (ए) तथा 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) की शक्ति वाले जैम से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है। इसी शक्ति के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे आर्थिक राहत हस्तांतरित हो रही है।

यह बात महत्वपूर्ण है कि देश में गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन, वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और स्वास्थ्य व भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती खाद्यान्न कीमतों के मद्देनजर गरीबों को मुश्किलों से बचाने और खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चितता हेतु अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल, 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है, अतएव देश की नई आबादी के लिए रोजगार के नए अवसरों का निर्माण करना जरूरी होगा। रोजगार के ऐसे नए अवसर गरीबी नियंत्रण में सहायक होंगे।

बढ़ती हुई देश में बहुआयामी गरीबी, बेरोजगारी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए सरकार द्वारा घोषित नई जनकल्याण योजनाओं, स्वरोजगार योजनाओं, कौशल विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक, सामुदायिक रसोई व्यवस्था तथा पोषण अभियान-2 को पूरी तरह कारगर व सफल बनाया जाना होगा। मोटे अनाज का उत्पादन और वितरण बढ़ाकर देश में भूख और कुपोषण की चुनौती का सामना करके गरीबों की कार्यक्षमता बढ़ानी होगी। चूंकि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार भारत में उत्पादित लगभग 40 फीसदी भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है। ऐसे में देश में भोजन की बर्बादी को बचाए जाने से जरूरतमंद लोगों तक भोजन की उपयुक्त पूर्ति हो सकेगी और इससे भी गरीबी नियंत्रण में मदद मिलेगी।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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