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पराली समस्या के समाधान के लिए कारगर पहल

सीएचसी मॉडल
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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने लघु और सीमांत किसानों को मुफ्त में मशीनें देने का निर्देश दिया है। इसलिए, सरकार को सीएचसी के परिचालन खर्चों को शामिल करने के लिए पूंजी सब्सिडी का कुछ हिस्सा दोबारा आवंटित करना चाहिए।

देश के उत्तरी राज्यों ने खेतों में आग जलाने की घटनाओं को शून्य स्तर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन अक्तूबर और नवंबर माह में पराली जलने की घटनाओं से हवा में पार्टिकुलेट मैटर का स्तर राष्ट्रीय मानकों से तीन-चार गुना अधिक हो जाता है। इससे निपटने के लिए भारत सरकार ने सुपर सीडर जैसी लगभग 2.5 लाख फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के वितरण, लगभग 32,800 कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित करने और जागरूकता अभियान चलाने जैसे कदमों पर 2800 करोड़ रुपये (2018-24) से अधिक धनराशि खर्च की है। सैद्धांतिक रूप से, ये मशीनें गैर-बासमती धान की संपूर्ण 33 लाख हेक्टेयर खेती के लिए पर्याप्त हैं।

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अभी लगभग 40 प्रतिशत मशीनें सीएचसी के माध्यम से संचालित होती हैं, जिनको 80 प्रतिशत मशीनरी सब्सिडी मिलती है। सीएचसी महंगे कृषि उपकरणों को किसानों को रियायती किराए पर देते हैं, जिससे सुपर सीडर जैसी मशीनें उनकी खरीद लागत के सिर्फ 10-33 प्रतिशत खर्च पर मिल जाती हैं। इन लाभों के बावजूद सीएचसी का इस्तेमाल करने की दर काफी कम है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर ने पंजाब के 11 जिलों में किसानों के बीच एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पाया गया कि इन-सीटू पराली प्रबंधन अपनाने वाले पंजाब के 58 प्रतिशत किसानों में से आधे से अधिक किसानों ने किराए की मशीनों का इस्तेमाल किया था, लेकिन इनमें से सिर्फ 15 प्रतिशत किसानों ने ये मशीनें सीएचसी से ली थीं।

मशीनों की समय पर उपलब्धता, बेहतर रखरखाव, मशीनों के गलत इस्तेमाल और मशीनों को लौटाने में देरी जैसे कारणों से किसानों के लिए सीएचसी से मशीनें किराए पर लेना जोखिम भरा सौदा हो जाता है, जो इनका इस्तेमाल घटा देता है। सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण से पता चलता है कि 45 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों के लिए मशीनों को किराए पर लेना अधिक लाभकारी रहता है। फसल अवशेष प्रबंधन के सतत उपायों को किसान किफायती दरों पर अपना सकें, इसके लिए सर्वप्रथम, सीएचसी के परिचालन खर्च को शामिल करने के लिए सीआरएम कैपिटल सब्सिडी योजना में सुधार करना चाहिए। मशीनों की मरम्मत और रखरखाव पर सीएचसी को बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है, जो किराए से उनकी आय का 35-55 प्रतिशत तक होता है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने लघु और सीमांत किसानों को मुफ्त में मशीनें देने का निर्देश दिया है। इसलिए, सरकार को सीएचसी के परिचालन खर्चों को शामिल करने के लिए पूंजी सब्सिडी का कुछ हिस्सा दोबारा आवंटित करना चाहिए। इससे मशीनों को अच्छे रखरखाव के साथ किराए पर देने में मदद मिलेगी, जिससे सीएचसी की उच्च सेवा गुणवत्ता सुनिश्चित होगी।

दूसरा, सीएचसी के सर्विस डिलीवरी का आकलन और उच्च प्रदर्शन करने वाले सीएचसी को पुरस्कृत करने के लिए डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए। अस्सी प्रतिशत मशीनरी सब्सिडी के बावजूद, सीएचसी को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनने के लिए मशीनों को पर्याप्त भूमि पर पराली प्रबंधन में इस्तेमाल करना पड़ेगा। पंजाब के 3 जिलों की 65 सीएचसी में किए गए सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के अनुसार, 48,000 रुपये की रियायती दर पर खरीदी गई सुपर सीडर मशीन को अगले पांच वर्षों में अपनी पूरी लागत निकालने के लिए प्रति वर्ष लगभग 105 एकड़ (42 हेक्टेयर) भूमि पर काम करने की जरूरत होती है। कई सीएचसी यह लक्ष्य पूरा नहीं कर पाती हैं और उनके पास सभी मशीनों के उपयोग की जानकारी भी नहीं होती है। चूंकि सभी सीएचसी को सब्सिडी का लाभ मिलता है, लेकिन अनिवार्य रिपोर्टिंग के कारण केवल सहकारी समितियों के पास ही इनकी मशीनरी के उपयोग की जानकारी मिलती है। पंजीकृत किसान समितियों, स्वयं सहायता समूहों, किसान-उत्पादक कंपनियों और ग्राम-स्तरीय उद्यमियों की सीएचसी में इसका रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। सीएसपॉसिबल या उन्नत किसान ऐप जैसे मौजूदा संसाधनों को विस्तार देकर मशीनों के इस्तेमाल की जानकारी और किसान के सुझावों के लिए एक केंद्रीकृत सूचना स्रोत बनाया जा सकता है।

तीसरा, सीएचसी को लाभदायक केंद्र बनाने के लिए क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों को चलाना चाहिए। सीएचसी को तकनीकी और व्यवसाय प्रबंधन प्रशिक्षण देने के लिए, कृषि और किसान कल्याण विभाग को राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के कौशल विकास केंद्र, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ जैसे संस्थानों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। इससे उन्हें लाभदायक व्यावसायिक केंद्र बनाने में मदद मिलेगी। कुदुम्बश्री और महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना जैसे कार्यक्रम, जो स्वयं सहायता समूहों के क्षमता निर्माण और सतत व्यवसाय विकास में मदद करते हैं, इनके लिए मॉडल का काम कर सकते हैं।

अंत में, पुरानी सीआरएम मशीनों के लिए एक इंड-ऑफ-लाइफ मशीन प्रबंधन योजना लानी चाहिए। पुरानी सीआरएम मशीनों को हटाने के लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया बनने से सीएचसी को अपने निवेश को कम लाभकारी मशीनों की जगह पर अधिक उत्पादक मशीनों में लगाने की सुविधा मिलेगी। रिसोर्स रिकवरी और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, व्हीकल स्क्रैपेज नीति (2021) के आधार पर ऐसी मशीनों को हटाने की योजना बनाई जा सकती है।

सीएचसी मॉडल में क्षमता है कि वह किसानों के लिए सतत और किफायती सीआरएम समाधानों को अंतिम सिरे तक पहुंचा सके। लेकिन सीएचसी को मशीनरी बैंकों के बजाय एक जीवंत व्यावसायिक केंद्रों में बदलने के लिए उनकी प्रणालियों को मजबूत बनाना बहुत जरूरी है, ताकि वे फसल अवशेष प्रबंधन के लिए एक विश्वसनीय, वन-स्टॉप रूरल रिसोर्स के रूप में कार्य कर सकें।

लेखिका काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर में रिसर्च एनालिस्ट हैं।

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