ज्ञानेन्द्र रावत
तम्बाकू एक ऐसा ज़हर है जो पच्चीस रोगों और चालीस तरह के कैंसर को जन्म देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो तम्बाकू के सेवन से इंसान जिन रोगों का शिकार होता है उनमें कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, फेफड़े और श्वांस सम्बंधी रोग प्रमुख हैं। कैंसर में खासतौर से मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, प्रोस्टेट ग्रंथि का कैंसर, पेट का कैंसर और ब्रेन ट्यूमर आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। तम्बाकू सेवन के मामले में बांग्लादेश 43.3 फीसदी के साथ पहले, रूस 39.3 फीसदी के साथ दूसरे, 34.6 फीसदी के साथ भारत तीसरे नम्बर पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन बरसों से तम्बाकू रहित विकास का नारा दे रहा है। उसके अनुसार सभी सरकारों का दायित्व है कि वे धूम्रपान के बढ़ते प्रचलन को खासकर बच्चों व नौजवानों पर विशेष ध्यान दें।
वयस्क व्यक्ति के नियमित धूम्रपान करने के कारण 50 फीसदी अधिक मृत्यु की संभावना रहती है। इनमें आधे से अधिक तो अधेड़ अवस्था में ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। ऐसे लोगों की उम्र 22 साल कम हो जाती है। दुनिया में धूम्रपान करने वालों की तादाद एक बिलियन है। इनमें 19 फीसदी वयस्क, जिसमें 33 फीसदी पुरुष और 6 फीसदी महिलाएं हैं। 80 फीसदी मध्य एवं निम्न आय वर्ग के हैं। 13 से 15 साल के धूम्रपान करने वाले युवाओं की तादाद 24 मिलियन है, जिनमें 13 मिलियन तम्बाकू उत्पाद का प्रयोग करते हैं। तम्बाकू के सेवन से दुनिया में 7 मिलियन लोगों की हर साल मौत होती है। 20वीं सदी में धूम्रपान से 100 मिलियन लोगों की मौत हुई जबकि आशंका है कि 21वीं सदी में स्थिति ऐसी ही रहेगी। अमेरिका में 40 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं। हमारे यहां प्रतिवर्ष 120 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं। हमारे देश में धूम्रपान करने वालों की तादाद दुनिया की 12 फीसदी है। यह जानते-समझते हुए कि तम्बाकू में कैंसर के 70 रसायन पाये जाते हैं। एक सिगरेट में लगभग 400 रसायन तथा 20 कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा हृदयरोग तथा कैंसर की संभावना 25 से 30 फीसदी अधिक होती है। इसके बावजूद 1998 से लेकर देश में तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों की तादाद में 36 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है।
ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल 130 करोड़ की आबादी में से 28.6 फीसदी लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं। 18.4 फीसदी युवा न सिर्फ तम्बाकू, बल्कि बीड़ी, खैनी, गुटका और अफीम का भी सेवन करते हैं। देश में तकरीबन 15 करोड़ पुरुष नियमित रूप से धूम्रपान की लत के शिकार हैं। 40 लाख के करीब 15 साल से कम उम्र के बालक इसके शिकार हैं। देश में मिजोरम ऐसा राज्य है जहां 34.4 फीसदी लोग धूम्रपान करते हैं जो पूरे देश में सबसे ज्यादा हैं। हमारे यहां हर साल 85,000 पुरुषों में और 34,000 महिलाओं में कैंसर के नए मामले सामने आते हैं, जिनमें 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में तम्बाकू का प्रयोग होता है। धूम्रपान के कारण महिलाओं में कैंसर के मामलों के अलावा मासिक धर्म के कम होने, विटामिन सी की कमी, शरीर पर बाल अधिक होने, चेहरे पर झुर्रियां होने और उनके दूध में निकोटिन की मात्रा बढ़ने की शिकायतें आम होती हैं। गर्भवती महिला के धूम्रपान करने से बच्चे के मंदबुद्धि होने, वजन कम होने और श्वास नली में विकार होने की आशंका बनी रहती है।
तम्बाकू 41 फीसदी कैंसर से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेवार है। एम्स के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर एसवीएस देव का कहना है कि एम्स में पिछले कई सालों से ऐसे रोगी आ रहे हैं जिनको ये बीमारी उनके आसपड़ोस, घर में रहने वाले लोगों से हुई। एम्स के ही एक अन्य प्रोफेसर डॉ. आलोक ठक्कर कहते हैं कि अब तो ऐसे बच्चों के केस आ रहे हैं जो घरवालों के धूम्रपान करने के कारण अस्थमा और कान की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इसका खुलासा करते हुए एमजीएम मेडिकल कालेज, जमशेदपुर की गायनी विभाग की प्रोफेसर डॉ. बनीता सहाय के अनुसार पहले महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले अधिक पाये जाते थे लेकिन अब बीते बरसों से बच्चेदानी के मुख के कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। देश में ऐसे मामले दूसरे देशों की तुलना में अधिक सामने आ रहे हैं। एम्स की प्रोफेसर डॉ. नीरजा बटाला का कहना है कि यदि 45 साल तक की महिलाओं को एचपीवी का टीका लग जाये तो बच्चेदानी के मुख के कैंसर से 80 फीसदी तक बचा जा सकता है।
तम्बाकू के सेवन से देश में हर साल दस लाख लोगों की मौत हो जाती है। देश में 2 अक्तूबर, 2008 से सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने पर पाबंदी है। ऐसा ही हाल तम्बाकू नियंत्रण एवं उद्योगों की जवाबदेही के लिए बनी अंतर्राष्ट्रीय संधि ‘फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबेको कन्ट्रोल’ का है। यह दुनिया में पहली संधि है जो जन स्वास्थ्य व उद्योगों की जवाबदेही के लिए बनी है। विडम्बना यह कि सिगरेट निर्माता कंपनियां उपभोक्ताओं को ही केन्द्र बिन्दु नहीं बना रहीं बल्कि सरकारी माध्यमों का भी अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं। नि:संदेह तम्बाकू से होने वाली हर मौत को रोका जा सकता है यदि तम्बाकू सेवन पर अंकुश लगे। इस दिवस का यही पाथेय है।