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ओपन-बुक परीक्षा के लिए जरूरी हैं शैक्षिक बदलाव

मौजूदा शिक्षा प्रणाली रटने पर ज़ोर देती है जो सीखने का आनंद और जिज्ञासा छीन रही है। जबकि जरूरत ऐसी पद्धति की है जो शिक्षार्थी में व्याख्यात्मक कौशल और आलोचनात्मक सोच निखारने को प्रोत्साहित करे। ओपन बुक एग्जाम मौजूदा प्रथा...
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मौजूदा शिक्षा प्रणाली रटने पर ज़ोर देती है जो सीखने का आनंद और जिज्ञासा छीन रही है। जबकि जरूरत ऐसी पद्धति की है जो शिक्षार्थी में व्याख्यात्मक कौशल और आलोचनात्मक सोच निखारने को प्रोत्साहित करे। ओपन बुक एग्जाम मौजूदा प्रथा के मुकाबले बेहतर है। हालांकि शिक्षकों को भी रचनात्मकता व नवाचार विकसित करने होंगे।

जब मैं सीबीएसई द्वारा 2026-27 शैक्षणिक सत्र से कक्षा 9 के लिए ओपन-बुक एग्ज़ाम (किताब खोलकर परीक्षा देना) शुरू करने के हालिया फैसले पर विचार करता हूं, तो मेरे सामने कई विश्लेषणात्मक प्रश्न उठ खड़े होते हैं। मुझे यह कहने में कतई झिझक नहीं है कि ओपन-बुक परीक्षाओं का विचार मौजूदा प्रचलित प्रथा के मुकाबले एक ताज़ा बदलाव है, जो अन्यथा युवा छात्रों में तीव्र भय और तनाव पैदा करती है, यह कोचिंग सेंटरों द्वारा संचालित ‘रेडीमेड उत्तर’ और ‘गाइड बुक’ के उद्योग को बढ़ावा देती है, साथ ही, सामूहिक नकल पर अंकुश लगाने के वास्ते निगरानी तंत्र को बढ़ावा देती है और परीक्षा केंद्र को एक प्रकार से रणभूमि में बदल देती है। तथापि, एक अध्यापक/शिक्षक के रूप में, मेरा कहना है कि ओपन-बुक परीक्षाओं की वास्तविक क्षमता तब तक सामने नहीं आ सकती जब तक हम असल में एक नवीन और क्रांतिकारी शैक्षणिक चलन के लिए प्रतिबद्ध न हों। इस संदर्भ में, मैं दो टिप्पणियां करूंगा।

सर्वप्रथम, जिद्दू कृष्णमूर्ति और श्री अरबिंदो जैसे विद्वानों के शैक्षिक दर्शन पर आधारित चुनिंदा वैकल्पिक विद्यालयों में पाए जाने वाले उल्लेखनीय अपवादों को छोड़कर, मौजूदा स्कूली संस्कृति याद‍्दाश्त क्षमता बनाने पर बहुत ज़ोर देती है—मसलन, युद्धों और संधियों की तिथियां/वर्ष जैसे ‘वस्तुनिष्ठ’ तथ्यों को याद करना या किसी वैज्ञानिक सिद्धांत अथवा किसी गणितीय समीकरण को। यह रट्टामार पढ़ाई को बढ़ावा देना और सीखने के अनुभव से आनंद, जिज्ञासा और आत्मचिंतनशीलता छीन लेना है। रबिन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में, यह तरीका किसी को परिष्कृत ‘तोता’ बनने और हर तरह के गैर-जरूरी सवालों के जवाब देने में ही काबिल बना सकता है—मसलन, मुगल सम्राट अकबर के दादा कौन थे? बेलनाकार वस्तु के वक्र सतह के क्षेत्रफल को मापने का सूत्र क्या है? या, तंजानिया की राजधानी का नाम क्या है?

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हालांकि, इस बात की कोई गारंटी नहीं कि ‘ठोस तथ्यों’ को इस तरह याद‍्दाश्त में ठूंसने से विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक सोच का विकास होगा, जो इतिहास की सामाजिक-राजनीतिक गतिशीलता को वास्तव में समझने के लिए ‘तथ्यों’ के पीछे देखने, किसी कवि द्वारा अपनी कविता में प्रयुक्त रूपक के गूढ़ भावार्थ को समझने या यूं कहें कि, वास्तविक जीवन की किसी व्यावहारिक समस्या को हल करने के लिए गणितीय सूत्र प्रयोग करने की प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाए।

ज़रूरत एक ऐसे शैक्षणिक अभ्यास की है जो युवा शिक्षार्थी में व्याख्यात्मक कौशल और आलोचनात्मक सोच की शक्ति निखारने को प्रोत्साहित करे, और अच्छी पुस्तकों के प्रति चस्का विकसित करे, वह, जो उसे निर्धारित पाठ्यपुस्तकों और आधिकारिक पाठ्यक्रम से आगे ले जा सके। यह रटने की मशीनी प्रक्रिया और उसके परिणामस्वरूप पाठ्यपुस्तकों और बाज़ार में उपलब्ध ‘नोट्स’ से नकल करने की प्रवृत्ति से हटाने में एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

द्वितीय, जैसाकि मैंने अपने अनुभव से सीखा है, शिक्षण कला सीखने और आत्म-खोज की एक सतत प्रक्रिया है। जब तक हम कक्षा में दिलचस्पी जगाने वाली पढ़ाई और नई सोच की भावना का संचार नहीं करते, हम युवा छात्रों को बड़े परिवर्तन के लिए प्रेरित नहीं कर सकते : यह यंत्रवत याद‍्दाश्त बनाने और रट्टा लगवाने की बजाय रचनात्मक अभिव्यक्ति और आलोचनात्मक सोच की ओर या फिर परीक्षा से भयग्रस्त होने की बजाय सीखने के आनंद की तरफ ले जाने वाली हो।

एक तरह से, पाउलो फ़्रेयर के मुहावरे को उधार लेते हुए, हमें संवादात्मक/सवाल-पूछने वाली शिक्षा का चलन बनाने की जरूरत है : एक ऐसी शैक्षणिक पद्धति जो शिक्षक और छात्र को साथ-साथ चलने और ज्ञान की सीमाओं का अन्वेषण करने के लिए ताजगी और आलोचनात्मक परीक्षण करने को प्रोत्साहित करे। असल बात तो यह है कि यदि हम अपने छात्रों से ओपन बुक परीक्षा लिखने के लिए कहें, तो हमें भी रचनात्मक सोचने और कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि जिस किस्म के प्रश्न हम पूछेंगे, उनके उत्तर गहरी समझ बनाए बिना न दे पाएंं, भले ही उन्हें अपनी किताबें और ‘नोट्स’ खोलने की अनुमति दी जाए।

यहां मैं अपनी बात इतिहास के एक ठोस उदाहरण से स्पष्ट करना चाहूंगा। कल्पना कीजिए बतौर एक शिक्षक मैं इस तरह से एक प्रश्न तैयार करता हूं ‘महात्मा गांधी की हत्या से निहितार्थों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें’। इस काम में, कोई ‘गाइड बुक’ या पाठ्यपुस्तक छात्र को यह ‘तथ्य’ याद दिलाने में मदद कर सकती है—नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने 30 जनवरी, 1948 को गांधीजी की हत्या की थी। लेकिन, इस प्रश्न का रचनात्मक और सार्थक उत्तर देने के लिए उसे विभाजन की भयावहता और नव-स्वतंत्रता प्राप्त राष्ट्र के समक्ष बनी राजनीतिक/सांस्कृतिक उथल-पुथल के बाद मिजाज क्या था, उसकी कुछ समझ बनानी पड़ेगा।

दूसरे शब्दों में, भले ही आप अपनी किताबें खुली रखें, आपको अपनी समझ बनाने में विचार, चिंतन और अभिव्यक्ति के गुणों की ज़रूरत पड़ेगी। वास्तव में, बतौर शिक्षक हमें ऐसे प्रश्न और पहेलियां तैयार करने की कला भी विकसित करने की ज़रूरत है जो छात्रों को आलोचनात्मक रूप से सोचने, मानक बना दिए गए ‘नोट्स’ से परे देखने और अपनी रचनात्मक क्षमता को प्रकट करने के लिए प्रोत्साहित करे। इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है—शिक्षकों को खुद को शिक्षित करना होगा।

क्या यह संभव होगा, खासकर ऐसे समय में जब बहु-वैकल्पिक प्रश्न (एमसीक्यू) के आधार पर मानकीकृत की गई परीक्षाओं को केंद्रित रखते हुए राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने अच्छे और रचनात्मक शिक्षकों की भूमिका को कम से कम कर रखा है?

बिना शक, एक क्रांतिकारी और अभिनव शैक्षणिक संस्कृति के माध्यम से हमारी कक्षाओं को बदलने के लिए हमें अच्छे और जीवंत स्कूल पुस्तकालयों की आवश्यकता है; हमें प्रसन्न और प्रतिबद्ध शिक्षकों की आवश्यकता है;और सबसे ऊपर उचित शिक्षक-छात्र अनुपात बनाने की आवश्यकता है। जैसे कि खुद के तौर-तरीकों को सही समझने वाले निजी स्कूल तेज़ी से लाभोन्मुख होते जा रहे हैं और शिक्षा का वस्तुकरण कर रहे हैं, हमें सरकार से पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता है—वित्तीय और नैतिक दोनों—ताकि एक सरकारी स्कूल भी अपने जीवंत/रचनात्मक शिक्षकों, अच्छे पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं पर गर्व महसूस कर सके, और सबसे बढ़कर एक ऐसी शिक्षण संस्कृति जो एक युवा शिक्षार्थी की आलोचनात्मक सोच को सक्रिय कर दे।

बतौर एक शिक्षक, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ओपन-बुक परीक्षा यदि यथेष्ट सावधानी से करवाई जाए , तो काम कठिन जरूर है लेकिन बेहद खूबसूरत भी है—लगभग जागृत बुद्धि, रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच बनने का उत्सव मनाने सरीखा।

इसलिए, मैं विश्वास करना चाहूंगा कि सीबीएसई अधिकारी ओपन-बुक परीक्षा के विचार को सफल बनाने के लिए आवश्यक शैक्षणिक नवाचार पर गंभीरता से विचार करेंगे। उन्हें शुभकामनाएं!

लेखक समाजशास्त्री हैं।

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