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समय पूर्व चेतावनी प्रणालियाें से कम होगी क्षति

अफगानिस्तान में भूकंप
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हाल ही में अफगानिस्तान में आए भूकंप में करीब 2200 लोगों की मौत हो गयी। दरअसल अफगानिस्तान भूकंप संवेदनशील हिंदुकुश शृंखला में है। यह भूकंप भारत के लिए भी चेतावनी है। कुछ भूकंपों को विकराल बनाने में मानवीय दखल जिम्मेदार है।

बीती 31 अगस्त की मध्य रात्रि के बाद पूर्वी अफगानिस्तान में 6.0 तीव्रता के आए भूकंप ने बड़ी त्रासदी रच दी। करीब 2200 लोग काल के गाल में समा गए और 3000 से ज्यादा घायल हो गए। भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर जलालाबाद नगर से 27 किमी पूर्व में था। इसकी गहराई मात्र 8 से 10 किमी थी। भूकंप से कई गांव मलबे में दबकर बर्बाद हो गए। सर्वाधिक तबाही नंगरहार में हुई है।

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अमेरिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने भी इसे 6.0 तीव्रता का उथला भूकंप बताया है। उथले भूकंप गर्भ से भूमि की सतह पर फूटने के साथ भीषण बर्बादी का कारण बनते हैं। तालिबान सरकार ने बचाव कार्य शुरू कर दिए, लेकिन भूकंप का प्रभाव ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में है, जहां पहुंच आसान नहीं। अफगानिस्तान में भूकंपों का आना लगा रहता है।

अफगानिस्तान हिंदुकुश पर्वत शृंखला में है, जहां यूरेशियन परत, अरेबियन परत और इंडियन परत के परस्पर टकराव से भूकंप आते हैं। इससे प्रतिवर्ष करीब 100 भूकंप आते हैं लेकिन 6.0 तीव्रता के ऊपर का भूकंप असाधारण होता है। यहां भारतीय परत का यूरेशियन परत से टकराव 5 मिमी प्रति वर्ष गति से होता है। नंगरहार और कुनार पूर्वी प्रांत पाकिस्तान सीमा पर हैं जहां फाल्ट लाइंस सक्रिय हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते इस पूरे क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा भी है।

भूकंप की चेतावनी प्रणालियां अनेक देशों में संचालित हैं लेकिन वह भू-गर्भ में हो रही हलचलों की सटीक जानकारी समय पूर्व देने में लगभग असमर्थ हैं। प्राकृतिक आपदाओं की जानकारी देने वाले अमेरिका, जापान, भारत, नेपाल, चीन और अन्य देशों में भूकंप आते ही रहते हैं। सवाल है, चांद और मंगल पर मानव बस्तियां बसाने का सपना और पाताल की गहराइयांं नाप लेने का दावा करने वाले वैज्ञानिक आखिर पृथ्वी के नीचे उत्पात मचा रही हलचलों की जानकारी पाने में क्यों असफल हैं? अमेरिका व भारत समेत अनेक देश मौसम व भूगर्भीय हलचल की जानकारी देने वाले उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित कर चुके हैं। हिंदूकुश क्षेत्र में आया यह भूकंप भारत के लिए भी चेतावनी है। यहां भी कई राज्य इस लिहाज से संवेदनशील है।

विशेषज्ञों व पर्यावरणविदों की मानें तो सभी भूकंप प्राकृतिक नहीं होते, बल्कि उन्हें विकराल बनाने में मानवीय दखल शामिल है। इसीलिए इस भूकंप को स्थानीय भू-गर्भीय विविधता का कारण माना गया है। प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन से छोटे भूकंपों की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। भविष्य में इन्हीं भूकंपों की व्यापकता और विकरालता बढ़ जाती है। पहले 13 सालों में एक बार भूकंप आने की आशंका रहती थी, लेकिन अब यह घटकर 4 साल हो गई। यही नहीं, भूकंपों का वैज्ञानिक आकलन करने से यह भी पता चला कि भूकंपीय विस्फोट में जो ऊर्जा निकलती है, उसकी मात्रा भी पहले की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली हुई है। अप्रैल, 2015 में नेपाल में आये भूकंप से 20 थर्मोन्यूक्लियर हाइड्रोजन बमों के बराबर ऊर्जा निकली थी। यहां हुआ प्रत्येक विस्फोट हिरोशिमा-नागासाकी में गिराए गए परमाणु बमों से भी कई गुना ज्यादा ताकतवर था। जापान और फिर क्वोटो में आए सिलसिलेवार भूकंपों से पता चला कि धरती के गर्भ में अंगड़ाई ले रही भूकंपीय हलचलें महानगरीय विकास और आबादी के लिए अधिक खतरनाक साबित हो रही हैं। ये हलचलें भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश की धरती के नीचे भी अंगड़ाई ले रही हैं। इसलिए इन देशों के महानगर भूकंप के मुहाने पर खड़े हैं। विकास में पर्यावरण की अनदेखी प्रकृति को प्रकोप में बदल रही है।

हैरानीजनक कि वैज्ञानिक आज तक ऐसी तकनीक ईजाद करने में असफल रहे, जिससे भूकंप की जानकारी आने से पहले मिल जाए। वैज्ञानिक मान्यता है कि करीब साढ़े पांच करोड़ साल पहले भारत और आस्ट्रेलिया को जोड़े रखने वाली भूगर्भीय परतें एक-दूसरे से अलग हो गईं और वे यूरेशिया परत से जा टकराईं। इस टक्कर से हिमालय पर्वतमाला अस्तित्व में आई और धरती की विभिन्न परतों के बीच दरारें बनीं। हिमालय पर्वत उस स्थल पर अब तक अटल खड़ा है, जहां पृथ्वी की दो परतें टकराकर एक-दूसरे के भीतर घुस गई थीं। परतों के टकराव की इस प्रक्रिया की वजह से हिमालय और उसके प्रायद्वीपीय क्षेत्र में भूकंप आते हैं। इसी प्रायद्वीप में ज्यादातर एशियाई देश बसे हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि रासायनिक क्रियाओं के कारण भी भूकंप आते हैं। भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किमी भीतर होती है। यह वैज्ञानिक धारणा भी बदल रही है कि भूकंप की विनाशकारी तरंगें जमीन से कम से कम 30 किमी नीचे से चलती हैं। ये तरंगें जितनी कम गहराई से उठेंगी, उतनी तबाही ज्यादा होगी और भूकंप का प्रभाव अधिक बड़े क्षेत्र में दिखेेगा।

मैक्सिको में सितंबर, 2017 में आया भूकंप धरती की सतह से महज 40 किमी नीचे से उठा था। इसलिए इसने भयंकर तबाही की थी। तिब्बत में आए भूकंप की गहराई मात्र 10 किमी आंकी गई और अब अफगानिस्तान का भूकंप मात्र 8-10 किमी गहरे से उठा था।

दरअसल, सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने व कम दबाव के कारण कमजोर पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में जब चट्टानें दरकती हैं तो भूकंप आता है। कुछ भूकंप धरती की सतह से 100 से 650 किमी के नीचे से भी आते हैं, लेकिन तीव्रता धरती की सतह पर आते-आते कम हो जाती है, इसलिए बड़े रूप में त्रासदी नहीं झेलनी पड़ती।

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