अर्श से लेकर फर्श तक श्वान विमर्श
आज मैं कहां नहीं हूं? सब जगह हूं। सड़क से लेकर संसद तक सब जगह। मुझको लेकर जब टीवी पर बहस होती है तो बंधु! देखकर बहुत आनंद आता है।
पहले वह सड़क पर पसरा रहता था, पर जबसे कानून उस पर सख्त हुआ है, तब से वह मेरे दरवाजे पर पसरना शुरू हो गया है। कुत्तों का क्या! जहां ली सांस, वहीं उनका परमानेंट निवास।
जब उसने मेरा घर से बाहर निकलना मुश्किल-सा कर दिया तो एक शाम मैंने उससे सानुनय निवेदन किया, ‘हे आदरणीय! देख रहा हूं जबसे कानून तुम पर सख्त हुआ है, तबसे तुम और भी अधिक कुत्ते हो रहे हो। गली वालों से तुमने उस दिन से ही डरना छोड़ दिया था जिस दिन तुम गली में आए थे, पर क्या अब तुम्हें कानून का भी डर नहीं?’ अपने लिए मेरे मुख से आदरणीय, परमादरणीय जैसे संबोधन सुन तब कुत्ता अपने कुत्तेपन को भूल आदमियों की तरह संभ्रांत होता बोला, ‘मैं तो कुत्ता हूं, सो हर मौसम में कुत्ता ही रहूंगा बंधु! मैं उन आदमियों में से नहीं जो आदमी होते हुए भी अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए आदमी से सहज कभी कुत्ता हो जाते हैं तो कभी रंगे सियार! कभी गिरगिट हो जाते हैं तो कभी गीदड़! आस्तीन का सांप तो खैर वह बिना आस्तीन वालों के भी हुए रहते हैं,’ कह कुत्ता उसी तरह अपनी टांग पर टांग डाले लेटा रहा। लग रहा था जैसे आज वह मुझसे बहस करने पर आमादा हो।
‘क्या तुम्हें पता नहीं कि...’ मैंने उसकी संभ्रांत आंखों में अपनी आंखें नीची कर डालते पूछा तो वह शान से गर्दन ऊंची कर बोला, ‘सब पता है। पर बस, खुशी इस बात कि है कि आवारा होने के बाद भी आजकल मैं टीवी से लेकर अखबारों में राष्ट्रीय बहस का केंद्र बना हूं। इन दिनों जिधर देखो, मुझ पर बहस हो रही है, मुझ पर विमर्श हो रहा है। इन दिनों दूसरे सारे विमर्श हाशिये पर चले गए हैं। सबसे आगे है तो बस, कुत्ता विमर्श। भ्रष्टाचार, जीडीपी, युद्ध, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे आज मेरी वजह से गौण हो गए हैं। देखो तो, देश के तमाम बुद्धिजीवी दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श करना छोड़ मुझ पर कितनी बुद्धिजीविता से विचार विमर्श कर रहे हैं? आज मैं कहां नहीं हूं? सब जगह हूं। सड़क से लेकर संसद तक सब जगह। मुझको लेकर जब टीवी पर बहस होती है तो बंधु! देखकर बहुत आनंद आता है। इतने तो हम भी अपनी गली में दूसरी गली के कुत्ते के आने पर उस पर नहीं भौंकते जितना कुत्ता डिबेट में भाग लेने वाले एक दूसरे को काटने को आतुर एक-दूसरे पर भौंकते हैं।’
‘मतलब?’
‘तुम लोगों के पास हर समस्या का समाधान केवल उस पर बहस है, चर्चा है। बहस, चर्चा के लिए उस पर किया जाने वाला खर्चा है। अब खूब बनाओ खाओ हमारे नाम पर भी बजट। खूब करो चर्चा! खूब करो बहस! अगली समस्या के आने तक! जय समस्या! जय बहस,’ उसने मुस्कुराते हुए कहा और पता नहीं किस ओर करवट बदल ली, ऊंट की तरह।