अरुण नैथानी
निस्संदेह यदि जीवन का लक्ष्य हासिल करने के लिये कोई मन में संकल्प कर ले तो देर-सवेर सफलता मिल ही जाती है। कहते हैं कि उसकी मदद के लिये सारी कायनात भी जुट जाती है। ओडिशा के जयकिशोर प्रधान इसकी मिसाल हैं। उनका छात्र जीवन में एक सपना था कि डॉक्टर बनूंगा। एक बार प्रवेश परीक्षा भी दी, लेकिन कामयाबी न मिली। परिस्थितिवश फिर मौका नहीं मिला और दूसरी नौकरी कर ली। लेकिन मन के किसी कोने में कसक बाकी थी कि डॉक्टर बनना है। फिर पिता बीमार हुए तो उपचार की विसंगतियों ने उद्वेलित किया कि डॉक्टर बनना है लेकिन तब तक डॉक्टर बनने की उम्र निकल गई थी। फिजिक्स से आनर्स बीएससी करने के बाद कुछ समय अध्यापन भी किया। फिर बैंक में नौकरी की। पहले इंडियन बैंक में और फिर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में। फिर 30 सितंबर 2016 को उपप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए लेकिन दिल में डॉक्टर बनने की कसक बाकी रही।
कालांतर जयकिशोर ने सोचा कि जो मैं न कर सका, शायद मेरी बच्चियां कर पायें। उन्होंने जुड़वा बेटियों के जरिये अपने सपने को पूरा करने का मन बनाया। उन्हें प्रेरित किया और उनकी मदद की। कालांतर दोनों बेटियों ने बीडीएस यानी डेंटल साइंस की परीक्षा पास कर ली।
लगता था कि कुदरत भी जयकिशोर के सपने को हकीकत बनाने की कोशिश में लगी थी। वर्ष 2019 में राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा यानी नीट में आयु सीमा को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फैसला आने तक आयु सीमा हटा ली तो मानो जयकिशोर के मन की मांगी मुराद पूरी हो गई। उन्होंने पहली बार नीट की परीक्षा दी क्योंकि उन्होंने बिना तैयारी के परीक्षा दी थी तो कामयाबी नहीं मिली। फिर उनकी बेटियों खासकर बड़ी बेटी जया पूर्वा ने उन्हें नीट की परीक्षा देने के लिये प्रेरित किया। जयकिशोर ने इस बार तैयारी की और पिछली परीक्षा के अनुभव ने उनमें आत्मविश्वास भरा। फिर सिंतबर 2020 में उन्होंने प्रवेश परीक्षा दी और जब दिसंबर में प्रवेश परीक्षा का परिणाम आया तो उनका चयन हो चुका था। लेकिन इस बीच उनकी दुनिया बदल चुकी थी। जिस बेटी जय पूर्वा ने उन्हें एमबीबीएस करने के लिये ज्यादा प्रेरित किया था, उसकी एक दुर्घटना में मौत हो चुकी थी। यह दुख उन्हें जीवनभर इस कामयाबी के साथ सालता रहेगा।
जयकिशोर प्रधान का सौभाग्य है कि उन्हें घर से महज पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज वीर सुरेन्द्र साईं मेडिकल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च अर्थात विमसार में प्रवेश मिल गया। जहां इस सत्र में उनकी पढ़ाई शुरू होगी। उनकी बेटी की उम्र के छात्रों के साथ उन्हें पढ़ना होगा। छोटी उम्र के शिक्षकों का छात्र बनना होगा। वे कहते हैं कि मुझे विश्वास है कि छात्र मुझे सहपाठी के रूप में देखेंगे और गुरु तो गुरु है, उनका सम्मान करना ही होगा। हालांकि उन्होंने तय नहीं किया है कि घर से पढ़ाई करेंगे या छात्रावास में रहकर।
जब उनसे पूछा गया कि इस उम्र में क्या वे चिकित्सा को एक पेशे के रूप में अपनायेंगे तो उनका कहना था कि बैंक की नौकरी पूरी करने के बाद उनका पेशेवर जीवन खत्म हो चुका है। इतनी पेंशन मिल जाती है, जिससे जीवनयापन हो सके। उनकी इच्छा है कि वे समाज के वंचित वर्ग की मुफ्त सेवा करें ताकि कोई गरीब पैसे के अभाव में इलाज से वंचित न रहे। जिन मरीजों के पास इलाज के लिये पैसे नहीं होंगे उनका उपचार करके मुझे प्रसन्नता होगी। यदि मैं ऐसा कर पाया तो समझूंगा कि बैंक से सेवानिवृत्त होने के बाद भी मेरा जीवन सार्थक हो गया। निस्संदेह जय किशोर प्रधान देश में सबसे अधिक उम्र में एमबीबीएस करने वाले शख्स होंगे लेकिन उनका जुनून देखते ही बनता है।
दरअसल, जयकिशोर प्रधान का पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा है। अभी भी जब उनका एमबीबीएस की पढ़ाई के लिये चयन हो गया है, उनका संघर्ष कम नहीं हुआ है। उन्होंने न केवल उम्र की ही बाधा पार की बल्कि अपनी शारीरिक अपूर्णता की कसक के बीच प्रवेश परीक्षा पास की। दरअसल, वर्ष 2003 में एक गंभीर सड़क दुर्घटना में उनको बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। इस सड़क दुर्घटना में उनका एक पैर बेकार हो गया था। हालांकि वे एक स्प्रिंग की मदद से चल लेते हैं लेकिन उनका सामान्य चलना-फिरना सहज नहीं है। लेकिन इन तमाम बाधाओं के बावजूद उनके हौसले बुलंद हैं। उन्हें इस बात का अहसास बखूबी है कि जब तक उन्हें डिग्री हासिल होगी तब तक उनकी उम्र सत्तर के करीब पहुंच चुकी होगी। लेकिन वे फिर भी हौसले से भरे हैं कि मैं समाज में गरीबों का इलाज करके अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर पाऊंगा। आज वे तमाम ऐसे लोगों के लिये प्रेरणापुंज बने हैं जो देशकाल परिस्थिति के चलते अपने सपने पूरे नहीं कर पाते। लेकिन यदि मन में संकल्प हो और उसे पूरा करने का पुरुषार्थ हो तो देर-सवेर सपने सच हो सकते हैं। सपनों के पूरे होने में उम्र बाधा नहीं बन सकती।