महेन्द्र वर्मा
यह युग विज्ञान का युग है। हमारे दैनिक जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप में विज्ञान का दखल है। विज्ञान और वैज्ञानिक सोच ने सामान्य व्यक्ति के जीवन को गहराई तक प्रभावित किया है क्योंकि विज्ञान प्रकृति की विशेषताओं का ज्ञान है। मनुष्य प्रकृति का ही एक अंग है। हमारे देश में आधुनिक विज्ञान का प्रवेश लगभग 150 साल पहले हुआ था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में जिस गति से वैज्ञानिक और शैक्षिक प्रगति हुई उसने सामान्य जन-मानस की परंपरावादी और रूढ़िवादी सोच को कुछ हद तक परिवर्तित कर दिया और अंधविश्वासों के प्रभाव को कम कर दिया। 50 साल पहले गांवों में भूत-प्रेतों से संबंधित घटनाएं रोज घटती थीं, अब यदा-कदा ही सुनाई देती हैं। हालांकि अनेक रूढ़ियां और अंधविश्वास अभी भी समाज में व्याप्त हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आशय में वैज्ञानिक सोच, वैज्ञानिक समझ, वैज्ञानिक भावना, वैज्ञानिक साक्षरता, वैज्ञानिक प्रवृत्ति, वैज्ञानिक मिज़ाज, वैज्ञानिक स्वभाव जैसी अवधारणाएं भी समाहित हैं। वैज्ञानिक समझ का बुनियादी रूप से आशय यह है कि कोई व्यक्ति यह निर्णय कर सके कि किस जानकारी पर भरोसा किया जाए, किसी घटना या तथ्य के बारे में संदेह व्यक्त कर सके, गहराई से विचार कर सके, जिज्ञासा व्यक्त कर सके और प्रश्न पूछ सके। वैज्ञानिक समझ का यह आशय नहीं है कि कोई व्यक्ति हर एक तथ्य के लिए स्वयं प्रमाणों का गहन अध्ययन करे। ज्ञान का क्षेत्र इतना विस्तृत हो चुका है कि कोई महाविद्वान भी सब कुछ जानने का दावा नहीं कर सकता। वैज्ञानिक समझ का संबंध अवलोकन और अंतर्दृष्टि, तर्क और अंतर्ज्ञान, व्यवस्थित और रचनात्मक कार्यशैली से है। स्वतंत्रता के बाद सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं ने अब तक आम लोगों के बीच विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के प्रचार-प्रसार के लिए जो प्रयास किया वह अपर्याप्त साबित हुआ है। आज सरकारी टेलीविज़न और इंटरनेट के चैनलों में भी विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। किंतु इन सब उपायों का ज़मीनी स्तर पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं हुआ।
इस वैज्ञानिक युग में भी निरक्षरता और सांप्रदायिक कट्टरवाद विज्ञान पर हावी हैं। यही कारण है कि हम वैश्विक विज्ञान शक्तियों की सूची में पीछे हैं। निजी टेलीविज़न चैनलों में भविष्यफल, भूत-प्रेत और अनेक प्रकार के चमत्कारों से युक्त अंधविश्वासों और रूढ़ियों से संबंधित कार्यक्रम अवैज्ञानिकता को ही बढ़ावा दे रहे हैं। वैज्ञानिक सोच-समझ को बढ़ावा देने के लिए उसी तरह से व्यापक कार्यक्रम क्रियान्वित करना होगा जैसे पहले दो-तीन दशकों तक साक्षरता अभियान चलाया गया था।
साभार : शाश्वत-शिल्प डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम