युगों-युगों से बादल फटने की प्राकृतिक घटनाएं घाटियों, छोटी नदियों-नालों के निर्माण में अपनी भूमिका निभाती आ रही हैं। प्रकृति से मानवजनित खिलवाड़ और अतिक्रमण के कारण ये घातक होते चले गए। बादल फटने की आवृति और तीव्रता में बढ़ोतरी के पीछे मौसम परिवर्तन मुख्य कारक है। यूं तो बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं पहाड़ों में होती हैं, लेकिन मैदानों में भी होती आई हैं। साल 2013 में केदारनाथ में बादल फटने से लगभग बड़ी जनहानि और करोड़ों रुपये मूल्य की जमीन-जायदाद का नुकसान हुआ था। कुछ दिन पहले अमरनाथ गुफा की ठीक बगल में बादल फटने से भी काफी जानी-माली-भूमि नुकसान हुआ है। जुलाई, 2005 में मुंबई में बादल फटने से शहर की गतिविधियां थम गई थीं, सैकड़ों लोगों की जान गई और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा था।
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, जब एक छोटे क्षेत्र में वर्षा-वृष्टि की मात्रा 10 सेंटीमीटर प्रति घंटा दर्ज हो तो उसे बादल-फटना कहा जाता है। तथापि, बादल फटने पर अनेकानेक प्रबंधनों, राहत और जोखिम घटाने के लिहाज से 10 से.मी. प्रतिघंटा से कम तीव्रता वाली बारिश को भी बादल फटने की श्रेणी में रखा जा सकता है।
जिस तरह बादल फटने की आवृति ने खतरनाक अनुपात धारण कर लिया है, उनका रणनीतिक प्रबंधन बेहतर करने की जरूरत है। आज की तारीख तक, घटना होने के बाद मुख्य जोर बचाव कार्य, निकासी और राहत उपायों पर केंद्रित होता आया है, जबकि आपदा प्रबंधन संहिता यानी तैयारी, प्रतिक्रिया, उबरना और राहत पर काम किया जाना चाहिए, जिसके तहत घटना से पहले वाले आरंभिक संकेत भांपकर चेतावनी, राहत और जोखिम घटाने के उपाय शुरू किए जाने पर बल है। आपदा-उपरांत आकलन के अध्ययन दर्शाते हैं कि इस किस्म के विपत्ति-पूर्व उपाय करना सुरक्षित, आर्थिक रूप से व्यावहारिक और फायदेमंद रहते हैं। जिन जगहों पर बादल फटने की संभावना अधिक है उनकी शिनाख्त और जोखिम मानचित्रण करके, इन जगहों पर प्रबंधन कार्य पहले ही शुरू किया जा सकता है।
वास्तविक समय में बादल फटने की पूर्व चेतावनी देना वाला तंत्र अभी तक विकसित नहीं हो पाया है। डॉपलर राडार, जो कि मौसम में अप्रत्याशित बदलावों का पूर्वानुमान 3 से 6 घंटे पहले लगा लेते हैं, बादल फटने की पूर्व-चेतावनी में सहायक हो सकते हैं। यह प्रणाली पश्चिमी और पूरबी हिमालयी पर्वतों के अलावा मैदानों में भी कुछ जगहों पर स्थापित की जा चुकी है, जिनकी गिनती फिलहाल 33 है। भारी बारिश या बर्फबारी से संबंधित बहु-आपदा पूर्व-चेतावनी तंत्र में निरंतर बढ़ते उपयोग से इनकी उपस्थिति बढ़ती जा रही है। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान विभाग इन्हें और उन्नत करवाकर संख्या 90 करना चाहता है ताकि भारी बारिश एवं बादल फटने का पूर्वानुमान कम से कम दो दिन पहले लगाने में मदद मिले और समय रहते इंसान-पशुधन-कीमती सामान हटाया जा सके।
वर्षा ऋतु से पहले इंसानी और पशुधन का जानी नुकसान कम से कम हो, यह सुनिश्चित करने की खातिर हर साल पूर्व तैयारी करना एक अच्छी रिवायत की शुरुआत हो सकती है। यह कदम बादल फटने का जोखिम घटाने में आधा काम पूरा कर देंगे। राहत उपाय जैसे कि लोगों-पशुओं को घाटी से निकालकर सुरक्षित ऊंचाई पर पहुंचाना, बुनियादी ढांचे की उसारी, नदी-नालों से परे हटकर और बाढ़-सतह से ऊपर घर एवं व्यावसायिक भवन निर्माण, बरसाती एवं बाढ़ जल के बेहतर निस्तारण-प्रबंधन से आपदा जनित हानि न्यूनतम की जा सकती है। ढलानों से आने वाले पानी के बहाव का प्रबंधन, जो पर्वतीय बृहद परिदृश्य को स्थायित्व दे और भू-स्खलन, अचानक उफानी वेग, गाद प्रवाह और जमीन धंसने जैसी घटनाएं रोकने में मददगार हो, वह अपनाने की जरूरत है। यह रणनीतिक उपाय पहले उन जगहों पर क्रियान्वित किए जाएं, जहां विपत्ति आने की संभावना सबसे अधिक हो।
इसी तर्ज पर मैदानों में भी, बरसाती पानी का निर्बाध प्रवाह अत्यधिक वर्षा एवं बादल फटने पर इंसानी, पशु और ढांचों की ज्यादा हानि रोक सकता है। पंचायती राज निकायों के स्रोतों की क्षमता और काबिलियत, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, गैर-सरकारी संस्थान और समुदायों को साथ जोड़कर, अचानक बाढ़ और बादल फटने के बाद वाले राहत प्रबंधनों को लगातार सुधारा और सुदृढ़ किया जा सकता है। भारी बरसात और बादल फटने के बाद उभरने वाले छूत के रोगों से भी निपटना जरूरी है।
यदि पूर्व-आपदा तैयारी के बाद भी बादल फटता है तब प्रतिक्रिया और बचाव कार्य करना एक आवश्यकता है। किसी भी आपदा से निपटने में केंद्रीय सरकार का राष्ट्रीय और राज्यों के आपदा प्रतिक्रिया बल और भारतीय सशस्त्र बल विश्वभर के सर्वश्रेष्ठ आपदा-सहायता तंत्रों में एक माने जाते हैं। फंसे लोगों और पशुओं को अपने परिष्कृत उपकरणों के साथ ढूंढ़ निकालने और डूबते लोगों को बचाने वाले प्रशिक्षित गोताखोरों के साथ यह बल समय रहते पूर्व-चेतावनी मिलने पर आपदा से पहले इंसान-पशुओं को सुरक्षित जगह पंहुचाने और विपत्ति के बाद वाले समय में लोगों-जीवों को बचाते हैं।
जहां कहीं आपदा राहत राशि आवंटन का कंप्यूटरीकरण होना बाकी है, उसे पूरा किया जाए ताकि जरूरतमंदों को धन तुरंत मिल पाए। विपत्ति-उपरांत जटिलताएं रोकने के लिए फौरी राहत के तौर पर भोजन, पानी, दवाएं मुहैया करवाने की जरूरत होती है। सतत आजीविका पुनः बनाने और लोगों का जीवन सामान्य करने हेतु पुनर्वास अभियानों का क्रियान्वयन किया जाए। जहां कहीं हानि बहुत ज्यादा मात्रा में हो, पुनर्निमाण एवं पुनर्वास युद्ध स्तर पर करने होते हैं। यह तमाम गतिविधियां आखिरी व्यक्ति तक पंहुचें, इसके लिए भागीदारी वाली निगरानी बनाकर राहत कार्य की प्रभावशीलता का वास्तविक समय में पता लगाया जा सकता है।
बादल फटने की संभावना कम करने वाला मुख्य ध्येय प्राप्त करने की खातिर जोखिम घटाऊ और राहत उपायों को विकासशील नीतियों का हिस्सा बनाना, योजना एवं अभ्यास शामिल हैं। बादल फटने को अचानक बाढ़, भूस्खलन और बवंडर से जोड़कर इनके प्रबंधन की योजना एवं क्रियान्वयन समयबद्ध तरीके से किया जाए। इस बाबत भारत सरकार द्वारा दी गई मदद का यथेष्ट इस्तेमाल कर राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें आपदा प्रबंधन में समावेशी लचीलेपन वाला तंत्र बनाएं।
आपदा प्रबंधन के इन तमाम उपायों का संयुक्त क्रियान्वयन करके, जैसा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति 2009 में शामिल किया गया है, बादल फटने पर समुचित प्रतिक्रियात्मकता बनाई जाए, यह कार्य संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम घटाने पर सेन्डाई सुझावों का पालन करना भी होगा, जिसकी प्राप्ति वर्ष 2030 से पहले करने में बहुत से मुल्क प्रयासरत हैं।
लेखक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के परियोजना निदेशक रहे हैं।