महाराष्ट्र के नासिक की सताना, नांदगांव आदि मंडियों में प्याज के दाम पचास रुपये क्िवंटल तक गिर गए हैं। हालांकि प्याज की उत्पादन लागत 15 से 18 रुपये प्रति किलो है। कई किसान निराश होकर फसल तक नहीं खोद रहे। महाराष्ट्र में कोई डेढ़ करोड़ लोग खेती-किसानी से अपना जीवन चलाते हैं और इनमें से दस फीसदी अर्थात्ा 15 लाख लोग केवल प्याज उगाते हैं। बरसात का खतरा सिर पर है और आढ़तिया अब उतना ही माल लेगा जिसे वह भंडारण कर सके। चीन के बाद भारत दुनिया में सर्वाधिक प्याज पैदा करने वाला देश है और यहां से हर साल 13 हजार करोड़ टन प्याज का निर्यात होता है, लेकिन यहां की राजनीति में आए दिन प्याज की कमी और दाम आंसू लाते रहते हैं। यह गौर करना होगा कि जलवायु परिवर्तन की मार से प्याज की खेती को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। दुर्भाग्य है कि हमारे देश में प्याज की मांग व उत्पादन इतनी बड़ी समस्या नहीं है जितना संकट में प्याज की बंपर फसल होने पर उसे सहेज कर रखना है। आमतौर पर इसकी बोरियां खुले में रहती हैं व बारिश होते ही इनका सड़ना शुरू हो जाता है।
भारत में प्याज की लगभग 70 फीसदी पैदावार रबी में होती है, यानी दिसंबर-जनवरी में रोपाई और मार्च से मई तक फसल की आवक। खरीफ यानी जुलाई-अगस्त में बोने व अक्तूबर-दिसंबर तक आवक का रकबा बहुत कम है। पिछले कुछ सालों में प्याज के बाजार में हुई उठापटक पर गौर करें तो पाएंगे कि जनवरी, 2018 में कम आवक का कारण महाराष्ट्र में चक्रवात, पश्चिमी समुद्री तट पर कम दबाव के क्षेत्र बनने पर असामयिक बरसात के चलते शोलापुर, नासिक, अहमदनगर आदि में फसल बर्बाद होना था। नवंबर-2019 से जनवरी, 2020 तक भी प्याज के दाम बेशुमार बढ़े थे और उसका कारण बेमौसम व लंबे समय तक बरसात होना बताया गया था। सन् 2020 में खरीफ की फसल भी भयंकर बरसात में धुल गई थी। इस साल कर्नाटक व महाराष्ट्र में सितंबर में बरसात हो गई थी। फरवरी, 2021 में प्याज के आसमान छूते दाम व विदेश से मंगवाने का कारण जनवरी, 2021 में उन इलाकों में भयंकर बरसात होना था, जहां प्याज की खेती होती है।
इन दिनों मध्य प्रदेश में प्याज की बंपर फसल किसानों के लिए आफत बनी है। शाजापुर मंडी में एक सप्ताह में 27 हजार बोरा प्याज खरीदा गया। यहां आगरा बाॅम्बे रोड पर ट्रैक्टर-ट्रालियों की लंबी कतार है व कई किसान माल बेचे बगैर लौट रहे हैं। यहां पिछले साल भी किसान वाजिब दाम न मिलने के कारण आंदोलन कर चुके हैं। सनद रहे कि राज्य में हर साल लगभग 32 लाख टन प्याज होता है और उसके भंडारण की क्षमता महज तीन लाख टन यानी दस फीसदी से भी कम है। महाराष्ट्र की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासल गांव में शनिवार को 1233 वाहनों से 17 हजार 826 क्विंटल प्याज की आवक हुई और इसका रेट अधिकतम 1600 रुपये व न्यूनतम 1000 रुपये रहा। किसान के लिहाज से यह दाम बहुत कम है लेकिन किसान इसे जमा करके नहीं रख सकता है और यदि इस समय थोड़ी भी बरसात हो गई तो इस मंडी का अधिकांश माल सड़ कर बदबू मारने लगेगा। एक फौरी अनुमान है कि हर साल हमारे देश में 70 लाख टन से अधिक प्याज खराब हो जाता है, जिसकी कीमत 22 हजार करोड़ होती है। केंद्र सरकार के उपभाेक्ता मामलों के मंत्रालय ने वर्ष 2022 की आर्थिक समीक्षा में बताया है कि सन् 2020-21 में कोई 60 लाख टन प्याज सड़ने या खराब होने का आकलन किया गया था जो सन् 2021-22 में अनुमानित 72 लाख टन है। इस समय देश में प्याज की उपलब्धता 3.86 करोड़ टन है, जबकि 28 लाख टन आयात किया गया है। लेकिन दुर्भाग्य है कि इस स्टॉक को सहेजने के लिए माकूल कोल्ड स्टोर्स नहीं हैं। महज दस फीसदी प्याज को ही सुरक्षित रखने लायक व्यवस्था हमारे पास है, साथ ही प्याज उत्पादक जिलों में कोई खाद्य प्रसंस्करण कारखाने नहीं हैं। किसान अपनी फसल लेकर मंडी जाता है और यदि उसे माल बेचने के लिए सात दिन कतार में लगना पड़े तो माल-वाहक वाहन का किराया व मंडी के बाहर सारा दिन बिताने के बाद किसान को कुछ नहीं मिलता, फलस्वरूप आए दिन सड़क पर फसल फेंक देने या खेत में ही सड़ा देने की खबरें आती हैं।
यह जान लें कि प्याज के कोल्ड स्टोरेज में अन्य कोई उत्पाद रखा नहीं जा सकता। इसके बाद प्याज की फसल जिन दिनों में आती है, उस समय प्रायः बरसात होती है और गीला प्याज भंडारण के लिए रखा नहीं जा सकता। हालांकि सरकार ने कम से कम दो हेक्टेयर में प्याज उगाने वाले किसानों को 50 मीट्रिक टन क्षमता के भंडारण गृह बनाने पर कोई पचास फीसदी सबसिडी का ऐलान किया है लेकिन अभी इसके जमीनी परिणाम सामने नहीं आए हैं। आज जरूरत है कि वैज्ञानिक, तकनीकी संस्थाएं कम लागत और किफायती संचालन खर्च की ऐसी तकनीक विकसित करें जिससे किसान अपनी फसल भी सुरक्षित रख सके, साथ ही अतिरिक्त कमाई भी हो। किसान को केवल उसके उत्पाद का वाजिब दाम ही नहीं चाहिए, वह यह भी चाहता है कि उसके उत्पाद का सड़ कर या फेंक कर अनादर न हो और उससे लोगों का पेट भरे।