देखो जी, अचानक ही हम मालामाल हो गए। जी नहीं, ऐसा नहीं है कि कोई गड़ा खजाना मिल गया हो, कोई लॉटरी खुल गयी हो, कोई नौकरी मिल गयी हो या काम-धंधा ही जम गया हो। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, क्योंकि गड़ा खजाना तो आजकल सेठों को ही मिलता है, खनिजों की खदानों के लाइसेंस के रूप में। रही लॉटरी की बात तो वह तो बच्चों के दाखिले के मामले में ही नहीं खुलती।
फिर नौकरियां तो कोरोना ने ऐसे खायी हैं, जैसे जिंदगियां, और काम-धंधे उजड़ ही गए हैं। तो मालामाल हम ऐसे नहीं हुए कि ऊपर वाले ने छप्पर फाड़ के दिया हो। आजकल छप्पर फाड़ने का काम या तो सरकार करती है या अतिवृष्टि, जिससे छप्पर फटने से धन मिलना तो दूर की बात, छप्पर तक हाथ से चला जाता है। भगवान ने छप्पर फाड़कर देने का यह काम करना छोड़ दिया है।
तो कुल मिलाकर हम धन दौलत के मामले में मालामाल नहीं हुए हैं। हम तो मालामाल हुए हैं हेरोइन के मामले में। पता चला कि कंटेनर भर-भर के हेरोइन देश में आ रही है। अभी तक हम कंटेनरों के बारे में इतना ही जानते थे कि सरकार किसानों का रास्ता रोकने के लिए उनका इस्तेमाल करती है और इस बार तो स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की सुरक्षा में भी कंटेनरों का इस्तेमाल हुआ।
हेरोइन तो भैया पुड़िया में बिकती ही सुनी थी और वो भी सुशांत सिंह राजपूत वाले मामले में जब मीडिया वाले ड्रग्स दो-ड्रग्स दो का उन्मादी आलाप कर रहे थे। उन्होंने ही बताया था कि किसके यहां दस-पांच ग्राम की पुड़िया में हेरोइन मिली है। हालांकि उससे पहले उड़ता पंजाब वालों ने भी बताया था कि पड़ोसी मुल्क वाले एक-दो किलो के पुड़ों में भी चिट्टा अर्थात हेरोइन भेजते थे। तो भैया जो चीज दस-पांच ग्राम की पुड़ियाओं में मिलती थी और थोक में भी किलो-दो किलो से ज्यादा नहीं मिलती थी, वह जब कंटेनरों में भरकर टनों में पहुंचने लगे तो इसे मालामाल होना नहीं तो और क्या कहा जाएगा।
देने वाले ने सचमुच छप्पर फाड़कर दिया, लेकिन जिसका छप्पर फटा वह छप्पर वाला तो बिल्कुल भी नहीं। अच्छी बात यह है कि उन पर कोई इल्जाम नहीं लगा रहा है। न राजनीति वाले और न मीडिया वाले। फिर सरकार तो लगाए ही क्यों?
खैर, जो भी हो, पूरे मुल्क को उड़ता पंजाब बनाने की पूरी तैयारी है। वैसे तो एक पुरानी देहाती कहावत यूं है कि ज़हर कम क्या और ज्यादा क्या! लेकिन जहां ज़हर टनों में आ रहा हो, उसके बारे में तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि भगवान ही मालिक!