बदलाव के बीज से ही लहलहाएंगी फसलें
हमारे राजनेता और नीति-निर्माता क्यों नहीं चीन से यह बात सीखते कि कैसे उसने 12 करोड़ हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन पर एक 'लाल रेखा' खींच दी है, क्योंकि भविष्य की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के वास्ते इतनी जमीन संरक्षित करना एक आवश्यकता है।
कुछ साल पहले, ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नामक संगठन के स्थापना-वर्षों के दौरान, अरविंद केजरीवाल चाहते थे कि मैं उनके करीबी विश्वासपात्र मनीष सिसोदिया द्वारा महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक गुमनाम से गांव हिवारे बाज़ार पर बनाई गई एक दस्तावेजी फिल्म देखूं, जो अपने चमत्कारिक कायाकल्प के कारण अचानक से खबरों में छाई थी।
सिसोदिया की इस फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे एक बारहों माह सूखाग्रस्त एवं अभावग्रस्त गांव ने ग्राम सभा में सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया पर अमल करते हुए, स्वशासन के जरिए खुद को एक जीवंत आदर्श गांव में बदल डाला। इस गांव में वयस्कों की औसत वार्षिक आय जहां वर्ष 1989 में महज 8,000 रुपये थी वह 2012-13 की शुरुआत में बढ़कर 28,000 रुपये हो गई। मुख्य रूप से, जनभागीदारी आधारित सर्वांगीण विकास के इस उल्लेखनीय मॉडल ने अंततः गांव में 54 करोड़पति पैदा कर दिए।
कोई हैरानी नहीं कि एक वक्त यह गांव सबसे अधिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाला रहा। जीडीपी से भी ज़्यादा यह जानना महत्वपूर्ण है कि इसने गरीबी और अभाव से जुड़े तमाम प्रतीकों जैसे कि बढ़ती शराबखोरी, बीमारियों का प्रसार, शिक्षा की कमी को सफलतापूर्वक रोक दिया। नतीजतन गांव में विपरीत-पलायन होने लगा। जब किसी गांव में आर्थिक बदलाव आता है, तो जो लोग पेट की खातिर गांव छोड़कर जाने को मजबूर हुए, वे वापस लौटना चाहते हैं।
कोई नौ साल पहले, मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब केजरीवाल ने 'हिवारे बाज़ार की कहानी, अरविंद केजरीवाल की जुबानी', नामक शीर्षक वाली अन्य यूट्यूब वीडियो की कहानी बड़ी वाक्पटुता से मुझे सुनाई थी। वह चाहते थे कि गांव के अद्भुत सरपंच पोपट लाल के नेतृत्व में जिस सामाजिक-आर्थिक सोच ने रास्ता दिखाया, उसका अनुसरण देश भर के सभी 7 लाख गांवों में किया जाए। बस उन्हें सुनिए और आपको अहसास होगा कि कैसे केजरीवाल ने ग्रामीण समृद्धि लाने की एक ‘पारसमणि’ खोज ली थी। दरअसल, वीडियो में वे एक नया पंजाब बनाने की बात भी करते हैं और कहते हैं कि यदि आम आदमी पार्टी की सरकार आई तो इस कृषि प्रधान सूबे में हिवारे बाज़ार की सफलता गाथा को लागू किया जाएगा। लेकिन, हमेशा की तरह, सरकार बनने के बाद, यह भी एक भूली-बिसरी कहानी बनकर रह गई।
पार्टी को मिले भारी चुनावी जनादेश को देखते हुए, यह अवसर निश्चित रूप से मौजूद था। कुल 117 सीटों में आम आदमी पार्टी को 92 पर मिली जीत के साथ, उसके पास हिवारे बाज़ार के अनूठे विकास मॉडल को अपनाकर भविष्य की राह फिर से गढ़ने के लिए पर्याप्त अनुकूल परिस्थितियां थीं, जिससे आखिरकार एक नए पंजाब के उदय की रूपरेखा को प्रदर्शित किया जा सकता था। एक कृषि प्रधान राज्य होने के नाते, बिखरती कृषि-आर्थिकी से स्थाई रूप से पार पाने के लिए जरूरी तमाम अवयव पंजाब के पास मौजूद हैं, न केवल जलवायु-अनुकूल है बल्कि आर्थिक-पर्यावरणीय रूप से व्यवहार्य और समृद्ध एक अद्भुत ग्रामीण क्षेत्र के तौर पर भी। अगर एक सूखाग्रस्त गांव 54 करोड़पति पैदा करने पर गर्व कर सकता है, तो कल्पना कीजिए कि पंजाब के 12,000 से ज़्यादा गांव, जहां पहले से ही 98 प्रतिशत खेत सिंचाई युक्त है, वहां कितनी बड़ी संख्या में करोड़पति आसानी से पैदा हो सकते हैं। अगर पानी को गांवों के विकास की धुरी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, तो निश्चित रूप पंजाब से बहुत आगे है।
आवश्यक रूप से इसके लिए एक नई एवं कल्पनाशील सोच की आवश्यकता है, जिसका मास्टर प्लान पहले से ही मौजूद है। लेकिन अपनी सहूलियत के हिसाब से इसको ठंडे बस्ते में डालकर, आम आदमी पार्टी ने स्पष्ट रूप से इस महान अवसर को गंवा दिया है। और अब सिसोदिया द्वारा अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं को दी गई यह नवीनतम सलाह : ‘2027 का चुनाव जितवाने के लिए, साम, दाम, दंड, भेद, सच, झूठ, सवाल, जवाब, लड़ाई, झगड़ा जो करना पड़ेगा... तैयार हैं जोश के साथ?’, सब कुछ उजागर कर जाती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि लैंड पूलिंग योजना अकारण नहीं थी। मेरी हताशा राजनीतिक नेतृत्व की उस कथनी पर यकीन न कर पाने से भी है, जिसे वे बार-बार हमें बताते रहते हैं। शुरुआत करने के लिए, निश्चित रूप से पंजाब को फसल विविधीकरण की ज़रूरत है, जो प्रचलित गेहूं-धान फसल चक्र पद्धति की जगह ले सके, लेकिन लैंड पूलिंग वह विविधीकरण नहीं था जिसकी आस पंजाब को है। मेरी समझ में लैंड पूलिंग योजना वास्तव में नीति निर्माताओं में व्याप्त ‘बौद्धिक सूखे’ का अक्स है और इसमें सेवारत के अलावा प्रभावशाली सेवानिवृत्त नौकरशाही, दोनों, शामिल हैं। कुछ महीने पहले पंजाब विश्वविद्यालय में आयोजित एक नीति संवाद में, सेवानिवृत्त नौकरशाहों को खेती की एवज़ में तेज़ औद्योगीकरण की वकालत करते सुनना कोई हैरानी की बात नहीं थी।
यह सिर्फ़ पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी नहीं; देशभर में हर किस्म के राजनीतिक दल ज़मीनें हड़पने में लगे हैं। किसी भी प्रमुख दल का नाम लीजिए, उसकी नज़र ज़मीन हड़पने पर ही है। हरियाणा आगामी 6 नए इंटिग्रेटेड मल्टीमॉडल टाउनशिप के लिए 35,000 एकड़ ज़मीन अधिग्रहण करने की योजना बना रहा है। कर्नाटक में, साढ़े तीन साल तक चले किसानों के लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद, मुख्यमंत्री ने बेंगलुरु के आसपास के 13 गांवों तक फैले देवनहल्ली तालुका में 1,777 एकड़ कृषि भूमि का अधिग्रहण करने वाला फैसला वापस ले लिया है। इत्यादि।
इसे कुछ भी नाम दें, 164 गांवों में लगभग 65,553 एकड़ भूमि का अधिग्रहण उस तरह का विविधीकरण नहीं था जिसकी पंजाब को जरूरत थी। यह जमीन हड़पने की योजना के अलावा कुछ नहीं थी। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा चार हफ्तों के लिए लैंड पूलिंग नीति पर रोक लगाने के तुरंत बाद, किसान समूहों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई, जिसमें ट्रैक्टर रैलियां और कई गांवों में आम आदमी पार्टी के नेताओं के लिए 'प्रवेश निषेध' नोटिस बोर्ड और बैनर लगना शामिल थे, इसके चलते पंजाब सरकार द्वारा घातक नीति को वापस लेने का फैसला राहत की सांस के रूप में आया, जिसकी बहुत जरूरत थी। सनद रहे, न्यायालय ने यह भी कहा था कि अधिगृहीत की जा रही भूमि अत्यंत उपजाऊ है और द्विफसलीय है, जिसका अर्थ है कि केवल असाधारण मामलों में ही इसका अधिग्रहण हो सकता है, और इस तरह यह नीति भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के विरुद्ध जाती है।
इतना ही नहीं, भारत-माला राजमार्ग परियोजना के तहत ज़मीन के अधिग्रहण से, जिसमें हर 10 किलोमीटर पर फ़ूड कोर्ट बनने हैं, उपजाऊ ज़मीन तेज़ी से हड़पी जा रही है। और यह मुझे आश्चर्यचकित करता है। हमारे राजनेता और नीति-निर्माता क्यों नहीं चीन से यह बात सीखते कि कैसे उसने 12 करोड़ हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन पर एक 'लाल रेखा' खींच दी है, क्योंकि भविष्य की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के वास्ते इतनी जमीन संरक्षित करना एक आवश्यकता है। भारत में दूरदर्शी नेताओं की ऐसी फसल कब होगी जो पंजाब को उस भूमिका के लिए बचाकर रख सके, जिसे फिर से निभाने को कहने की नौबत भविष्य में बनने वाली है-जलवायु अनिश्चितताओं के वक्त एक भूखे राष्ट्र को फिर से भोजन उपलब्ध कराना।
सत्ता में किसी भी तरह बने रहने के लिए साम, दाम, दंड, भेद जैसे हथकंडे लागू करने की बजाय पंजाब को भगवंत मान सरकार से उम्मीद थी कि वह अपने गांवों में बदलाव के बीज बोते, जिससे हज़ारों फूल खिलते।
निश्चित तौर पर पंजाब को एक ऐसी नीतिगत रूपरेखा की ज़रूरत है जो एक क्षीण होती कृषि सभ्यता को लगभग पतन से बचा सके। न कि वह जो इसकी बहुमूल्य ज़मीनी संपदा को बेचने पर आमादा हो।
लेखक कृषि एवं खाद्य संबंधी मामलों के विशेषज्ञ हैं।