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क्रिकेट भी धर्म और पैसे के लिए भगदड़

व्यंग्य/तिरछी नज‍़र
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सहीराम

अभी तक धार्मिक जमावड़ों, समागमों और उत्सवों में जो भगदड़ मचती थी, वह अब क्रिकेट में भी मचने लगी है। इस माने में क्रिकेट धर्म से टक्कर लेने लगा है। बल्कि वह तो एक और धर्म ही हो गया है। बड़े-बड़े चक्रवर्ती सम्राट तक तो अपना धर्म चला नहीं पाए। बताते हैं कि एक जमाने में अकबर, जिन्हें पहले अकबर महान कहा जाता था, लेकिन इधर उनकी महानता छीन गयी है, ने दीनेइलाही नाम से अपना एक धर्म चलाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे उनके मंत्रियों ने ही नहीं अपनाया। उनकी बादशाहत में इतना लोकतंत्र था और यहां लोकतंत्र में बादशाहत है।

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ओशो रजनीश भी भगवान हो गए थे और बताते हैं कि उन्होंने भी अपना कोई धर्म चलाने की कोशिश की थी, पर चला नहीं पाए। उनसे अच्छा तो राम-रहीम ही रहे कि जेल में होने के बावजूद अपना डेरा चला रहे हैं। लेकिन इसमें आश्चर्य क्या। बहुत से माफिया भी जेल में रहकर अपना रैकेट चलाते रहते हैं। सवाल यह है कि अगर अंग्रेजों को यह पता होता कि उनका दिया हुआ क्रिकेट का खेल एक दिन हिंदुस्तान में धर्म का रूप ले लेगा तो भी क्या वे धर्म के वैसे ही खेल खेलते रहते, जो बांटो और राज करो के लिए उन्होंने खेले और देश बांट दिया। लेकिन तब क्रिकेट राजाओं-नवाबों का ही खेल था, जनता का नहीं।

बेशक हमारे यहां बहुतायत में धर्म हों, पर हम क्रिकेट के धर्म बनने का बुरा नहीं मानते। बस यहां भगवान बड़ी जल्दी बदल जाते हैं। कभी तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान थे, फिर धोनी हो गए, इधर विराट कोहली हैं। मतलब यहां भगवान रोटेशन पर है। इस माने में इस धर्म को थोड़ा लोकतांत्रिक माना जा सकता है। अच्छी बात यह है कि इसे अधर्म और विधर्म मानने वाले भी इससे नफरत नहीं करते। पूछ ही लेते हैं कि स्कोर क्या हुआ और विकेट कितने गए। लेकिन इधर अगर क्रिकेट धर्म हुआ है तो धर्मों वाली विशेषताएं आनी भी जरूरी हैं। इसलिए जैसे धर्मों में मठाधीश होते हैं, वैसे ही क्रिकेट में फ्रेंचाइजी तो होने ही लगे हैं। और अब तो भगदड़ भी मचने लगी है। मतलब उसने धर्म वाली एक और विशेषता हासिल कर ली है।

पर इधर जैसे धर्मों में भी सबसे बड़ा धर्म पैसा हो गया है, वैसे ही क्रिकेट भी चाहे कितना ही बड़ा धर्म बन ले। लेकिन धर्म के लिए भी सबसे बड़ा धर्म पैसा ही है। पहले तो बस इतना ही था कि बाप-बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया, लेकिन अब तो यह हो गया कि पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं। इसी पैसे से क्रिकेटर खरीदे और बेचे जा रहे हैं, इसी पैसे के लिए आईपीएल हो रहा है। इसी पैसे के लिए चैनलों पर मैच का प्रसारण होता है और इसी पैसे के लिए आईपीएल में सट्टा है। भगदड़ भी तो पैसे के लिए ही मची न?

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