सौरभ जैन
दशहरे के साथ ऑनलाइन फेस्टिवल सेल वाले ऑफरों का जो आगाज हुआ था, वह दिवाली तक बदस्तूर जारी है। इन दिनों रेलवे प्लेटफॉर्म पर ट्रेनों से अधिक तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फेस्टिवल ऑफर आ रहे हैं। एक ऑफर के जाते ही दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा.. ऑफरों की कतार कुछ ऐसी है जैसे नोटबंदी में बैंकों के बाहर लोगों की बड़ी लंबी लाइनें थीं। यह ऑफर खरीदार को विकल्प नहीं दे रहे, बल्कि मजबूर कर रहे हैं कि हम तब तक ऑफर देते रहेंगे जब तक तुम खरीद नहीं लेते।
कुछ समय पहले तक स्थानीय दुकानदारों से खरीदारी कर आत्मनिर्भर बनने की शपथ लेने वाले लोग दुनिया से नजरें चुरा कर ऑनलाइन सेल की गंगा में डुबकी लगाते नजर आ रहे हैं। ऑनलाइन शॉपिंग करने के बाद सोशल मीडिया पर लोकल फॉर वोकल की पोस्ट करने वाली उनकी अदा में नेताओं वाला लुक नजर आ ही जाता है।
इस बार त्योहार की किस्मत खराब थी, जो चुनाव भी उनके साथ आ गए। इधर 50 प्रतिशत छूट वाला फेस्टिवल सेल तो उधर सब कुछ मुफ्त वाली वादों की रेल चुनावों की पटरी पर बिन सिग्नल दौड़ती पाई गई। बाजार को इस बात को स्वीकार करना होगा कि मूर्ख बनाने का काम सिर्फ उसका नहीं है, उसके सिवा कोई और भी है जो उससे भी दो कदम आगे है। बाजार का अनुमान है कि बम्पर सेल पर कॉपीराइट उसका है, जबकि यहां सात दशकों में गरीबी हटाओ से इंडिया शाइनिंग होते हुए अच्छे दिन की बम्पर सेल आकर कब की गुजर भी चुकी है।
मुर्गी पहले आई या अंडा, इस पर आज भी प्रश्न हो सकता है किंतु राजनीति में पहले वादा आता है, वह भी उस चीज का जो वादे के समय अस्तित्व में ही नहीं होती। अच्छे दिन का वादा पहले आया, अच्छे दिन अभी भी ऑन द वे ही हैं। वैक्सीन नहीं आई पर अच्छे दिन की तर्ज पर मुफ्त वैक्सीन का वादा पहले आ गया।
वैसे बाजार की सेल में सबसे ज्यादा वह सामान बिकता है, जिस पर सबसे ज्यादा छूट होती है। भारतीयों का स्वभाव ही डिस्काउंट, मुफ्त, छूट जैसे शब्दों के प्रति आकर्षित होता है। वाशिंग मशीन के साथ डिटर्जेंट फ्री मिले तो डिटर्जेंट की जरूरत वाला व्यक्ति वाशिंग मशीन खरीद लाता है।
मोबाइल मंगवाने पर साबुन की टिकिया निकलने जैसी खबरें इस युग में अनसुनी नहीं हैं, वैसे ही जनप्रतिनिधि चुनने पर अपराधी निकलने के परिणाम भी अनोखे नहीं हैं। बाजार में अधिक डिस्काउंट मिलने पर खराब से खराब उत्पाद सबसे पहले बिक जाता है, उसी तरह अशिक्षित, अयोग्य, आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों की चुनावी सेल में किस्मत चल पड़ती है। ऑफ़रो का अपना ही महत्व है। बाजार में अच्छा ऑफर मिले तो खराब उत्पाद बिक जाता है और चुनाव में अच्छा ऑफर मिलने से सड़े टमाटर भी चुन लिए जाते हैं।