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जन सरोकारों की प्रतिबद्धता हो शासन का लक्ष्य

विकास, न्याय व जनकल्याण के लिए बढ़िया शासन व्यवस्था के लिए प्रभावशाली और ईमानदार अधिकारियों की ज़रूरत होती है। पंजाब में राजनीतिक नेतृत्व को ‘वेरका’, पीटीएल जैसे शुरुआती संस्थानों की स्थापना में काबिल अफसरशाही का साथ मिला। दरअसल कई अफसर...
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विकास, न्याय व जनकल्याण के लिए बढ़िया शासन व्यवस्था के लिए प्रभावशाली और ईमानदार अधिकारियों की ज़रूरत होती है। पंजाब में राजनीतिक नेतृत्व को ‘वेरका’, पीटीएल जैसे शुरुआती संस्थानों की स्थापना में काबिल अफसरशाही का साथ मिला। दरअसल कई अफसर मिसाल बने। जिनकी कार्यप्रणाली अधिकारों के बेहतर इस्तेमाल, जवाबदेही, निगरानी व जमीनी नजरिये

से लैस रही।

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Gurbachan Jagat-Trustee

गुरबचन जगत

मेरे अनुभव के मुताबिक बढ़िया शासन के लिए पैसे की ज़रूरत नहीं होती। इसके लिए फ़ील्ड और मुख्यालय में प्रभावशाली और ईमानदार अधिकारियों की ज़रूरत होती है। ऐसे लोग होते हैं, लेकिन उन्हें अवसर नहीं दिया जाता और धीरे-धीरे शीर्ष पर बैठे लोगों की हर कही बात को मान जाने वाले अफसर उनकी आंख के तारे बन जाते हैं। वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ़ मेरी एकमात्र शिकायत यह है कि वे खुलकर अपना अधिकार इस्तेमाल नहीं करते, काम की निगरानी नहीं करते, जितना व्यावहारिक दृष्टिकोण होना चाहिए, उतना रखते नहीं।

शासन चलाना कोई एक दिन का मामला नहीं है, न ही यह कोई क्षणिक काम है, यह कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं है, यह कोई बहुत बड़ा विज्ञापन नहीं है, यह केवल विज्ञापनों के माध्यम से तमाम त्योहार मनाना नहीं है। यह दिन-प्रतिदिन की मेहनत है, यह दिन-रात किए जाने वाला थकाऊ काम है। इसके तहत आपको सौंपा गया काम करना है और इसे आपने उपलब्ध साधनों से पूरा करना है। यह सुनिश्चित करना कि लोगों को (जिनके कामों के लिए हम बने हैं) सुनवाई के लिए एक जगह से दूसरी जगह न भटकना पड़े। यह सुनिश्चित करना कि फाइलें बिना किसी रिश्वत के खुद-ब-खुद आगे बढ़ें। ऐसा करने की कोशिश करें और लोगों के चेहरों पर संतुष्टि पाएं (हालांकि उन्हें उनका हक देकर आप उन पर अहसान नहीं करेंगे) – हां आपने उन्हें ‘न्याय और विकास’ जरूर दे दिया।

वे इलाके से आपके जाने के बाद भी लंबे समय तक आपको याद रखेंगे, लेकिन अधिकांशतः आपका काम गुमनाम और दिखने में सामान्य ही होगा, जैसे किसी सुचारू मशीन के कलपुर्जे... मर्सिडीज़ चलाते समय उसका इंजन नहीं दिखता, लेकिन इसको चलाने या सफर का अहसास शानदार होता है। तथ्यों-नियमों के अनुसार न्याय करें और विकास परियोजनाओं को नियमानुसार समय पर पूरा करने में मदद करें। कई अवसरों पर आपकी नौकरी आपको उन परियोजनाओं या घटनाओं का हिस्सा बनने और उनमें योगदान देने का मौका देती है, जो इतिहास में दर्ज हो जाते हैं। ऐसे कई नाम हैं जो हमारी आज़ादी के शुरुआती सालों का हिस्सा थे : होमी जहांगीर भाभा को हमेशा ‘भारतीय परमाणु कार्यक्रम के पितामह’ के रूप में याद किया जाता है, पाकिस्तान से आए लाखों शरणार्थियों के पुनर्वास का श्रेय डॉ. एमएस रंधावा (पुनर्वास महानिदेशक) को जाता है जिन्होंने आगे हरित क्रांति और चंडीगढ़ के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को भारतीय सशस्त्र बलों और 1971 की जीत में उनके अपार योगदान के लिए याद करते हैं। कदाचित‍् ये स्वतंत्र भारत के इतिहास के कद्दावर उदाहरण हैं, लेकिन ये ऐसी मिसालें हैं जिन्होंने हमारे प्रारंभिक वर्षों में हमें प्रेरित किया, और वे अकेले नहीं थे। उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों के काबिल और काफी प्रेरित अधिकारियों एवं टीम का साथ प्राप्त था। बिना कोई सुरक्षा कवच प्राप्त मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन की ‘ए’ कंपनी ने अत्यंत भारी पाकिस्तानी हमले (दो टैंक रेजिमेंट) के बावजूद जिस तरह रातभर डटे रहकर लोंगेवाला चौकी को बचाए रखा, उसे सदा भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता और व्यावसायिकता के लिए याद रखा जाएगा।

जब मैं पुलिस सेवा में आया तो प्रशासनिक कार्यों में दौरे और नियमित निरीक्षण करना काम का एक अहम हिस्सा थे। तब अधिकारी बहुत छोटी टीमों के साथ काम किया करते थे और बहुत कम या लगभग नगण्य तकनीक उपलब्ध होने के बावजूद बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र का प्रशासन संभाल लिया करते थे। जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से निर्धारित थी और जवाबदेही भी एक तय चीज़ थी। उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था और अधिकारियों ने अपने मातहतों को काम करने की आजादी सुनिश्चित कर रखी थी और लोग काम करते भी थे। आज जबकि तमाम किस्म की तकनीकें और बुनियादी ढांचा मौजूद हैं, तो हालात देखकर दुख होता है। प्रशासन जोर-जबरदस्ती के दम पर नहीं ‘इकबाल’ (साख) के जरिए होता है... यह सूक्ति पुरानी सही लेकिन आज और भी उपयुक्त है।

बीतेे वक्त में अधिकारी खुद वस्तुस्थिति का जायजा लेने और जनता से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में समय बिताते थे। नागरिक समाज के सभी स्तरों से सूचना और प्रतिक्रिया पाने वाली एक विस्तृत प्रणाली थी। ईमानदारी से कहूं तो आज सरकार के कितने सचिव या विभागाध्यक्ष अपने विभाग के अंतर्गत चल रही परियोजनाओं को देखने के लिए नियमित रूप से क्षेत्र का दौरा करते हैं? कितने डीएम/एसएसपी अपने कार्यक्षेत्र में एक महीने में दस रातें बिताते हैं या गांवों का दौरा करते हैं। इन्हीं चीज़ों की बदौलत हमें अपने काम में सफलता मिल पाई थी। आज अधिकारी बिना मतलब के फ्लैग मार्च और प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगते हैं और फोटो खिंचवाते हैं। फ्लैग मार्च कानून-व्यवस्था की स्थिति बहुत गंभीर बनने पर किए जाते हैं, न कि गैंगवार और अपराध के लिए। प्रशासन सुचारू चलाने में तमाम स्तरों पर कार्यप्रणाली पर बारीकी से नज़र रखना शामिल है।

बात अपने राज्य पंजाब की करें तो, सरदार प्रताप सिंह कैरों ने 1959 में ‘वेरका मिल्क प्लांट’ की आधारशिला रखी, जो उत्तरी भारत में अपनी किस्म की पहली दुग्ध परियोजना थी और यह देश की सबसे सफल सहकारी दुग्ध समितियों में से एक बन गयी। इसी तरह, मार्कफेड की शुरुआत 1954 में एक मार्केटिंग सहकारी संस्था के रूप में हुई और आज इसकी बिक्री 22,000 करोड़ रुपये पार कर गई है। पंजाब ट्रैक्टर्स लिमिटेड और ‘स्वराज’ ब्रांड भी 1970 के दशक की गाथा है। यहां फिर से सरदार प्रताप सिंह कैरों का नाम लेना उचित होगा, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से आधुनिक पंजाब के निर्माता के रूप में जाना जाता है, उन्हें अपने काम में उच्चतम क्षमता युक्त और प्रतिबद्ध अधिकारीगण जैसे कि एमएस रंधावा, एनके मुखर्जी, गुरदयाल सिंह (आईजी पंजाब), एनएन वोहरा जैसे सक्षम अफसरों का साथ मिला।

मैं अतीत के ऐसे नामों की लंबी फेहरिस्त गिना सकता हूं,लेकिन सवाल यह कि पिछले तीन दशकों में कौन सी संस्था बनाई गई? सिवाय इसके जो अंतहीन रेवड़ियां और मुफ्त की सुविधाएं देकर चुनाव जीतती हो। हमारे ऊपर लाखों करोड़ का कर्ज है (यह 4 लाख करोड़ का आंकड़ा पार करने वाला है, एक ऐसा आंकड़ा जिसके लिए पिछले कुछ दशकों में बनी सभी सरकारें जिम्मेवार हैं) फिर भी हम नागरिकों पर रेवड़ियों की बारिश करना जारी रखे हुए हैं, उनपर भी जो नशे की लत में फंसे हैं और अब अगली खुराक की तलाश में हैं (जो और बड़ी होनी चाहिए)। क्या हम मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त बिजली (हाल ही में ट्रिब्यून की एक खबर के अनुसार कुल बिजली सब्सिडी 1.25 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है) वहन करने की हालत में हैं, इनकी सूची बहुत लंबी है।

क्या नागरिकों की सेवा तब बेहतर नहीं होगी यदि हम और अधिक ‘वेरका’, पीटीएल और ‘मार्कफेड’ बनाएं, क्या यह ज्यादा बढ़िया नहीं होगा यदि हमारे पास एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा हो, जो वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय हो? या स्कूल, कॉलेज, अस्पताल जिनमें वास्तव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सुविधाएं हों? हम फिर से इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भू-राजनीति में बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं। साथ ही एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स जैसी तकनीकें भारी उथल-पुथल मचाने को प्रवेश कर रही हैं। मानव सभ्यताओं का उतार-चढ़ाव और प्रवाह जारी रहेगा।

यह लोगों और नेतृत्व को तय करना है कि इतिहास उनके कामों को बेहतरी के वास्ते एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के तौर पर दर्ज करेगा या पुरानी कहावत के अनुसार... ‘खंडरात बताते हैं कि इमारत कभी बुलंद थी’ से।

लेखक मणिपुर के राज्यपाल एवं जम्मू-कश्मीर में पुलिस महानिदेशक रहे हैं।

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