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होली पर हॉट कविताओं का रंग-बिरंगा स्टेज शो

व्यंग्य/तिरछी नजर
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राकेश सोहम‍्

उनका आज तक न ठीक से ‘फेस’ देखा गया है और न ही कोई ‘बुक’ छपी है। हालांकि, फेसबुक पर वे हर वक्त उपलब्ध रहते हैं। इन दिनों साहित्य की पिचकारी से धुआंधार साहित्य उड़ेल रहे हैं। साहित्य का कोई भी रंग उनसे अछूता नहीं है। चाहे लेख हो, कहानी हो, व्यंग्य हो या फिर कविता- चौतरफा साहित्य के रंगों से सराबोर दिखाई पड़ते हैं। कविताएं बनाने में उनकी मास्टरी है। धड़ाधड़ कविता ठोक-पीट लेते हैं। वे कविताओं के कुशल कारीगर हैं। प्रतिदिन बिना नागा एक कविता तो अवश्य बनाते हैं और फेसबुक पर टांग देते हैं। मन किया तो उसकी रील भी बना डालते हैं। दिनभर में ‘लाइक्स’ की वियाग्रामय-प्रेरणा से उनमें नयी-नयी कविताएं जन्मने की उम्मीद जाग जाती है। आजकल उन्होंने कविताएं बनाने का कारखाना डाल लिया है। विभिन्न आकार-प्रकार की कविताओं का निर्माण करते हैं। उन्हें साहित्यिक किताबें पढ़ने में कभी रुचि नहीं रही। सत्यकथाएं ही पढ़ते रहे हैं। आजकल भड़कीली रील्स देखते हैं और यहीं से आइडिया उठाते हुए कविताओं का निर्माण करते हैं। निर्माण के लिए शब्द एवं वाक्यों का कच्चा माल इंटरनेट से उठाते हैं।

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वे इस वर्ष होली की फगुनाहट में बौरा गए हैं। कविताओं का उत्पादन बढ़ गया है। इसलिए फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे स्टेज पर इनका प्रदर्शन करेंगे। अस्तु कविताओं के निर्माण में पूरी एहतियात बरती गई है। मार्केटिंग को भी ध्यान में रखा गया है। कविताओं को फ्रेम से शृंगारित किया गया है। खूबसूरत फ्रेम वाली, बिना फ्रेम वाली, बूटेदार और जरी की बॉर्डर वाली कविताएं स्टेज पर उतारने का विचार है।

बिना फ्रेम वाली कविताएं निर्वसना-सी लगती हैं। इसलिए कुछ ख़ास और पसंदीदा कविताओं को हॉट एवं उत्तेजक लुक भी दिया गया है। कम और अर्धवस्त्र चित्रों पर उकेरी गई कविताएं उन्हें बेहद पसंद हैं, क्योंकि ऐसी कविताओं में भले ही चार लाइनें हों, लाइक्स की भरमार लग जाती है। होली पर चटख रंगों से सराबोर कपड़ों में फाग खेलती युवतियों के चित्र पर कविताएं लांच करने जा रहे हैं।

एक दिन वे रास्ते में मिल गए। मोबाइल पर अपनी कविताएं दिखाते हुए मेरे कान में फुसफुसाए, ‘देखो ये कविता। कैसी लगी, बताओ?’ मैंने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘एकदम मस्त है! आई लाइक इट। कविता के पीछे लगा युवती का फोटो तो बिंदास है। वाह! क्या खूब काम चल रहा है आपका!’ प्रत्युत्तर में मेरा हाथ दबाते हुए वे फिर फुसफुसाए, ‘सोशल मीडिया का यही तो मज़ा है। कुछ भी लिखो, चिंता नहीं रहती।’ मैं कुछ कहता इसके पूर्व वे होली की बधाई देकर चंपत हो लिए।

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