मोहिन्द्र सिंह
मानवाधिकार व्यक्ति के वे अधिकार हैं जो उसे मानव होने के नाते मिलते हैं और जिनके अभाव में कोई भी व्यक्ति अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता। मानवाधिकार मानव को भय, भूख एवं शोषण से मुक्ति दिलाने व सर्वांगीण विकास के लिए ज़रूरी होते हैं। ये अधिकार सर्वमान्य होते हैं और जाति, लिंग, वर्ग, धर्म या मत के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को मिलने चाहिए। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों की सुरक्षा, न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारा, राष्ट्रीय एकता का वचन दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जो मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 10 दिसंबर, 1948 को की गई और जिसे संघ की महासभा में स्वीकृति दी गई, वह एक महत्वपूर्ण घोषणा साबित हुई। हमारे संविधान में नागरिकों को दिए मौलिक अधिकार तथा राजनीति के सिद्धांत इस बात की गवाही देते हैं कि सरकारों द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा की उचित व्यवस्था की गई है। लेकिन व्यवहार में देखते हैं कि दिन-प्रतिदिन इन अधिकारों की अवहेलना-उल्लंघन होता है।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में मानवाधिकारों के उल्लंघन के 89,584 मामले थे, 2019-20 में 76,628 मामले थे तथा 2021-22 में अक्तूबर, 2021 तक 64,170 मामले दर्ज हुए। यदि अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें तो क्रमानुसार इन मामलों की संख्या 41,947 मामले, 32,693 मामले तथा 24,242 मामले थी। इस प्रकार उ.प्र. देश में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में पहले स्थान पर रहा।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास मई, 2022 में मृत्यु से संबंधित 208 केस, बंधुआ मजदूरों के 43, पुलिस हिरासत में मृत्यु के 4, बच्चों के 51, महिलाओं के 439, एस.सी., एस.टी. व पिछड़ी श्रेणी के 84 तथा 7519 अन्य मामले रजिस्टर्ड करवाए गए। ये आंकड़े मानवाधिकारों के बड़े उल्लंघन की ओर संकेत करते हैं। आमतौर पर पुलिस द्वारा किये गए मानवाधिकार उल्लंघन मामले सम्मिलित हैं। ग़ैरक़ानूनी या अवैध हिरासत, दुर्व्यवहार, हिरासत में यातना, पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री का टॉर्चर, प्रताड़ना या डराना, अपराध की जांच न करना, दबंगों पर कार्रवाई करने से बचना, हिरासत में मृत्यु, धमकाना, मानवीय सम्मान को खतरा, झूठे मुकाबले, हिरासत में बलात्कार व हत्या, अत्यधिक बल प्रयोग, मनगढ़ंत सबूत, विपरीत समूह के साथ गठबंधन, महिलाओं की अस्मिता को ठेस पहुंचाना, कार्रवाई करने में विफलता, लापता करना, शारीरिक हिंसा, इत्यादि।
मानवाधिकारों का हनन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और कानूनी पृष्ठभूमियों के आधार पर भी होता है। महिलाएं आर्थिक, भावनात्मक, सामाजिक, स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा क्षेत्रों में शोषण का शिकार होती हैं। इनका शोषण कई बार अपनों द्वारा भी किया जाता है, और वे अत्याचारों की शिकार हो रही हैं। बाल विवाह, दहेज प्रथा, दहेज हत्या, अपहरण, एसिड अटैक, वेश्यावृत्ति में धकेलना, कार्यस्थलों पर यौन शोषण, बलात्कार, छेड़छाड़, दुराचार, लिंग भेदभाव, अश्लील सामग्री के लिए दुरुपयोग आदि अत्याचारों का सामना उन्हें करना पड़ता है। इसी तरह वर्तमान में एक करोड़ से ज़्यादा बाल मजदूर हैं। इनमें सबसे अधिक यानी कि 10-14 वर्ष की आयु के लगभग 80 लाख बच्चे कामगार हैं।
हम बाल मजदूरों को चाय की दुकानों, होटलों, ढाबों, बेकरियों तथा रेस्टोरेंट्स में काम करते, चौराहों पर गाड़ियों को साफ करते, ग़ुब्बारे तथा खिलौने बेचते, कारखानों में छोटे-मोटे काम करते देखते हैं। कई मामलों में बच्चों का अपहरण करके उन्हें अपाहिज बनाकर भीख मंगवाई जाती है। बाल मजदूरों की ज्यादा गिनती यू.पी., बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में है।
सर्वप्रथम हमें प्रत्येक परिवार की मानसिकता को बदलने का प्रयास करना होगा ताकि परिवार में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो, महिलाओं की स्वतंत्रता, समानता, सम्मान को प्राथमिकता दी जाए। परिवार में ऐसे मूल्य स्थापित किए जाएं जहां लिंग, जाति, धर्म आदि के आधार पर किसी से भेदभाव न करें। जब कभी भी ऐसी घटना घर में घटित होने की आशंका हो तो सभी को मिलकर तुरंत समाधान निकालना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न घट सकें। मानवता की रक्षा के लिए सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, दया, त्याग, शुद्धता, नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, हमदर्दी, नम्रता, सहानुभूति, भावनात्मक लगाव, अच्छा व्यवहार, क्षमा, सहायता, शांत स्वभाव, मित्रता, सहयोग, सेवा भाव, सम्मान, आध्यात्मिक ज्ञान इत्यादि मूल्यों को स्थापित करने के प्रयास हों। सामाजिक, धार्मिक सोसायटियों, ग़ैर-सरकारी संगठनों व स्वयंसेवी संस्थाओं के पूर्ण सहयोग तथा महापुरुषों, विशेषज्ञों, कलाकारों, मीडिया कर्मियों, समाज सेवकों, राजनेताओं व प्रशासकों के योगदान से भी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए समय-समय पर सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा की जाये।