अरुण नैथानी
सत्ता की राजनीति कब किस दिशा में करवट ले लेती है, कहना कठिन है। तमाम राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच कभी स्पेशल कमांडो फोर्स में कमांडो रहे नफ्ताली बेनेट ने इस्राइल के प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली। पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के शागिर्द रहे बेनेट ने राजनीतिक परिस्थितियों का ऐसा दोहन किया कि छह सांसदों के बूते देश का प्रधानमंत्री बन बैठे। वो भी ऐसे गठबंधन में, जिसमें ईरान-तुरान की सोच वाले सांसद जुटे हैं। सबसे रोचक बात यह है कि इस्राइल के इतिहास में पहली बार एक अरब पार्टी सत्ता में भागीदारी कर रही हैै। बहरहाल, बेनेट के प्रधानमंत्री बनने से बारह साल से सत्ता पर काबिज बेंजामिन नेतन्याहू की पारी का अंत हो गया।
इस्राइल की सेना में भूमिका निभाने और टेक स्टार्टअप में किस्मत चमकाने के बाद बेनेट राजनीति में आये हैं। टेक स्टार्टअप बेचने से हुई कमाई का उपयोग उन्होंने राजनीति में चमकने में किया। धुर दक्षिणपंथी यामिनी पार्टी के सूत्रधार बेनेट की सरकार को किनारे का बहुमत मिला है। इस्राइल की 120 सदस्यीय संसद नेसेट में आठ दलों का जो भानुमति का कुनबा जुटा है, उसके समर्थन में साठ सदस्यों ने मतदान किया, वहीं विरोध में मतदान करने वाले लिकुड पार्टी के सदस्यों की संख्या 59 थी, जबकि एक सदस्य गैरहाजिर रहा । इस सरकार की विडंबना यह है कि सरकार बनाने की कवायद में तमाम विरोधी विचारधाराओं के सदस्य सरकार में शामिल हैं।
दरअसल, बेहद महत्वाकांक्षी नफ्ताली ने वर्ष 2005 में अपना टेक स्टार्टअप बिजनेस 14.5 करोड़ डॉलर में बेचने के बाद राजनीति में एंट्री ली थी। बेनेट एक धुर दक्षिणपंथी नेता हैं और इस्राइल की सुरक्षा को लेकर खासे प्रतिबद्ध हैं। वे अक्सर कहते हैं कि हम ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। वे बहुत ही व्यावहारिक सोच वाले व्यक्ति हैं। सरकार में विरोधी विचारों वाले दक्षिणपंथी, वामपंथी, मध्यमार्गी व अरब समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले दलों के बारे में उनका तर्क होता है कि हमने देश को एक नये चुनाव की कटुता से बचाने के लिये गठबंधन बनाने का फैसला किया। सही मायने में वजह यह है कि हम एक निर्णायक समय में बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। बेनेट की सरकार में 27 मंत्री शामिल हैं, जिनमें नौ महिलाएं भी हैं।
जहां तक बेनेट सरकार के दौरान भारत से रिश्तों को लेकर सवाल है तो कूटनीतिक पंडित कहते हैं कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर कोई आंच नहीं आएगी। वे नेतन्याहू की नीतियों को विस्तार ही देंगे। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेतन्याहू के बीच व्यक्तिगत कैमिस्ट्री की खूब चर्चा होती रही है और दोनों देशों के रिश्ते खासे गहरे हुए थे। यही वजह है कि बेनेट को बधाई देते वक्त मोदी नेतन्याहू के कार्यकाल की प्रशंसा करना नहीं भूले। माना जा रहा है कि भारत में राष्ट्रवादी छवि रखने वाले नरेंद्र मोदी के चलते उग्र राष्ट्रवादी बेनेट से तालमेल बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी और दोनों देशों के संबंध अटूट बने रहेंगे। कहा जाता है कि कभी नेतन्याहू के शागिर्द रहे बेनेट की सोच में ज्यादा अंतर नहीं है। आर्थिक हितों के चलते इस्राइल को भारत से संबंध बनाये रखने होंगे क्योंकि भारत इस्राइल से बड़े पैमाने पर हथियार खरीदता है। जिससे उसके बाजार को अन्य देशों में भी विश्वसनीयता मिलती है। कमोबेश यही स्थिति अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी होती है, भारत से रिश्ते बेहतर होने के बाद कई अरब देशों ने इस्राइल से संबंध बढ़ाए हैं।
वैसे भी बेनेट के नेतन्याहू सरकार में इस्राइल के रक्षामंत्री रहने के दौरान भारत से कई महत्वपूर्ण रक्षा संबंध सिरे चढ़े हैं। आगे भी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में इस्राइल को भारत जैसे विशाल देश की जरूरत पड़ने वाली है। दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध तीस साल पूरे कर रहे हैं।
दरअसल, इस्राइल में जारी राजनीतिक अस्थिरता के चलते बेनेट की यामिनी पार्टी के दोनों हाथों में लड्डू थे। पहले नेतन्याहू की सरकार भी नेफ्ताली बेनेट के समर्थन से टिकी थी। लेकिन महत्वाकांक्षी बेनेट की नजर तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थी। हालांकि पिछले आम चुनाव में उनकी पार्टी को गिनी चुनी सीटें ही मिली थीं। लेकिन हालिया चुनाव में उनकी पार्टी को सात सीटें मिली थी, सो वे किंगमेकर की भूमिका में आ गये। ऐसे में तय था कि इस्राइल में किसी भी पार्टी की सरकार बने, उसमें बेनेट की बड़ी भूमिका होगी। वे आधे कार्यकाल के लिये प्रधानमंत्री बने हैं। उन्होंने मध्यमार्गी सहयोगी येर लेपिड के साथ 2023 तक सत्ता में बंटवारा करना स्वीकार किया। अगले दो साल लेपिड प्रधानमंत्री बनेंगे, जिसके चलते इस्राइल की राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले नेतन्याहू आज नेता प्रतिपक्ष ही रह गये हैं।
बेनेट राजनीतिक अवसरों का बेहतर उपयोग करते हैं। लिकुड पार्टी छोड़ने के बाद वे यहूदी होम पार्टी में गये। वर्ष 2013 में इस्राइली संसद में पहुंचे। फिर 2019 तक हर गठबंधन सरकार में मंत्री बने। उनकी छवि एक अति-राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी नेता की है। वे इस्राइल को एक यहूदी राष्ट्र के रूप में देखते हैं। साथ ही वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम व सीरियाई गोलान हाइट्स को यहूदी इतिहास का हिस्सा बताते हैं। वे इन इलाकों में यहूदी बस्तियां बसाने के पक्षधर हैं। धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाले नेफ्ताली अंतर्राष्ट्रीय मंचों व मीडिया में जोरदार ढंग से इस्राइली हितों का बचाव करते नजर आते हैं। वे परंपरागत यहूदी पोशाक पहनना पसंद करते हैं।