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नेपाल के ईवी बाजार में बढ़ता चीन का दबदबा

वर्षों तक, टाटा, महिंद्रा और मारुति का नेपाल में दबदबा रहा। अब, वह पकड़ खत्म हो गई है। तो फिर, चीन ने क्या नेपाली ऑटो उपभोक्ताओं के बजट को समझा है? चीन यदि नेपाल के ईवी कार बाज़ार पर पूर्ण...
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वर्षों तक, टाटा, महिंद्रा और मारुति का नेपाल में दबदबा रहा। अब, वह पकड़ खत्म हो गई है। तो फिर, चीन ने क्या नेपाली ऑटो उपभोक्ताओं के बजट को समझा है? चीन यदि नेपाल के ईवी कार बाज़ार पर पूर्ण रूप से क़ब्ज़ा जमा लेता है, तो बाक़ी दक्षिण एशियाई देशों को हथियाने में उसकी सक्सेस स्टोरी कारगर साबित होगी।

पुष्परंजन

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काठमांडो के एक कैब ड्राइवर, सचिन अधिकारी ने मैसेज भेजा, ‘इस बार त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय विमानस्थल पर आपको इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) से रिसीव करूंगा, और होटल छोड़ूंगा। हमने पेट्रोल गाड़ी हटा दी है।’ पिछली बार होटल याक एंड यति से एयरपोर्ट छोड़ते समय ड्राइवर सचिन अधिकारी ने मेरा नंबर शेयर किया था। सचिन ने रास्ते भर ईंधन संकट का दुखड़ा रोया था। लगभग एक दशक से पेट्रोल कार से दुखी सचिन, अकेले शख्स नहीं हैं, काठमांडो उपत्यका (घाटी) में कार ड्राइवर भारी रख-रखाव वाले बिल, वाहन कर, और आयातित ईंधन की बढ़ती लागत से बराबर परेशान दिखते हैं।

हमारी आखिरी बातचीत को कोट करते हुए सचिन अधिकारी ने लिखा, ‘आपने सही कहा था, ईवी तकनीक दुनिया भर में बेहतर हो रही है। मैं इसका अनुभव करना चाहता था, इसलिए मैंने इलेक्ट्रिक वाहन की ओर जल्दी ही रुख किया। मैं यात्रियों के साथ रोज़ाना लगभग सवा सौ किलोमीटर ड्राइव करता हूं, इससे 11,000 नेपाली रुपये (भारतीय मुद्रा में 6888 रु.) कमाता हूं। चार्जिंग का खर्च मुझे सिर्फ़ 500 रुपये ( 313 भारतीय रुपये) आता है। हमें चार्जिंग स्टेशन ढूंढ़ने की चिंता भी नहीं है, क्योंकि ये हर 50 से 100 किलोमीटर पर उपलब्ध होते हैं। ईवी कंपनियां 1,60,000 किलोमीटर तक मुफ़्त सर्विसिंग प्रदान करती हैं, जिससे हमें पैसे की बचत काफ़ी होती है।’

इस हिमालयी देश में 2020 में केवल 250 इलेक्ट्रिक वाहन थे, अब वो 2025 में बढ़कर 15,000 से अधिक हो गए हैं। नेपाल के भौतिक अवसंरचना एवं परिवहन मंत्रालय के सूचना अधिकारी मोहन निरौला बताते हैं, ‘नेपाल में ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले कुल वार्षिक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र का योगदान 36 प्रतिशत है। नेपाल सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यापक रूप से अपनाना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता माना है। हमारा लक्ष्य 2025 तक 20 प्रतिशत सार्वजनिक परिवहन वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाना है। साल 2023 में, नेपाल ने पहली बार जलविद्युत से उत्पादित बिजली का शुद्ध वार्षिक अधिशेष हासिल किया था। अनुमान है, कि 2030 तक नेपाल में खरीदी जाने वाली सभी नई माइक्रो और मिनी बसों में से 85 प्रतिशत इलेक्ट्रिक होंगी। इस परियोजना से ई-मोबिलिटी के लिए सीधे तौर पर 299 मिलियन यूरो का लाभ मिलेगा।’

परिवहन मंत्रालय के सूचना अधिकारी बताते हैं, कि सार्वजनिक परिवहन संचालकों को 3,500 विद्युत सूक्ष्म और लघु बसें (इएमबी) चलाने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी। देशव्यापी सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन का विस्तार, और डिजिटलीकरण किया जाएगा। सार्वजनिक परिवहन को अधिक सुलभ और सुविधाजनक बनाने के लिए डिजिटल टिकटिंग प्रणाली और एक ऐप पेश किया जाएगा।

दो-तीन दशक पहले तक साफ़-सुथरी आबोहवा वाला काठमांडो, अब दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। काठमांडो के लाखों निवासियों के लिए खराब वायु गुणवत्ता रोज़मर्रा की परेशानी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित पीएम 2.5 स्तरों से 20 से 35 गुना अधिक प्रदूषित होने का अंदाज़ा पर्यावरणविद देते हैं। इसके प्रमुख कारणों में लगभग 17.5 लाख वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, जंगल की आग, ईंट भट्ठोंं का धुआं, निर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल, काठमांडो शहर में कोयले पर पकनेवाली सीक-कबाब की दुकानें, खुले में कचरा जलाने की बुरी आदतों को वो लोग गिनाते हैं, जो शासन में हैं।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 26,000 अकाल मौतें होने का अनुमान है। वायु प्रदूषण नेपालियों की औसत आयु को 3.4 वर्ष कम कर देता है। काठमांडो घाटी और तराई क्षेत्र को प्रदूषण के प्रमुख हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना गया है, जहां पिछले एक दशक में वायु गुणवत्ता में बहुत कम सुधार हुआ है। नेपाल में दम फूलने और सांस की बीमारी आम हो चुकी है। ठीक से देखा जाए, तो इलेक्ट्रिक वाहन इस देश को दुनिया के सबसे प्रदूषित स्थानों की सूची से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

यह सबको मालूम है कि नेपाल इलेक्ट्रिक व्हीकल्स निर्माण नहीं कर सकता। चुनांचे, यह देश इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पड़ोसी मुल्क चीन और भारत से आयात पर निर्भर है। लेकिन क्या, भारतीय कम्पनियां मूल्य के मामले में चीन के मुक़ाबले ठहर पा रही हैं? बीवाईडी, दीपल, स्काईवेल, डोंगफेंग, ओमोडा, नेटा, एमजी और ग्रेट वॉल जैसे चीनी ब्रांड, नेपाली ऑटो मार्केट में देखते-देखते छा गए। नेपाल के उपप्रधानमन्त्री एवं अर्थमंत्री विष्णुप्रसाद पौडेल ऐसा कुछ नहीं बताते कि चीनी कंपनियों को रेड कार्पेट क्या सोच-समझकर बिछाया जा रहा है, मगर उनका कहना था, ‘प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ डीलर्स ने कम लाभ मार्जिन वाले लोगों को लुभाया है और नए, सस्ते मॉडल की घोषणा की है।’ अर्थमंत्री पौडेल ने कहा, कि अब समय आ गया है कि सभी वाहनों का आयात जारी रखने के बजाय, उन्हें नेपाल में ही असेंबल किया जाए। उन्होंने कहा, ‘अगर निर्माता यहां प्लांट लगाने का इरादा रखते हैं, तो हम उन्हें हर संभव सहायता देने के लिए तैयार हैं।’

नेपाल के तेजी से बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन आयात में 149 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। नेपाल में वित्त वर्ष 16 जुलाई से आरम्भ और दूसरे वर्ष 15 जुलाई को समाप्त होता है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान नेपाल में 29.48 अरब रुपये मूल्य के 11,701 इलेक्ट्रिक वाहन आए। ऑटोमोबाइल व्यापारियों ने बताया, कि नेपाल में यात्री वाहन बाजार का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा इलेक्ट्रिक वाहनों का है।

भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन, हालांकि चीन से गुणवत्ता के मामले में बेहतर होते हैं, लेकिन नेपाल में उन्हें अक्सर उच्च आयात शुल्क और करों का सामना करना पड़ता है, जिससे वे चीनी समकक्षों की तुलना में कीमत के मामले में कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं। हालांकि, पहले भारतीय ब्रांडों का नेपाली बाज़ार पर दबदबा था, लेकिन हाल ही में ईवी के पक्ष में नीतिगत बदलावों, चीनी कंपनियों की आक्रामक कीमतों और उत्पादों की पेशकश ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया है।

उद्योग विश्लेषक जयंत मुंद्रा ने कहा, ‘यह भारतीय वाहन निर्माताओं के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। वर्षों तक, टाटा, महिंद्रा और मारुति का नेपाल में दबदबा रहा। अब, वह पकड़ खत्म हो गई है।’ तो फिर, चीन ने क्या नेपाली ऑटो उपभोक्ताओं के बजट को समझा है? भारत में प्राइसिंग यानी कीमत स्तर ने भी इलेक्ट्रिक वाहनों को आम आदमी से दूर रखा है। चीन यदि नेपाल के ईवी कार बाज़ार पर पूर्ण रूप से क़ब्ज़ा जमा लेता है, तो बाक़ी दक्षिण एशियाई देशों को हथियाने में उसकी सक्सेस स्टोरी कारगर साबित होगी। चीनी वाहन निर्माता इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में तेजी से उपस्थिति बढ़ा रहे हैं, और पारंपरिक जापानी-कोरियाई कार निर्माताओं के प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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