सफलता अमीरी-गरीबी की मोहताज नहीं होती, लेकिन गरीबी में इंसान को सफलता के मुकाम तक पहुंचने में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। बहुत कुछ खोना पड़ता है। बहुत कुछ सहना पड़ता है। लेकिन यदि लक्ष्य के प्रति संकल्प मजबूत हो तो सफलता को आना ही पड़ता है। गुरबत के तमाम झंझावात झेलकर निखरे क्रिकेटर चेतन सकारिया इसकी जीवंत मिसाल है। उसके परिवार के कष्टों व दुखों का सिलसिला अब थम-सा गया है जब उनका चयन भारतीय क्रिकेट टीम में हो गया। वे जुलाई में श्रीलंका में होने वाले तीन एक दिवसीय व तीन टी-20 मैचों का हिस्सा होंगे। लेकिन इस परिवार का बड़ा दुख यह है कि बड़े भाई की मदद के लिये अपनी पढ़ाई कुर्बान करके नौकरी करने वाला छोटा भाई इस दुनिया में नहीं है। चेतन के भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का सपना देखने वाले पिता भी इनके बीच नहीं हैं। पिता ने बेटे के सुनहरे भविष्य के लिये टैंपो चलाया। जब वे शरीर से अक्षम हो गये तब भी टैंपो इस मजबूरी में चलाया कि बेटा देश के लिये खेलने लायक बने। पिछले महीने कोरोना के कहर ने उन्हें लील लिया। हां, उसकी इस खुशी में शामिल होने के लिये उसकी वह त्यागमयी मां वर्षा बेन है, जिसने परिवार को चलाने के लिये ईंट-भट्ठे पर मजदूरी की। उसके हर विकेट लेने पर झूमने वाले मामा मनसुख भाई हैं जो गुरबत के चलते उसे अपने पास भावनगर ले आये थे। जिन्होंने कोरोना संकट में उसके अभ्यास के लिये खेत में पिच बनवायी व जिम बनाया, जिसके चलते पसीना बहाने पर उसका आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स के लिये चयन हुआ और फिर उसने भारतीय टीम में जगह बना ली।
आज देश में चेतन सकारिया जैसी न जाने कितनी ही प्रतिभाएं दूर-दूराज के इलाकों में खिलने से पहले ही मुरझा जाती हैं। हम उन तक पहुंच ही नहीं पाते। कुछ लोग होते हैं जिन्हें विरासत में खेल, पैसा और संपर्क मिलते हैं, मौलिक प्रतिभा न होते हुए भी वे जगह बनाने में कामयाब हो जाते हैं। बहुत कम लोग चेतन जैसे मजबूत हौसले और हाड़तोड़ मेहनत करने वाले होते हैं, जो संकल्प के साथ लक्ष्य हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं। वो तो भला हो उसके विद्या विहार सेकंडरी स्कूल का जो लगातार क्रिकेट प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता तथा कई टूर्नामेंट कराता। शुरुआत में वे सलामी बल्लेबाज थे और खूब रन बनाते थे। बाद में शिक्षकों को लगा कि वह गेंद को बेहतरीन स्विंग करा सकता है। फिर चेतन ने तेज गेंदबाजी के लिये प्रशिक्षण लिया। गुजरात के भावनगर के वारतेज गांव के चेतन भले ही आज अपने राज्य के हीरो हैं, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने का उनका संघर्ष बहुत बड़ा है। उन्हें कभी भारतीय क्रिकेट की ए टीम में जगह नहीं मिली। उन्होंने सौराष्ट्र की टीम से रणजी और कूचबिहार ट्राफी में अपने दमखम का प्रदर्शन किया। सौराष्ट्र की टीम की ओर से एक बार उन्हें तब खेलने का मौका मिला जब टीम का तेज गेंदबाज चोटिल था। उन्होंने मौके को अवसर में बदलने में देर नहीं की।
चेतन पढ़ाई में अव्वल था दसवीं में उसने सत्तासी फीसदी अंक के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन फिर उसे विज्ञान विषय लेने को कहा गया। परिवार की इच्छा के लिये उसने ऐसा किया भी। परिवार घर की गुरबत देखकर चाहता था कि वह सरकारी नौकरी कर ले। परिवार सोचता था कि यदि वह क्रिकेट में करिअर न बना पाया तो परिवार का खर्च कैसे चलेगा। टैंपो चलाने वाले पिता को दुर्घटनावश शारीरिक अपूर्णता होने के बावजूद टैंपो चलाना पड़ा। छोटे भाई ने महसूस किया कि भाई में क्रिकेट की बड़ी संभावना है सो उसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और परिवार को संबल देने के लिये नौकरी कर ली। बाद में न जाने कैसे हालात बने कि उसे आत्महत्या करने जैसा दुस्साहस करना पड़ा। सफलता के इस मुकाम पर पहुंचकर परिवार को छोटे बेटे के न होने का दुख सालता है।
चेतन का संघर्ष कितना बड़ा था कि जब सौराष्ट्र किक्रेट एसोसिएशन ने तेज गेंदबाजी का हुनर सीखने के लिये उसे एमआरएफ पेस फाउंडेशन एकेडमी भेजा तो उसके पास तेज गेंदबाजों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले स्पाइक शू नहीं थे। फिर एक आईपीएल के क्रिकेटर ने प्रस्ताव रखा कि यदि वह उन्हें आउट कर देगा तो वह उसे स्पाइक शू देगा। चेतन ने उसे आउट किया और स्पाइक शू हासिल किये। यहां तेज गेंदबाज ग्लेन मैक्ग्रा द्वारा दिया प्रशिक्षण काम आया और वह एक सौ तीस किमी प्रति घंटा की गति से गेंद डालने लगे।
चेतन की किस्मत का सितारा तब चमका जब इस साल की शुरुआत में इंडियन प्रीमियर लीग के लिये उसका चयन हुआ। राजस्थान रॉयल्स ने उसे एक करोड़ बीस लाख में टीम के लिये चुना। जबकि आईपीएल के लिये उसका बेस प्राइस महज बीस लाख निर्धारित किया गया। हालांकि, भारतीय टीम में चयन के बाद वह कोरोना संकट के चलते स्थगित आईपीएल के बाकी बाकी मैच नहीं खेल पायेगा। लेकिन भारतीय टीम में शामिल होने का उसका सपना तो पूरा हो ही गया है।
क्रिकेट के जुनून के चलते स्कूल से भागकर क्रिकेट खेलने और फिर पिटाई खाने वाला चेतन अब निखर गया है। उसने नया मुहावरा गढ़ा है कि ‘खेलोगे-कूदोगो तो बनोगे नबाब।’ गुरबत में क्रिकेट की शुरुआत करने वाले चेतन के अब नवाबी के दिन आने वाले हैं। हर क्रिकेटर का सपना होता है कि वह भारतीय टीम में खेले। एक गरीब परिवार से निकले चेतन के लिये यह मुकाम हासिल करना वाकई आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा ही है।