ग्रामीण सरोकारों के अग्रदूत रहे चौ. देवीलाल
चौ. देवीलाल ने अपने समर्पित जीवन से ग्रामीण भारत, खासकर किसानों और मजदूरों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। वे लोकदल के प्रमुख नेता थे जिन्होंने गैर-कांग्रेसी आंदोलन को संगठित किया और हरियाणा की राजनीति में नए परिवर्तन लाए। उनकी सादगी और तपस्या आज भी प्रेरणादायक है।
नौ अगस्त, 1974 को चौ.चरण सिंह के नेतृत्व में लोकदल का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य केंद्र में सत्तारूढ़ इंदिरा सरकार के विरुद्ध एक मजबूत विकल्प तैयार करना था। वर्ष 1971 के चुनाव में सभी विपक्षी दल धराशायी हो चुके थे। चौ. चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, मधुलिमये, राज नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस, बलराज मधोक आदि नेता पराजित हो गए थे। इंदिरा सरकार मनमाने तरीके से फैसले लेकर अधिनायकवादी हो रही थी। देश के लगभग सभी राज्यों में कांग्रेसी सरकारें थीं। पंजाब के बंटवारे के बाद उन दिनों चौ. बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और इंदिरा परिवार के करीबी लोगों में उनकी गिनती होती थी। गुड़गांव में 250 एकड़ जमीन संजय गांधी मारुति कंपनी को अलॉट कर काफी ख्याति प्राप्त कर चुके थे। एक अक्खड़ और दबंग राजनेता की छवि वे बना चुके थे।
लोकदल में शामिल नेताओं की लंबी फेहरिस्त बन गई। उड़ीसा के मुख्यमंत्री रह चुके बीजू पटनायक, स्वतंत्र पार्टी के नेता एवं सांसद पीलू मोदी, जयपुर की महारानी गायत्री देवी, राजस्थान के किसान नेता चौ. कुंभाराम आर्य और चौ. दौलत राम सारण, समाजवादी आंदोलन के शीर्षस्थ नेता राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर, मामा बालेश्वर दयाल, रवि राय, रामसेवक यादव, मुलायम सिंह यादव आदि नेता अपने समर्थकों के साथ नए विकल्प को मजबूत करने में जुटने लगे। उस समय जनसंघ (अब भाजपा) संगठन के तौर पर अपनी उपस्थिति जोरदार तरीके से दर्ज नहीं कर पा रहा था। अटल जी अवश्य राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रखर वक्ता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। जनसंघ के कई नामी गिरामी नेता भी लोकदल में शामिल हो चुके थे। जिसमें पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक, पीतांबर दास और एम.एल. सोंधी आदि थे। हरियाणा और पंजाब में किसान मजदूरों के कई आंदोलन जोर पकड़ रहे थे। स. प्रकाश सिंह बादल और चौ. देवीलाल किसानों के सवालों पर रोज पंचायत आयोजित कर सरकार की परेशानियां बढ़ा रहे थे, वहीं दूसरी ओर चौ. चांदराम हरियाणा के दलितों को एकताबद्ध कर राज्य और केंद्र सरकार की नयी घेराबंदी में लगे थे। चौ. देवीलाल और चौ. चांदराम दोनों के लोकदल में शामिल होने से हरियाणा की राजनीति में मानो भूचाल आ गया था। बंसीलाल के आतंक का मुकाबला करना कोई आसान काम नहीं था। कांग्रेस पार्टी की राजनीति में चौ. देवीलाल, चौ. बंसीलाल के सीनियर नेता थे। चौ. देवीलाल का परिवार आजादी के संग्राम में अग्रणी था। यद्यपि उस समय सर छोटू राम का समूचे पंजाब के किसानों पर बेहद असर था।
जमींदारा पार्टी किसान हितों की एकमात्र पार्टी मानी जाती थी। हिसार में चौ. देवीलाल और रोहतक में चौ. रणबीर सिंह (भूपेंद्र हुड्डा के पिता) ही कांग्रेस पार्टी का झंडा बुलंद किए हुए थे। यूं भी कांग्रेस पार्टी का समूचा नेतृत्व उस समय गैर-किसान नेताओं के हाथों में था। वर्ष 1956 में चौ. देवीलाल संयुक्त पंजाब में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन गए थे औऱ इससे पूर्व 1952 में सर छोटू राम की ज़मींदारा पार्टी के उम्मीदवार को हराकर विधानसभा में चुने गए। चौ. देवीलाल ने एक रोचक प्रसंग का जिक्र किया है कि वे जेल से रिहा होकर हिसार रेलवे स्टेशन के गेस्ट रूम में पहुंचे तो वहां सर छोटू राम से उनकी मुलाकात हो गई। छोटू राम लाहौर जाने की तैयारी में थे। उन्होंने चौ. देवीलाल को बुलाकर समझाने का प्रयास किया कि कांग्रेस अभिजात्य वर्ग की पार्टी है। समूचा नेतृत्व इसी वर्ग का है। हमें सिर्फ कार्यकर्ता और वोट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बेवजह अपना वक्त और भविष्य इस पार्टी में बर्बाद मत करो। चौ. देवीलाल उस समय आजादी के आंदोलन के बड़े नेता के रूप में ख्यात हो चुके थे। लेकिन आजादी के बाद भी लंबे समय तक संयुक्त पंजाब की कमान कभी किसान परिवार के नेताओं के हाथ नहीं लगी। सर छोटू राम की दूरदर्शिता इससे साबित हुई। हरियाणा क्षेत्र के साथ हो रहे भेदभाव को उन्होंने कांग्रेस पार्टी में रहते हुए उठाना शुरू किया, जिसकी परिणति 1966 में पृथक राज्य हरियाणा के अस्तित्व में आने के रूप में हुई।
समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया उस समय गैर कांग्रेसी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। डॉ. लोहिया उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद कन्नौज से समाजवादी पार्टी के चिन्ह पर चुनाव मैदान में थे। चौ. देवीलाल गाड़ियों के काफिले के साथ वहां पहुंचे और सघन चुनाव प्रचार में लग गए। डॉ. लोहिया विजयी रहे। चौधरी देवीलाल ने उन्हें बधाई देते हुए सारे देश में इस मिशन को लेकर भ्रमण करने का आग्रह किया और कहा कि इसमें वे भी उनके सक्रिय साथी की भूमिका में होंगे। इतिहास गवाह है कि 1967 में हरियाणा प्रांत में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार, जिसका नेतृत्व राव वीरेन्द्र सिंह ने किया, उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था।
वर्ष 1974 के गुजरात के छात्र आंदोलन से समूचे देश में कांग्रेस विरोधी वातावरण बनने लगा और बिहार में जेपी के सक्रिय होने पर इसका राष्ट्रव्यापी स्वरूप उभरा। हरियाणा में उस समय अघोषित आपातकाल जैसा था लेकिन चौ. देवीलाल ने उस चुनौती को स्वीकार कर कुरुक्षेत्र में जेपी की सभा की घोषणा कर दी। जेपी को करनाल में युवक कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाकर रोकने का प्रयास किया, लेकिन जन आक्रोश के चलते कुरुक्षेत्र में चौ. देवीलाल के प्रयासों से बड़ी सभा आयोजित हुई। इसी बीच रोरी उपचुनाव में जनता ने चौ. देवीलाल को बहुमत से जिता कर भेजा। फिर समूचे हरियाणा में कांग्रेस विरोधी लहर चलने लगी।
इसी बीच, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून को इंदिरा गांधी के रायबरेली लोकसभा चुनाव को रद्द कर उन्हें 6 वर्ष के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। समूचे देश में इंदिरा गांधी विरोधी लहर चल गई। उनके इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी। 25 जून, 1975 को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने आह्वान किया कि इस जन विरोधी सरकार के आदेश को अस्वीकार करें। सरकार ने समूचे देश में आपातकाल की घोषणा कर सभी नेताओं को जेल में डाल दिया। जिसमें चौ. देवीलाल और उनके पुत्र ओमप्रकाश एवं जगदीश भी शामिल थे।
चौ. चरण सिंह और जेपी के प्रयासों से 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ। समूचे देश में कांग्रेस का सफाया हुआ। मोरारजी भाई प्रधानमंत्री बने और चौ. चरण सिंह उप प्रधानमंत्री, गृहमंत्री बने। लेकिन हरियाणा में चौ. देवीलाल की राह आसान नहीं थी। उनके मुकाबले मोरारजी समर्थक बलवंत तायल को उम्मीदवार बनाया यद्यपि वे पराजित हुए और देवीलाल जी मुख्यमंत्री बने और गांव एवं किसान हितों के कार्यों को अंजाम देने लगे। दिल्ली से रोज षड्यंत्र होते रहे, चौ. चरण सिंह को मंत्रिमंडल से हटाने के विरोध में इंडिया गेट पर हुई रैली में भारी भीड़ चौ. देवीलाल के ही प्रयासों का नतीजा था। जनता के दबाव में चौ. चरण सिंह को उप प्रधानमंत्री के साथ वित्त मंत्रालय का भार सौंपा गया।
लेकिन चौ. देवीलाल की चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। अंतत: घेराबंदी कर उन्हें एक षड्यंत्र के तहत मुख्यमंत्री पद से हटाकर भजनलाल को उनके स्थान पर नया मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन चौ. देवीलाल सत्ता के लिए नहीं बल्कि संघर्षों के लिए बने थे। दो वर्षों तक निरंतर संघर्ष के बाद 1982 का चुनाव हुआ। लोकदल और भाजपा ने मिलकर 37 सीटों पर सफलता प्राप्त की। कांग्रेस पार्टी को 36 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा लेकिन गवर्नर तापसे ने बहुमत को नजरअंदाज कर भजनलाल को शपथ दिलाकर असंवैधानिक कार्य किया। चंडीगढ़ में एक विशाल रैली आयोजित की गई, जिसमें शरद यादव, जयप्रकाश और उन समेत कई सौ कार्यकर्ताओं को चंडीगढ़ जेल में रहना पड़ा।
पांच वर्ष तक निरंतर संघर्ष होने के बाद पंजाब समझौता के तहत हरियाणा हितों की हकमारी के विरुद्ध जन आक्रोश भड़क उठा और 1987 के विधानसभा चुनावों में लोकदल गठबंधन 90 सीटों में से 85 सीटें जीतने में कामयाब रहा। चौ. देवीलाल पुन: मुख्यमंत्री बने लेकिन उन्हें इससे संतोष नहीं नहीं था। वे केंद्र की सरकार को ही निशाना बनाकर संपूर्ण परिवर्तन के हामी थे। इतिहास गवाह है कि वीपी सिंह को आगे रखकर किस प्रकार कांग्रेस को सत्ता से दूर किया। साल 1989 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री और चौ. साहब उप प्रधानमंत्री बने। आज उन्हें स्मरण करने का दिन है, उनका समूचा जीवन त्याग और तपस्या के साथ ग्रामीण भारत के लिए समर्पित रहा। सादगी और गांवपन उनकी अनूठी पहचान रही। जब भी ग्रामीण भारत के जन जागरण का इतिहास लिखा जाएगा उनका सर्वोच्च स्थान सुरक्षित रहेगा।
पुनश्च: इस बार देवीलाल जी की जयंती पर आज रोहतक में होने वाले कार्यक्रम में स. प्रकाश सिंह बादल एवं चौ. ओमप्रकाश चौटाला की अनुपस्थिति सबको खलेगी यद्यपि चौटाला जी अपनी और इनेलो की विरासत अभय सिंह को पहले ही सौंप चुके थे। नीतीश कुमार भी बिहार चुनाव के चलते कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाएंगे। रैली की सफलता ही अभय सिंह के भविष्य की दावेदारी पर मोहर लगाने का काम करेगी।
लेखक संसद में दोनों सदनों के सदस्य रह चुके हैं।