कैथरीन का प्रकृति प्रेम
ब्रिटेन की युवती कैथरीन मेरी हाइलामन 1932 में भारत आईं। यहां के तीर्थस्थलों के दर्शन ने उनके हृदय को अध्यात्म से आलोकित कर दिया। कैथरीन महात्मा गांधी के दर्शन करने उनके वर्धा आश्रम गईं। गांधी जी इस अंग्रेज युवती के भारत प्रेम से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, ‘यदि तुम अपना जीवन भारत के लोगों की सेवा में समर्पित करना चाहती हो, तो सबसे पहले हिंदी सीखो। हिंदी के माध्यम से ही तुम भारतवासियों के सम्पर्क में आ पाओगी।’ कैथरीन ने हिंदी सीखी और ‘सरला बहन’ के नाम से अल्मोड़ा क्षेत्र के पिछड़े लोगों की सेवा में लग गईं। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के गांव-गांव घूमकर महिलाओं को साक्षर बनने की प्रेरणा दी। पर्वतीय क्षेत्रों में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के दुष्परिणामों का अनुभव करते हुए उन्होंने ‘संरक्षण या विनाश’ जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की। अपनी मृत्यु से पूर्व, सरला बहन ने नैनीताल के जाने-माने स्वाधीनता सेनानी बैंकलाल कंसल से कहा था, ‘मेरे जीवन की अनुभूतियों का निष्कर्ष यह है कि हिमालय को बचाने के लिए यहां के हरे-भरे पेड़ों और गंगा जैसी पावन नदियों की पवित्रता बनाए रखने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’
