संगठित-स्वाभिमानी समाज से सशक्त भारत निर्माण
हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्य में, जहां किसान, सैनिक, खिलाड़ी और युवक-युवती ऊर्जा और समर्पण के प्रतीक हैं, वहां संघ का विचार समाज में नई चेतना और एकता का स्रोत बन रहा है।
कल्पना कीजिए—साल 1925। देश अंग्रेज़ी शासन की बेड़ियों में जकड़ा है, और नागपुर की भूमि पर एक व्यक्ति 17 साथियों के साथ यह संकल्प लेता है— ‘मैं भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ समाज का संगठन करूंगा।’ संघ की प्रारंभिक प्रतिज्ञा में यह भावना स्पष्ट झलकती है— ‘मैं भारत को स्वतंत्र, समृद्ध और वैभवशाली राष्ट्र बनाने के लिए तन, मन, धन अर्पित करूंगा।’ उस समय यह न तो कोई राजनीतिक नारा था, न ही विरोध का आंदोलन, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का बीज था, जिसे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भारतीय एकता और आत्मसम्मान की भावना के रूप में बोया।
आज, सौ वर्ष बाद, वही बीज एक विराट वटवृक्ष बन चुका है—सेवा, संगठन, संस्कार और समाज परिवर्तन के व्यापक स्वरूप में। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने केवल समाज के संगठन की आवश्यकता नहीं बताई, बल्कि इसके साधन और पद्धति भी प्रस्तुत की। उन्होंने उपदेश या भाषण भर नहीं दिए, बल्कि एक सुसंगठित व्यवस्था ‘शाखा’ के रूप में ऐसा तंत्र विकसित किया, जिसके माध्यम से व्यक्ति और समाज—दोनों के चरित्र, अनुशासन और राष्ट्रभावना का निर्माण संभव हुआ।
यह शाखा केवल शारीरिक व्यायाम का स्थल नहीं थी, बल्कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण का वह मंच बनी, जहां व्यक्ति में अनुशासन, देशभक्ति और सेवा का संस्कार विकसित किया गया। तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस के शब्दों में— ‘जहां हिंदू, वहां शाखा; जहां शाखा, वहां विजय।’ उनके अनुसार शाखा महिलाओं की सुरक्षा और राष्ट्र की रक्षा की भावना की सजीव अभिव्यक्ति है। एक घंटे की यह शाखा समय के साथ व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण की प्रयोगशाला बन गई। आज, जब संगठन अपने शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर है, तो यह प्रेरणादायक है कि डॉ. हेडगेवार का स्वप्न अब केवल विचार नहीं, व्यवहार बन चुका है। संघ ने अपने शताब्दी संकल्प में कहा है—‘सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बनना है’, अर्थात संघ का विचार प्रत्येक गांव, बस्ती और व्यक्ति तक पहुंचे।
इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए बनाई गई कार्ययोजना अत्यंत व्यावहारिक और व्यापक है। हरियाणा में दिसंबर 2025 तक प्रत्येक घर तक संपर्क करने और फरवरी, 2026 तक हर मंडल (8–10 गांवों का समूह) तथा हर बस्ती (8–10 हजार आबादी) में ‘सम्मेलन’ आयोजित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह केवल आयोजन नहीं, बल्कि समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न है।
इस योजना के परिणामस्वरूप, विजयादशमी पर हरियाणा की 257 नगरीय इकाइयों में से 1443 शाखाओं में 1398 बस्तियों तथा 882 ग्रामीण मंडलों में से 862 में कार्यक्रम सम्पन्न हुए।
हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्य में, जहां किसान, सैनिक, खिलाड़ी और युवक-युवती ऊर्जा और समर्पण के प्रतीक हैं, वहां संघ का विचार समाज में नई चेतना और एकता का स्रोत बन रहा है। विजयादशमी के अवसर पर आयोजित शाखाएं, सम्मेलन और संवाद केवल उत्सव नहीं, बल्कि संघ के शताब्दी पथ पर आत्ममंथन और आत्मनिवेदन के अवसर हैं— भविष्य की योजनाओं की ठोस आधारभूमि भी यही हैं। विजयादशमी सदैव धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक रही है; आज यह विजय असंगठन पर संगठन की, उदासीनता पर जागरूकता की, और विघटन पर एकता, समरसता व समानता की है।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का दृष्टिकोण स्पष्ट था —राष्ट्र की शक्ति राजनीति से नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में संगठन और चरित्र निर्माण से आती है। उन्होंने न कभी पद चाहा, न सत्ता; उनका लक्ष्य था— संगठित समाज के माध्यम से सशक्त राष्ट्र का निर्माण। ‘पथ का अंतिम लक्ष्य नहीं है सिंहासन चढ़ते जाना, सब समाज को लिए साथ में आगे है बढ़ते जाना।’
यह पंक्तियां आज भी उतनी ही सार्थक हैं जितनी सौ वर्ष पूर्व थीं। समाज की सशक्तता उसकी एकता, समरसता, अनुशासन और आत्मविश्वास में निहित है। शाखा की व्यवस्था ने इन गुणों को समाज के भीतर गहराई तक रोपा है—यह व्यक्ति को ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर ले जाती है। जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने गांव, बस्ती या मोहल्ले की भलाई के लिए समय और प्रयास समर्पित करेगा, तभी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया सशक्त रूप लेगी।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का स्वप्न मात्र एक संगठन का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की सतत प्रक्रिया का था। आज जब युवा वर्ग सेवा, संगठन और समर्पण को जीवन का मंत्र बना रहा है, तब यह विश्वास दृढ़ होता है कि आने वाली शताब्दियां भारत की होंगी—ऐसे भारत की, जो आधुनिकता में अग्रणी और संस्कृति में रचा-बसा रहेगा।
डॉ. हेडगेवार का वाक्य आज सजीव सत्य बन चुका है—‘संगठित समाज ही सशक्त भारत का आधार है।’
लेखक आरएसएस के हरियाणा प्रांत प्रचार प्रमुख हैं।
