Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

भाई अब कोई तो रोक लो इन्हें

व्यंग्य/तिरछी नज़र
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

सहीराम

नहीं भाई नहीं! हम युद्ध रुकवाने की बात नहीं कर रहे हैं। हालांकि युद्ध भी खूब हो रहे हैं और वे रुकने भी चाहिए। रूस-यूक्रेन का युद्ध और इस्राइल-फलस्तीन का युद्ध तो जैसे बारहोंमासी युद्ध हो गए हैं। लेकिन इधर बीच में हमारा और पाकिस्तान का युद्ध-जैसा भी था छोटा-मोटा भी हो लिया और अब तो इस्राइल और ईरान का युद्ध भी शुरू हो गया। अगर इसमें अमेरिका कूद पड़ा तो फिर वह बरसों चलेगा। हम तो जी ठहरे महाभारत वाले! जैसे महाभारत अट्ठारह दिन में खत्म हो गया था, वैसे ही हम भी युद्ध लंबा नहीं खींचते, जल्दी समेट देते हैं। जैसे इकहत्तर का युद्ध हमने चौदह दिन में समेट दिया था और अभी वाला तो हमने चार दिन में ही समेट दिया।

Advertisement

लेकिन अमेरिका जब युद्ध लड़ता है तो वर्षों लड़ता है। फिर चाहे वह वियतनाम युद्ध रहा हो या खाड़ी के इराक-लीबिया वाले युद्ध रहे हों या फिर अफगानिस्तान का युद्ध रहा हो। खतरा तो लोग विश्वयुद्ध का भी बताने लगे हैं, पर हम युद्ध रुकवाने की तो बात ही नहीं कर रहे। उसके लिए आदमी को ट्रंप होना चाहिए, जो धमका-वमका कर युद्ध रुकवा दे और अपने लिए नोबल पुरस्कार जीतने का ग्राउंड तैयार कर ले।

खैर, हम तो अपने यहां हो रही दुर्घटनाओं को रुकवाने की गुहार लगा रहे हैं कि भाई कोई तो रोक दो इन्हें। एक दुर्घटना का दर्द कम नहीं होता कि दूसरी आ जाती है। बंगलुरु की भगदड़ में हुई मौतों का दर्द कम भी नहीं हुआ था कि अहमदाबाद में विमान हादसा हो गया। एक आदमी बचा और एक बची गीता। एक बची हुई गीता ने दौ सौ-ढाई सौ लोगों की मौत का गम भुलाने की बड़ी कोशिश की। वह गम अभी भुलाया भी नहीं गया था कि उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर गिर गया। केदारनाथ की यात्रा भी कुछ-कुछ कुंभ की सी यात्रा होती जा रही है। कभी वहां बाढ़ आ जाती है, कभी हेलीकॉप्टर गिर जाता है। इंसान नहीं बचते। बस गीता बच जाती है, मंदिर बच जाता है-देखा था न बाढ़ उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायी थी।

इधर पुल भी खूब गिर रहे हैं। कभी गुजरात में गिर जाता है, कभी महाराष्ट्र में गिर जाता है। बिहार के पुल बेचारे खामख्वाह बदनाम हैं। कह रहे होंगे कि यार हमें क्यों लालू बनाए दे रहे हो। रेलें तो जैसे पटरी पर चलने को ही तैयार नहीं। झट पटरी से उतर जाती हैं। बस भाग नहीं पाती और जिंदगी होती है कि ठहर जाती है। दुर्घटनाओं की दो खास बातें होती हैं। एक तो उनमें साजिश ढ़ूंढ़ी जाती है। दूसरे घटनास्थल के नेताओं के दौरे शुरू हो जाते हैं। न साजिशों की कहानियां रुकती हैं, न नेताओं के दौरे रुकते हैं और न ही दुर्घटनाएं रुकती हैं। भाई जैसे भी हो, कम से कम यह दुर्घटनाएं तो रुकनी ही चाहिए।

Advertisement
×