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ब्लैक फ्राइडे की सेल और वोट के खेल

तिरछी नज़र

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राकेश सोहम‍्

धनिया पढ़ी-लिखी जान पड़ती है। असल में वह पढ़ी-लिखी है नहीं। जिन घरों में बर्तन धोने का काम करती है वहीं से कुछ-कुछ सीख गई है। बोली, ‘अजी सुनते हो! ब्लैक फ्राइडे की सेल लगने वाली है। इस दिन सामान खरीदी सस्ती पड़ती है, रेखा दीदी कह रही थीं।’ धनीराम खाना खाने की तैयारी कर रहा था। झोपड़ी के बाहर हाथ धोते हुए बोला, ‘अरे छोड़ ये सब। बड़े-बड़े लोग, बड़ी-बड़ी बातें!’

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‘मैं अपने पैसों से जरूर कुछ खरीदूंगी। उमा बहन जी भी बोलीं कि कई सामान आधे दाम में मिल जाते हैं।’ धनिया ने धनीराम के सामने थाली में चावल रखते हुए कहा। धनीराम ने चावल के ढेर का छोटा सा पहाड़ बना लिया और शीर्ष पर अंगुली से छेद बना दिया। फिर बोला, ‘वोट पड़ते ही अपनी तो किस्मत ही ब्लैक हो गयी। फ्री की दारू बंद।’ धनिया ने आवेश में चावल के पहाड़ के शीर्ष से पतली दाल का पानी उड़ेल दिया। पानी पिघले लावे की तरह थाली में फ़ैल गया और दाल के इने-गिने दाने चावल में बिखर गए।

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‘देख धनिया, तू वोट डाल आई है न। अब देखना, हमें कोई पूछने नहीं आएगा। अगले चुनाव तक हमारा हर दिन उंह डे ब्लैक ही रहने वाला है समझी।’, खाना समाप्त करते हुए धनीराम ने समझाया। फिर थका-हारा एक ओर लुढ़क गया। लेकिन धनिया का मन नहीं माना। उसने रेखा दीदी को मिस्ड कॉल किया। उधर से फ़ौरन फोन आया, ‘क्यों री धनिया, कल छुट्टी लगाने वाली है क्या?’ धनिया तपाक से बोली, ‘अरे न दीदी, मैं काए को छुट्टी लगाएगी। आप बता रही थी? ब्लैक फ्राइडे सेल के बारे में ... इस दिन सामान सस्ता मिलता है .. है न दीदी। मैंने कुछ पैसे जोड़े हैं। आप खरीद देंगी मेरे लिए?’ उस तरफ से सहमति भरा जवाब सुनकर धनिया खुश हो गई। फिर सोचते हुए सामग्री बोलती गई। वह जैसे-जैसे सामग्री बोलती जाती, एक निराशा का भाव उसके चेहरे पर बढ़ता जा रहा था।

रेखा दीदी उधर से बोल रही थीं, ‘टीवी, फ्रिज, फर्नीचर, मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर जैसी वस्तुओं पर भारी छूट मिलती है, इन छोटी-मोटी खाने-पीने की चीजों पर नहीं मिलती।’ उधर से फ़ोन कट गया। धनिया निराश हो गई। वोट डालने के बाद अंगुली में लगे काले दाग को मिटाने की कोशिश करने लगी। धनीराम उनींदे बड़बड़ाया, ‘ऐ धन्नो, तू तो शुक्रवार के व्रत-उपवास में ध्यान लगा, बस। अब संतोषी माता ही हमारी भली करेंगी। जा सो जा।’

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