ऋषभ मिश्रा
प्लास्टिक न केवल इंसानों बल्कि प्रकृति और वन्य जीवों के लिए भी खतरनाक है, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। जिससे प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अहम पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है। दरअसल, देश में कचरा एकत्रित करने की कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है। इसमें विशेष रूप से शामिल है ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है। प्लास्टिक की बोतलें, जो कि काफी सहूलियतनुमा लगती हैं, वे भी शरीर और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक हैं।
दरअसल, प्लास्टिक का करोड़ों टन कूड़ा रोजाना समुद्र और खुले मैदानों आदि में फेंका जाता है, जिससे समुद्र में जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है। जमीन की उर्वरता निरंतर कम होती जा रही है। वहीं जहां-तहां फैला प्लास्टिक कचरा सीवर और नालियों को चोक करता है, जिससे बरसात में जलभराव का सामना करना पड़ता है। रोजाना सैकड़ों आवारा पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है तो वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है।
केंद्र सरकार के अभियान के बाद लोग पारम्परिक प्लास्टिक के विकल्प के रूप में अब नए प्रकार के प्लास्टिक को अधिक और व्यापक रूप से स्वीकार करने लगे हैं, जो कि पौधों से तैयार किया जाता है। मौजूदा पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक टिकाऊ, हल्के और सुविधा अनुकूल तो हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन, अपशिष्ट, समुद्री प्रदूषण और ख़राब वायु गुणवत्ता में इनकी बढ़ती भूमिका को देखते हुए इन्हें चरणबद्ध तरीके से समाप्त किये जाने की आवश्यकता है।
आज पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक का स्थान लेने का प्रमुख दावेदार बायोप्लास्टिक है। बायोप्लास्टिक पेट्रोलियम की बजाय अन्य जैविक सामग्रियों से बने प्लास्टिक को संदर्भित करता है। बायोप्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल प्लास्टिक सामग्री है। इसे मकई और गन्ने के पौधों से शुगर निकालकर तथा उसे पॉलिलैक्टिक एसिड यानी कि पीएलए में परिवर्तित करके प्राप्त किया जाता है। इसे सूक्ष्मजीवों के पॉली हाइड्रोक्सी एल्केनोएट्स यानी कि पीएचए से भी बनाया जा सकता है। पॉलिलैक्टिक एसिड प्लास्टिक का आमतौर पर खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है जबकि पॉली हाइड्रोक्सी एल्केनोएट्स का अक्सर चिकित्सा उपकरणों जैसे- टांके और कार्डियोवैस्कुलर पैच (हृदय संबंधी सर्जरी) में प्रयोग किया जाता है। बायोप्लास्टिक में एक समान आणविक संरचना और गुण होते हैं, लेकिन वे प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि पौधों पर आधारित स्टार्च और वनस्पति तेलों से प्राप्त होते हैं। ये ठीक से निपटाने पर अपघटित भी हो जाते हैं। बायोप्लास्टिक जलवायु के अनुकूल है और ये कार्बन उत्सर्जन में भागीदार भी नहीं होता है। बायोप्लास्टिक का वैश्विक उत्पादन 2021 में लगभग 24 लाख टन था और 2023 में इसके दोगुना होकर लगभग 52 लाख टन होने की उम्मीद है। इस मांग को देखते हुए कई खाद्य उद्योग, विशेष रूप से एकल-उपयोगकर्ता बायोप्लास्टिक का उपयोग शुरू कर रहे हैं।
वहीं बड़ी मात्रा में बायोप्लास्टिक का उत्पादन विश्वस्तर पर भूमि उपयोग को बदल सकता है। इससे वन क्षेत्रों की भूमि कृषि योग्य भूमि में बदल सकती है। जो कि अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में सहायक सिद्ध होगा। वर्ष 2021 में लगभग साढ़े चार लाख टन उत्पादन के साथ, पीएलए दुनिया में सबसे बड़े उत्पादित जैव अपघटीय पॉलिमर में से एक बन गया। लेकिन चुनौती लागत एवं उत्पादन की है।