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साइकिल का सम्मोहन

सुशील छौक्कर आज सुबह ‘आशीष जी’ ने फेसबुक पर एक पोस्ट साइकिल पर डाली। उसे पढ़कर मेरी दबी हुई इच्छा जाग-सी गई। दरअसल, मैं खुद भी कई साल से एक साइकिल खरीदना चाहता था। उसी से थोड़ा घूमना भी चाहता...
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सुशील छौक्कर

आज सुबह ‘आशीष जी’ ने फेसबुक पर एक पोस्ट साइकिल पर डाली। उसे पढ़कर मेरी दबी हुई इच्छा जाग-सी गई। दरअसल, मैं खुद भी कई साल से एक साइकिल खरीदना चाहता था। उसी से थोड़ा घूमना भी चाहता था। यह इच्छा कोरोना काल में पैदा हुई थी। आज की पोस्ट से पुरानी यादें भी फिल्म की तरह मेरी आंखों में चलने लगीं। शायद तब मैं कक्षा 9 या 10 में पढ़ता था। ट्रिगोनोमेट्री समझ नहीं आती थी। इसलिए ट्यूशन लगाना पड़ा। तब साइकिल की जरूरत महसूस हुई। पिताजी ने हमारी इच्छा स्वीकार ली तो खुशी हुई। दो एक दिन बाद ऑफिस से पिताजी के साथ उनके एक दोस्त आ गए, जो कि किसी साइकिल की दुकान वाले को जानते थे।

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उन्होंने आते ही पूछा कि एटलस की साइकिल लेगा या हीरो। मैंने तपाक से कहा ये वाली साइकिल नहीं लूंगा (वो साइकिल जो उन दिनों आम थी। अंकल लोग उसे ही लेते थे।) मैं तो बस ‘रेंजर’ साइकिल लूंगा। शायद रेंजर तब आई-आई थी। ‘रेंजर’ थोड़ी महंगी साइकिल थी। पिताजी की पॉकेट उसे खरीदने के लिए हां, न कहती होगी। अंकल जी ने मुझे ‘रेंजर’ के न जाने कितने नुकसान बताए लेकिन मैं टस से मस नहीं हुआ।

कुछ दिन यूं ही बीत गए। फिर एक दिन क्या देखता हूं पिताजी के साथ वो अंकल जी ‘रेंजर’ साइकिल लेकर आ गए। मैं खुशी से झूम उठा। कई दिनों तक तो मेरे जमीन पर पैर ही नहीं थे। खुशी-खुशी में फिर न जाने उसमें मैंने क्या-क्या लगवाया वो तो अब याद नहीं लेकिन ये याद है कि कुछ दिन बाद मैंने उसमें एक हूटर लगवाया था। जब भी रात को मैं ट्यूशन से घर आता था तो ट्यूशन सेंटर से लेकर घर तक वो बजता रहता था। मोहल्ले के लोग कहते थे कि हो न हो ये सुशील ही होगा। तब एक अलग ही टशन थी, जो कि अब बेहद ही खराब लगती है। कुछ दिनों पहले गली से ऐसे ही सायरन बजाती कोई साइकिल गुजरी तो मुझे अपनी यादें याद आने लगीं और मैं अपनी बेटी को इन यादों को सुनाने लगा। वह यह सब सुनकर कहने लगी, ‘अब पुरानी रट मत लगाने लगना कि मैंने साइकिल खरीदनी है।’ फिर मैं बोला, ‘मन तो अब भी होता है कि साइकिल खरीद ही लूं।’ ‘अपनी कॉलोनी देखी है। आपका दो दिन का शौक रहेगा। फिर वो यूं ही खड़ी रहा करेगी।’ बेटी बोली, और मैं चुप्पी मारकर रह गया। शायद अगले दिन या दो एक दिन के बाद रात को सायरन बजाती वही साइकिल गली से फिर गुजरी। उसे सुनते ही बेटी बोली, ‘पापाजी पापाजी देखो आपका बचपन जा रहा है।’ फिर एक इच्छा पुन: जाग्रत।

साभार : मेरी-तलाश डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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