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चपत और बचत उत्सव के बीच

तिरछी नज़र
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यूं बचत कभी भी उत्सव नहीं रही। क्योंकि बचत हमेशा पेट काटकर ही हुई है। इससे घर में क्लेश मचता रहा है कि हमारी खुशियों की तो किसी को परवाह ही नहीं- बस बचत की जा रही है।

उत्सवों के इस सीजन में एक नया उत्सव और आ गया है जी। वैसे ही जैसे घर में एक नया सदस्य और आ जाता है। उत्सवों के सीजन में यह नया उत्सव आकर ऐसे ही जुड़ गया है, जैसे खुशियों में एक खुशी और जुड़ जाती है। यह नया उत्सव है- बचत उत्सव। यूं बचत कभी भी उत्सव नहीं रही। क्योंकि बचत हमेशा पेट काटकर ही हुई है। इससे घर में क्लेश मचता रहा है कि हमारी खुशियों की तो किसी को परवाह ही नहीं- बस बचत की जा रही है।

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घर में सबको पता होता है कि बचत न हो तो गृहलक्ष्मी नए गहने बनवा सकती है, बच्चे नए कपड़े-जूते खरीद सकते हैं बल्कि इधर तो मोबाइल जैसे नए-नए गजट भी खरीदे जा सकते हैं। लेकिन बचत करने वालों को घर खरीदना होता है, बच्चों की शिक्षा का ख्याल करना पड़ता है, उनके शादी-ब्याह की सोचनी पड़ती है। बचत खुले हाथ से नहीं होती, हमेशा हाथ रोक कर ही होती रही है। इसलिए इस बचत के चक्कर में बाजार गए बीवी-बच्चे किलसते रहते हैं। पर अब बचत उत्सव बनी है, तो उसकी समझ में नहीं आ रहा कि वह सेलिब्रेट कैसे करे।

लेकिन उत्सव तो सेलिब्रेट करने के लिए होता है न जी। सो सेलिब्रेट करो। लेकिन कैसे करें, यही समझ में नहीं आ रहा। समझ में ही नहीं आ रहा कि ढाई लाख करोड़ का जो भारी-भरकम तोहफा मिला है, उसका क्या करें। वैसे ही जैसे किसान को जमीन का भारी-भरकम मुआवजा मिलता है तो उसकी समझ में नहीं आता कि क्या करें। यह तो वैसे ही हो गया जी जैसे किसी की लाॅटरी लग गयी हो और उसकी समझ में नहीं आ रहा कि इसका करूं क्या। अब बैंकों की बचत को तो कोई विजय माल्या, कोई नीरव मोदी उड़ा ले जाने को स्वतंत्र होता है। पर इस बचत का क्या करें। विजय माल्या और नीरव मोदी भी इस मामले में तो हाथ ही खड़े कर सकते हैं कि इसमें तो हम भी क्या करें। मजबूर हैं। सो इसका जिम्मा प्रधानमंत्री ने उठाया। वे राष्ट्रीय प्रसारण के लिए टीवी पर आए। लोग डरे। डरने की आदत जो ठहरी। अरे भैया वे तो तब आए थे, जब नोटबंदी की थी, वे तो तब आए थे, जब कोरोना के वक्त लाॅकडाउन की घोषणा की थी। लेकिन प्रधानमंत्री ने आते ही बचत उत्सव की घोषणा कर दी।

इससे साबित हुआ कि प्रधानमंत्री जब टीवी पर आते हैं तो बस डराने वाली खबर लेकर ही नहीं आते। कभी-कभी खुशखबरी लेकर भी आते हैं। उन्होंने सिर्फ बचत उत्सव की घोषणा ही नहीं की, बल्कि उसे सेलिब्रेट करने का आह्वान भी कर दिया। बोले- उत्सव आया है, जाओ खुशियां मनाओ, टीवी-फ्रिज खरीदो, कार खरीदो, घूमने-फिरने जाओ और होटलों में रहो, खाओ-पीओ। पर फिर ऐसे ही किसी ने पूछ लिया- जी महीने भर का राशन भरवा लें क्या?

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