कई बार बाजार में बहुत अच्छी किस्म के फल दिखाई पड़ जाते हैं। हम फौरन वे फल खरीदकर ले आते हैं। घर पर आकर पता लगता है कि घर पर पहले ही कुछ फल रखे हैं और अगर उन्हें आज ही इस्तेमाल नहीं किया गया तो वे कल तक खराब हो जाएंगे। घर पर पहले से रखे पुराने फल इस्तेमाल कर लेते हैं। लेकिन ताजा फलों को देखकर जो उत्साह मन में भर गया था वो ठंडा पड़ गया क्योंकि पहले से रखे हुए पुराने फल कुछ बासी हो जाने के कारण उतने स्वादिष्ट नहीं लगे।
अगले दिन जब पिछले दिन खरीदे हुए आकर्षक व रसीले फलों के सेवन करने की बारी आई तो कुछ ढीले और दागी भी हो जाने के कारण उनका स्वाद भी थोड़ा बदल चुका था। प्रायः ऐसा ही होता रहता है जीवन में। प्रायः पुरानी चीजों अथवा खाद्य पदार्थों को बचाने के लोभ अथवा चक्कर में नई चीजों को भी पुराना करके इस्तेमाल करने को अभिशप्त होते हैं हम। इससे बचने का उपाय यही है कि हम ज्यादा चीजें न खरीदें। अन्यथा यह दुष्चक्र कभी नहीं टूटेगा।
प्रायः यही स्थिति हमारी आदतों अथवा व्यवहार के विषय में होती है। हम बहुत कुछ नया और अच्छा सीखते रहते हैं लेकिन जब उसको जीवन में प्रयुक्त अथवा क्रियान्वयन करने का अवसर आता है तो हम प्रायः नई सीखी हुई अच्छी बातों की उपेक्षा करके पुरानी बातों को ही अपने व्यवहार में लाते रहते हैं। ऐसा करने के हमारे पास तर्क भी कम नहीं होते। मान लीजिए कि हमने अभी हाल ही में सीखा है कि हमें हर परिस्थिति में केवल सच बोलना है। जब सचमुच सच बोलने का अवसर आता है तो हम ये सोचकर या कहकर सच बोलने अथवा पूरा सच बोलने से पीछे हट जाते हैं कि लोग इतने अच्छे नहीं हैं कि उनके सामने सच बोला जाए या आज सच बोलने का समय नहीं रहा या सच बोलने वाले को लोग मूर्ख समझते हैं।
प्रायः हम कहते अथवा सोचते हैं कि जब हमारा अच्छे लोगों से वास्ता पड़ेगा तभी हम अच्छा व्यवहार करेंगे अथवा अच्छी आदतों को व्यवहार में लाएंगे। हरेक व्यक्ति के सामने अच्छाई का प्रदर्शन करने का क्या फायदा? वास्तव में हम जो करते हैं वो दूसरों के लिए नहीं अपितु वह स्वयं हमारे लिए होता है। नि:संदेह नई सीखी हुई अच्छी बातों को व्यवहार में लाकर हम न केवल पुरानी गलत आदतों से मुक्त होकर अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक प्रभावशाली व आकर्षक बना सकते हैं अपितु संपर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों का स्नेह व सहयोग भी प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब हम जो भी अच्छी बातें सीखें उन्हें उसी समय से अपने व्यवहार में लाना प्रारंभ कर दें।
अच्छी चीजों की एक विशेषता यह होती है कि खराब चीजों के साथ मिलकर वे भी खराब हो जाती हैं। अच्छी चीजें हों अथवा अच्छी आदतें उन्हें खराब चीजों अथवा गलत आदतों के साथ कभी नहीं मिलाना चाहिए या व्यवहार में लाना चाहिए अन्यथा उनके विकृत अथवा दूषित होने में देर नहीं लगेगी। दरअसल, अच्छी बातों को भी शीघ्र व्यवहार में न लाने पर कालांतर वे भी नकारात्मक विचारों के कचरे में दबकर रह जाती हैं, जिससे उन्हें जानने व सीखने का कोई लाभ नहीं मिलता। सही मायनों में नई बातों को सीखने का क्या लाभ यदि हम उन्हें अपने जीवन में लागू ही न कर पाएं? नई बातें जानने व सीखने में हम बहुत रुचि लेते हैं और उसके लिए हर प्रकार का त्याग भी करते हैं। यदि सीखी हुई बातों से लाभान्वित नहीं होंगे तो इस त्याग व प्रयास का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। जहां तक बुरी आदतों अथवा व्यवहार का त्याग करने की बात है इससे किसी प्रकार की हानि की संभावना नहीं होती।
दरअसल, यदि हम अच्छी व बुरी दोनों प्रकार की आदतों को व्यवहार में लाते रहें तो भी बात नहीं बनेगी। बुरी आदतों अथवा व्यवहार का खमियाजा तो हमें भुगतना ही पड़ेगा। यदि हम किसी आयोजन में जाते हैं तो अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर ही जाते हैं। यदि हमने बहुत महंगे व अच्छे कपड़े पहने हैं लेकिन एक या दो चीजें ठीक नहीं हैं तो शेष महंगे अच्छे कपड़ों का भी अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। अतः हमारे सारे कपड़े ही नहीं बल्कि जूते, टाई व अन्य सभी वस्तुएं भी उन्हीं के अनुरूप होनी चाहिए। हमें समग्र रूप से सब कुछ ठीक से करना होगा। हमें हर व्यक्ति से अच्छा व्यवहार करना होगा। हमें हर जगह व हर समय अच्छा प्रदर्शन करना होगा तभी बात बनेगी अन्यथा कुछ अच्छी बातें भी बेमानी होकर रह जाएंगी।