न्याय के मार्ग में बाधक न बन पाए बेंच हंटिंग
न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। अदालतों में मामलों के आवंटन के लिए पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत और रैंडम प्रणाली अपनाई जानी चाहिए, जिससे मानवीय हस्तक्षेप कम हो और पक्षपात की संभावना नगण्य हो जाए।
कानूनी दुनिया में ‘बेंच हंटिंग’ शब्द इन दिनों सुर्खियों में है, खासकर 16 वकीलों को बार काउंसिल द्वारा मिले नोटिस के बाद। यह केवल एक कानूनी शब्दावली नहीं, बल्कि हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता पर एक चिंता पैदा करती है। यह न्याय को प्रभावित करने और अपनी सुविधानुसार परिणाम प्राप्त करने का एक सीधा प्रयास है, जो न्यायिक नैतिकता के खिलाफ है। बेंच हंटिंग न केवल न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को खतरे में डालती है, बल्कि आम जनता के न्याय प्रणाली में विश्वास को भी गहरी चोट पहुंचाती है। यह प्रथा न्याय के मार्ग को बाधित करती है।
सरल शब्दों में, बेंच हंटिंग का मतलब है किसी खास मामले की सुनवाई के लिए अपनी पसंद के जज या पीठ (बेंच) की तलाश करना। वकील या उनके मुवक्किल ऐसे जज के सामने अपना मामला ले जाने की कोशिश करते हैं जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे उनके पक्ष में फैसला दे सकते हैं, या ऐसे जज से बचने की कोशिश करते हैं जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे उनके खिलाफ जा सकते हैं। यह अक्सर कानूनी दांव-पेंच का हिस्सा बन जाता है, जहां मामले को सूचीबद्ध कराने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे कि बार-बार मामले को वापस लेना और फिर से दायर करना, या फिर मामले को इस तरह से प्रस्तुत करना कि वह एक विशिष्ट बेंच के सामने आ जाए। यह न्यायपालिका के ‘रैंडम एलोकेशन’ सिद्धांत का सीधा उल्लंघन है, जिसके तहत मामलों को बेतरतीब ढंग से न्यायाधीशों को सौंपा जाना चाहिए। यह न्यायिक प्रक्रिया का एक अनुचित और अनैतिक हेरफेर है, जो न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
बेंच हंटिंग पर बढ़ती चर्चा के मुख्य कारणों में से एक डिजिटलीकरण और सूचना की सुलभता है। अदालती कार्यवाही और न्यायाधीशों के पिछले फैसलों से जुड़ी जानकारी अब आसानी से उपलब्ध है, जिससे वकीलों के लिए न्यायाधीशों के रुझानों को समझना आसान हो गया है। हालांकि, यह पारदर्शिता के लिए अच्छा है, लेकिन इस जानकारी का दुरुपयोग बेंच हंटिंग के रूप में भी हो सकता है। न्यायपालिका पर बढ़ता दबाव और कानूनी पेशे में तीव्र प्रतिस्पर्धा भी एक अहम कारक है। मुवक्किलों से अनुकूल परिणाम हासिल करने के दबाव में, कुछ वकील अनैतिक तरीकों का सहारा लेने पर मजबूर हो रहे हैं। सोशल मीडिया और मीडिया कवरेज ने इस मुद्दे को घर-घर तक पहुंचाया है। उच्च-प्रोफाइल मामलों में बेंच हंटिंग के आरोपों पर त्वरित बहस और विश्लेषण होता है, जिससे यह मुद्दा तेजी से फैलता है और आम जनता के बीच कानूनी जागरूकता को भी बढ़ाता है।
भारत में ‘बेंच हंटिंग’ के आरोप कई बार सामने आए हैं, हालांकि किसी विशेष मामले में इसे सीधे तौर पर साबित करना अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है। जस्टिस चेलामेश्वर बनाम भारत संघ (2018), हालांकि यह मामला सीधे तौर पर बेंच हंटिंग का नहीं था, लेकिन इसने न्यायपालिका के भीतर ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ की शक्ति और उसके संभावित दुरुपयोग पर एक महत्वपूर्ण चर्चा छेड़ दी थी। चेन्नई वाटर केस के मामले में, एक पार्टी ने लगातार अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं ताकि मामला एक विशेष न्यायाधीश के सामने आ सके। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्पष्ट रूप से बेंच हंटिंग माना और इसकी कड़ी आलोचना की। प्रशांत भूषण बनाम भारत संघ मामले में इस अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान, ऐसी चर्चाएं उठी थीं कि प्रशांत भूषण अपनी पसंद की बेंच के सामने मामले की सुनवाई करवाना चाहते थे। कोर्ट ने इस पर सख़्त रुख अपनाया और स्पष्ट किया कि कोई भी वकील या पक्षकार अपनी पसंद की बेंच नहीं चुन सकता। एक अन्य दिलचस्प घटना तब हुई जब एक वकील ने बार-बार एक ही मामले को अलग-अलग तारीखों पर सूचीबद्ध करवाने की कोशिश की, जिस पर एक तत्कालीन न्यायमूर्ति ने मज़ाकिया अंदाज़ में टिप्पणी की थी, ‘वकील साहब, क्या आप अपनी पसंद की बेंच का ‘स्वयंवर’ कर रहे हैं?’
विभिन्न देशों की न्यायिक प्रणालियों से हम भारत की न्यायपालिका में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण सबक ले सकते हैं। अमेरिकी न्याय प्रणाली में कंप्यूटरीकृत आवंटन प्रणाली और हितों के टकराव को रोकने के लिए सख्त नियम बेंच हंटिंग को कम करते हैं, जिससे हमें स्वचालित प्रणालियों और न्यायाधीशों की स्व-निवृत्ति के महत्व का पता चलता है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) न्यायाधीशों के लिए पूर्वाग्रह की आशंका होने पर खुद को अलग करने को अनिवार्य करता है, जो नैतिक प्रशिक्षण और सख्त निगरानी की आवश्यकता पर जोर देता है। वहीं, कनाडा का मॉडल निष्पक्ष आवंटन और न्यायिक आचरण पर कड़ी निगरानी के माध्यम से न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखता है, जो एक मजबूत निगरानी तंत्र के महत्व को दर्शाता है। इन मॉडलों को अपनाकर भारत अपनी न्यायिक प्रक्रिया में ईमानदारी और निष्पक्षता को मजबूत कर सकता है।
न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। अदालतों में मामलों के आवंटन के लिए पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत और रैंडम प्रणाली अपनाई जानी चाहिए, जिससे मानवीय हस्तक्षेप कम हो और पक्षपात की संभावना नगण्य हो जाए। काउंसिल को बेंच हंटिंग में शामिल वकीलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। वकीलों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे न्याय प्रक्रिया का सम्मान करें।
जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय मानता है, यह न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता और विश्वसनीयता को गंभीर रूप से कमजोर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि न्यायाधीशों का आवंटन मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार है और इसमें किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप अस्वीकार्य है।
लेखक कुरुक्षेत्र विवि के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। ये उनके विचार निजी हैं।