स्थिति कुछ यों बन आई है कि दिल्ली की नाक के नीचे मास्क पहने ऊंची नाक वाले लोग, नाक कटाई से निडर बने हुए हैं। निर्विकार भाव से नाक ढांके बैठे हैं। मास्क द्वारा नाक को सुरक्षित रखने का यह कारगर उपाय है।
खबर है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में ठंड के बढ़ने का अनुमान है, जबकि हवा की गुणवत्ता गंभीर है। डॉक्टरों ने मास्क पहनने की सलाह दी है। अब ठंड की बात निकली है तो जरा दूर तक जाएगी। ठंड के मौसम में ठंड की बात न हो तो अच्छा नहीं लगेगा। अब देखिए न, हमें ठंड लगती है, उन्हें नहीं लगती! किसी को बहुत ठंड लगती है, किसी को बिल्कुल नहीं लगती! किसी किसी को बिना बात के ठंड लगने लगती है और किसी को हर बात पर ठंड लगती है। मानो ठंड का लगना और न लगना, निजी मामला है। इसका मौसम से कोई लेना-देना नहीं है।
जनकलाल अपने घर के सामने कच्छा-बनियान में घूम रहे थे। पारा लुढ़कने की खबर सुनकर रजाई में दुबक गए। गो कि उन्हें मौसम से नहीं, ख़बरों से ठंड लगती है। अधिकतर लोग बाढ़ की खबर से डूबने-उतराने लगते हैं। खबरिया चैनलों के जादू से अल्प वर्षा और गर्मी से बेहाल लोग बाढ़ पीड़ितों-सा व्यवहार करने लगते हैं! सुना है खबरिया चैनलों से तंग आकर एक ढाई किलो के हाथ वाले प्रसिद्ध अभिनेता ने घर पहुंचने के बाद कहा, ‘अब सबसे तेज खबरिया चैनलों के भरोसे जीने-मरने तक का धरम नहीं रहा।’
हाल ही में एक प्रदेश में चुनावी सरगर्मी के चलते दिल्ली भी गरमाई हुई थी। सो ठंड की दरकार थी। शुक्र है पारा लुढ़क रहा है, लेकिन हवा पर सवार धुआं भी दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में घूमने लगा है। स्थिति कुछ यों बन आई है कि दिल्ली की नाक के नीचे मास्क पहने ऊंची नाक वाले लोग, नाक कटाई से निडर बने हुए हैं। निर्विकार भाव से नाक ढांके बैठे हैं। मास्क द्वारा नाक को सुरक्षित रखने का यह कारगर उपाय है। वे धुएं को दिल्ली की नियति मान चुके हैं। ये तो हर साल का रोना है। इसके लिए रोना क्या और हंसना क्या?
मारे ठंड के ढंके-मुंदे नेता ने सड़क पर एक अधनंगे को देखा। वातानुकूलित कार का शीशा नीचे सरकाया और पूछा, ‘तुम्हें ठंड नहीं लगती?’ वह हाथ फैलाकर बोला, ‘भूख लगती है।’ उन्होंने दया दिखाई, ‘अरे! हमने कंबल बंटवाए थे?’ गरीब ने हाथ जोड़े, ‘उन्होंने फोटू खींची फिर वापस ले लिए।’ नेता जी अंजान बन गए, ‘ठंड पाओ। अबकी चुनाव फिर से कंबल देंगे।’ बहरहाल, ठंड की बात चली है तो बता दूं, मुझे खाना खाने के बाद ठंड लगती है। और गुनगुनाते हुए रजाई के हवाले हो लेता हूं- मत ढूंढ़ो मुझे इस दुनिया की तन्हाई में, ठंड बहुत है, मैं यही हूं, अपनी रजाई में।

