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सावधान! ज़िंदगी जोखिमों के अधीन है

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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अशोक गौतम

वे अजब के निवेशक हैं। सिप में हर महीने पांच सौ रुपए निवेश करते हैं और बीस हजार की टेंशन लेते हैं।

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कल फिर बाजार में हाहाकार मची तो वे टेंशनियाते हुए आए। आते वे मेरे गले लग फूट फूट कर रोने लगे। पर मेरे लिए ये सामान्य बात थी। होगा उनका दुख उनके लिए हिमालय सा। क्योंकि जबसे मैं उनके गले टू गले कांटेक्ट में आया हूं, हर्ष अथवा विषाद में उनके मेरे गले लग कर रोने की आदत तब की है। बड़े इमोशनल हैं न! जरा सा भी खुशी गम सहन नहीं कर सकते। इधर हमें देखिए! खुशी में भी अपने गले लग कर खुश होना पड़ता है और दुख में तो अपने गले लग रोना ही पड़ता है।

अब क्या हो गया होगा इनको? इससे पहले कि मैं जनाब से उनके फफकने का कारण पूछता, वे बच्चे की तरह सिसकते बोले, ‘यार! बाजार में फिर हाहाकार मच गया! ये बाजार है कि हाहाकार का अड्डा? मेरे सिप में लगाए फिर डूब गए,’ मेरे गले लगते ही वे हरियाने लगे।

‘देखो बंधु! बाजार और प्यार में निवेश जोखिमों के अधीन होता है। खासकर आज के वक्त में। बावजूद इसके जीने से लेकर मरने तक हम सबको निवेश कर जोखिम लेना ही पड़ता है। जोखिम नहीं लोगे तो फायदा कैसे होगा? देखो, तुमने अपने कुंआरेपन को निवेश कर शादी करने का जोखिम लिया था?’

‘हां, तो?’

‘नहीं लेते तो क्या होता?’

‘कुंआरा ही रह जाता।’

‘उसका निवेश का पुरस्कार तुम्हें पल-पल नहीं मिल रहा है क्या? रोज उठकर भाभी को चाय बनाते हो। फिर पूरे घर में झाड़ू लगाते हो। एक तो घर साफ हो जाता है और दूसरे इस बहाने व्यायाम भी हो जाता है। मतलब आम के आम, छिलकों के दाम। अगर तुम विवाह करने का जोखिम न उठाते तो क्या ऐसे फिट रह पाते?

मैंने आगे कहा, ‘देखो बंधु! अपने को बाजार से क्या! वह हाहाकार करे या मनुहार! मेरे लिए तो बाजार उस दिन चमक उठता है जिस दिन आलू सौ के दस किलो होते हैं और घीया पचास के बदले दस रुपये किलो। जिस दिन सब्जी वाला मेरे बिन कहे दस रुपये की सब्जी में हरी मिर्च धनिया डाल देता है मुझे तो उस दिन बाजार गुलजार लगता है। मेरे लिए तो बाजार तो उस दिन हाहाकार कर उठता है जिस दिन आलू तीस रुपये किलो होते हैं।’

मैंने कहा कि मेरे लिए तो बाजार उस दिन गुलजार होता है जिस दिन बैंक से ब्याज लिए कर्ज पर ब्याज रेट कम होता है। जो पैदा होने से लेकर मरने तक कर्जों-किस्तों में डूबा रहे और जाते-जाते बेटे के नाम किस्तें छोड़ जाए उसके लिए बाजार के इस हाहाकार, गुलजार से क्या लेना-देना।

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