शारी बलूच को पाकिस्तान की पहली महिला फिदायीन कह सकते हैं। ‘ब्रह्मश’ उसका उपनाम था। तुरबत स्थित अल्लामा इकबाल ओपन यूनिवर्सिटी से एमफिल। केच ज़िले के एक सेकेंडरी स्कूल में शिक्षिका। पेशा पढ़ाई का मगर तीन शिक्षकों की हत्या की है शारी बलूच ने। दो बच्चों की मां, पिता तुरबत यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रार रह चुके और पति डेन्टिस्ट, अभिजात्य पृष्ठभूमि वाली शारी बलूच को किस तरह के हालात ने मानव बम बनने को मज़बूर किया? आतंक के आकाओं ने क्या समझाया था कि चीनी भाषा पढ़ाने वालों को मारोगी, जन्नतनशीं हो जाओगी, या चीनी परियोजनाओं और चीनी भाषा से इन सभी को नफ़रत थी? चीन और पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियां इन सवालों के उत्तर भी ढूंढें।
शारी बलूच पिछले छह महीने से स्कूल नहीं जा रही थी, उसने शासन द्वारा कारण बताओ नोटिस का जवाब नहीं दिया था। चीनी एजंेसियां सीसीटीवी फुटेज को देखकर हैरान हैं कि पाकिस्तान रेंजर्स की मौजूदगी में बुर्का पहने महिला कराची यूनिवर्सिटी कैंपस में कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट के गेट पर पहुंची दिखती है। वहां एक सफेद वैन के रुकते ही ब्लास्ट होता है, और उसके टारगेट में से जिं़दा कोई बचता नहीं। उसने ऐसा भयावह क़दम उठाया क्यों? 26 अप्रैल 2022 को इस भयावह विस्फोट में जो तीन चीनी मरे, उनमें कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट के डायरेक्टर हुआंग कुईफिंग, लेक्चरर तिंग मुफांग, एक चीनी नागरिक चन सई बताये गये हैं। मृतकों में पाकिस्तानी मूल का वैन ड्राइवर भी है। जो चंद लोग घायल हुए हैं, उनमें चीनी मूल के वांग यूछिन का नाम यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बताया है। पाकिस्तान में इस घटना के बाद, उन जगहों पर सुरक्षा चौकस की गई है, जहां चीनी भाषा पढ़ाई जाती है। इसमें इस्लामाबाद स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ माडर्न लैंग्वेज भी है, जहां करीब 500 छात्र मंदारिन पढ़ते हैं। 1970 में पहली बार पाकिस्तान में चीनी भाषा पढ़ाये जाने की शुरुआत हुई थी, जब मात्र 30 छात्र मंदारिन पढ़ रहे थे। आज की तारीख़ में यह संख्या 53 हज़ार से अधिक है।
पहले लगता था कि इस्लामाबाद-रावलपिंडी, कराची, फैसलाबाद, क्वेटा, पेशावर जैसे बड़े शहरों के शिक्षा केंद्रों में मंदारिन की पढ़ाई हो रही है। मगर नहीं, चीनी भाषा की दीक्षा दूरस्थ इलाक़ों में होने लगी है, जिसकी मूल वजह कैंपस सेलेक्शन और अच्छे पैकेज वाले रोज़गार मिलने की उम्मीद है। 2002 मेें गिल्गिट में काराकोरम इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (केआईयू) की स्थापना हुई। केआईयू के हुंजा, दिआमर, ग़िज़र जैसे दूरवर्ती इलाकों में बने कैंपस में यदि मंदारिन की पढ़ाई हो रही है, तो उसके मायने यह हैं कि पेइचिंग, अंग्रेज़ी के बाद चीनी भाषा को पाकिस्तानी शिक्षा का विकल्प बनाने की परियोजना पर खामोशी से काम कर रहा है। इस्लामाबाद स्थित चीनी दूतावास का स्लोगन भी है, ‘समृद्धि चाहिए, तो चीनी पढ़ो।’ इन्होंने साल 2016 में पाकिस्तानी छात्रों के लिए चीनी विश्वविद्यालयों में पांच हज़ार स्कॉलरशिप का ऐलान किया था। एक अकादमिक सत्र में इतने सारे पाकिस्तानी छात्र बुलाये जाएं, यह भी एक रिकार्ड है। फरवरी, 2018 में एक ख़बर ज़ेरे बहस हुई थी कि क्या मंदारिन पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा है? उसकी वजह कैबिनेट द्वारा पास एक प्रस्ताव था, जिसमें कहा गया था कि सीपीईसी को आगे बढ़ाने के लिए मंदारिन जानना ज़रूरी है, ताकि भाषाई बाधा उपस्थित न हो।
साल 2013 में 60 अरब डॉलर वाले चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर (सीपीईसी) की बुनियाद रखी गई थी। पाकिस्तान में चीनी राजदूत याओ चिंग ने 16 फरवरी 2022 को इमरान ख़ान के पेइचिंग दौरे के समय बयान दिया था कि सीपीईसी प्रोजेक्ट में अबतक 75 हज़ार पाकिस्तानी युवाओं को नौकरियां दी जा चुकी हैं, इनमें ज़्यादातर लोग चीनी भाषा बोल-समझ लेते हैं। पाकिस्तान योजना आयोग का मानना है कि अगले 15 वर्षों में सीपीईसी परियोजना के तहत सात से आठ लाख पाक युवाओं को नौकरियां मिल जाएंगी। दिलचस्प ख़बर यह भी है कि सुदूर इलाक़ों में पाक सेना के लोग भी मंदारिन सीखने के वास्ते स्थानीय लोगों को प्रोमोट करने लगे हैं। पाकिस्तान के अख़बार द न्यूज़ ने कुछ समय पहले टिप्पणी की थी कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कभी अंग्रेज़ी सीखने पर ज़ोर दिया था, ठीक उसी पैटर्न पर पाकिस्तान में मंदारिन सिखाने की मुहिम चल पड़ी है।
चीनी भाषा के विस्तार में कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट की बड़ी भूमिका रही है। यह संस्था चीनी शिक्षा मंत्रालय का परोक्ष अंग है, जिसे दुनिया को दिखाने के वास्ते एनजीओ का रूप दिया गया है। इसका संचालन हानपान (चाइनीज लैंग्वेज कौंसिल इंटरनेशनल) करता है। मार्च 2018 तक चीन की उप-प्रधानमंत्री लिउ यांगदोंग इसकी अध्यक्ष रहीं। अप्रैल, 2007 में चीनी पोलित ब्यूरो के सदस्य ली छांगचुन जब ‘हानपान’ आए, तब उन्होंने ‘ऑन द रिकॉर्ड’ माना था कि कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट का उद्देश्य चीन के सांस्कृतिक वैभव को विस्तार देने के साथ प्रोपेगेंडा रणनीति को भी आगे बढ़ाना है।
चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर (सीपीईसी) और चीनी भाषा का प्रतिकार पाकिस्तान में होता रहा है, उसकी गवाह माज़ी में हुई कई घटनाएं हैं। 14 जुलाई, 2021 को ख़ैबर पख्तूनख्वा की दासू जलविद्युत परियोजना के लिए जा रही शटल बस पर अतिवादियों ने हमला किया, जिसमें 12 लोग मारे गये। मरनेवालों में नौ चीनी थे। पाक विदेश मंत्रालय ने इसे दुर्घटना व मशीनी गड़बड़ी बताया, मगर चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे हमला करार दिया। अगस्त 2021 में ग्वादर पोर्ट पर हमला हुआ, जिसमें दो बच्चे मारे गये थे। इससे पहले 13 मई, 2017 को ग्वादर में सड़क निर्माण में लगे दस लोगों को बलूच अतिवादियों ने गोलियों से भून डाला था। साल 2018 में कराची पुलिस ने चीनी वाणिज्य दूतावास पर एक आतंकी हमले को नाकाम किया था। वर्ष 2020 में भी पाकिस्तानी स्टॉक एक्सचेंज पर हमला हुआ था, जहां सर्वाधिक कारोबार चीन का होता रहा है। तब चार हमलावर मारे गये थे। चीन, पाकिस्तान में वैसी किसी भी आतंकी घटना को बीएलए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) से जोड़ता है, जो उसके लोगों को निशाने पर लेकर घटित होती है।
कराची यूनिवर्सिटी कैंपस में ब्लास्ट के तुरंत बाद ग्लोबल टाइम्स ने जानकारी दी कि यह सब बीएलए के मज़ीद ब्रिगेड का किया -धरा है। ‘मज़ीद ब्रिगेड को भारत से संरक्षण मिला हुआ है’, ऐसी थ्योरी गढ़ने के बाद, ग्लोबल टाइम्स ने यह मान लिया है कि उसके पीछे नई दिल्ली का दिमाग़ है। बीएलए की मज़ीद ब्रिगेड की स्थापना 2011 मंे हुई थी। द न्यूज़ इंटरनेशनल लिखता है कि महिला फिदायीन शारी बलूच दो साल पहले मज़ीद ब्रिगेड के संपर्क में आई थी। यों, कराची कांड को पाकिस्तानी अखबार भारत से चिपका नहीं रहे, मगर ग्लोबल टाइम्स जिस तरह के दुष्प्रचार में लगा है, उसे काउंटर करने की हमें ज़रूरत है।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक हैं।