मुकुल व्यास
दुनिया का इंजन मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधनों से ही चलता है। लेकिन जीवाश्म ईंधन ग्लोबल वार्मिंग में अपनी भूमिका से कुख्यात हो चुके हैं। इन ईंधनों के जलने पर बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है। ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में जमा हो कर गर्मी को पकड़ लेती हैं। इससे ग्लोबल वार्मिंग उत्पन्न होती है। ग्लोबल वार्मिंग से विश्व का औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। वार्मिंग के प्रभावों से दुनिया को बचाने के लिए जीवाश्म ईंधनों के विकल्प खोजना जरूरी है। वैज्ञानिकों को ऐसे ईंधनों की तलाश है जो ऊर्जा उत्पादन के साथ पर्यावरण को भी स्वच्छ रखें। हॉलैंड के वैज्ञानिकों का कहना है कि एक बैक्टीरिया के उपयोग से दोनों चीजें हासिल की जा सकती हैं।
फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन में हॉलैंड की रैडबाउड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने कहा है कि एक ऐसा बैक्टीरिया विकसित करना संभव है जो मीथेन का उपयोग करे और बिजली का उत्पादन करे। कैंडिडेटस मीथेनोपेरेडेंस नामक यह बैक्टीरिया विकसित होने के लिए मीथेन का उपयोग करता है और तालाब जैसे स्वच्छ जल के स्रोतों में पाया जाता है। हॉलैंड में यह बैक्टीरिया ऐसी जगहों पर पाया जाता है जहां सतह और भूजल नाइट्रोजन से प्रदूषित हैं। इस बैक्टीरिया को नाइट्रेट को विखंडित करने के लिए मीथेन की जरूरत पड़ती है। रिसर्चर शुरू में सूक्ष्म जीवाणुओं में होने वाली प्रक्रियाओं के बारे में जानना चाहते थे। उनके मन में एक जिज्ञासा यह जानने की भी थी कि क्या इस जीवाणु का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है।
इस अध्ययन की मुख्य लेखक कोर्नेलिया वेल्ट का कहना है कि यह ऊर्जा क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस समय बायोगैस संयंत्रों में जीवाणुओं द्वारा मीथेन गैस का उत्पादन किया जाता है। इस गैस के जलने से टर्बाइन चलता है और बिजली बनती है। लेकिन आधी से भी कम बायोगैस ही बिजली में बदल पाती है। हम यह देखना चाहते थे कि क्या सूक्ष्म जीवाणुओं के प्रयोग से इस क्षमता को बढ़ा सकते हैं। हॉलैंड के अन्य रिसर्चरों ने पिछले अध्ययनों में बताया था कि एनामॉक्स नामक बैक्टीरिया से ऊर्जा उत्पादन करना संभव है। ये जीवाणु इस प्रक्रिया के लिए मीथेन के स्थान पर अमोनियम का प्रयोग करते हैं। इन जीवाणुओं से बिजली उत्पादन की प्रक्रिया बुनियादी रूप से एक जैसी है। एक रिसर्चर ने कहा कि हम एक बैटरी जैसी चीज बनाते हैं जिसमें दो टर्मिनल होते हैं। एक टर्मिनल जैविक और दूसरा रासायनिक होता है। उसने बताया कि इस तरीके से हम 31 प्रतिशत मीथेन को बिजली में बदलने में कामयाब रहे। रिसर्चर अपने सिस्टम में सुधार करके मीथेन से बिजली उत्पादन की क्षमता बढ़ाएंगे।
पारंपरिक ईंधनों के विकल्प की तलाश में कुछ वैज्ञानिकों का ध्यान सूक्ष्म शैवाल पर भी गया है। इन सूक्ष्म जीवों को माइक्रोएल्गी भी कहा जाता है। इन एक कोशिका वाले जीवों को कोरी आंख से नहीं देखा जा सकता। चीन में हजारों वर्षों से दवाओं के रूप में सूक्ष्म शैवाल का प्रयोग हो रहा है। प्राचीन चीनियों की धारणा थी कि इन सूक्ष्म जीवों से तैयार दवा हर तरह की बीमारी ठीक कर सकती है। सूक्ष्म शैवाल की एक लाख प्रजातियां हैं। हर प्रजाति में अलग विशिष्ट गुण हैं। इस विविधता की वजह से सूक्ष्म शैवाल पृथ्वी पर हर वातावरण में पनप जाते हैं। ये जीव ज्यादातर स्वच्छ जल और समुद्रों में पाए जाते हैं। सूक्ष्म शैवाल की अधिकांश प्रजातियां हरी होती हैं लेकिन लाल और भूरे सूक्ष्म शैवाल भी पाए जाते हैं। इसकी अलग-अलग किस्मों में उत्पन्न होने वाले जैव-रासायनिक यौगिक भी अलग-अलग किस्म के होते हैं और इनमें कुछ बहुत उपयोगी होते हैं।
पिछले दशकों में हुए शोध से पता चला कि सूक्ष्म शैवाल में जैविक ईंधन उत्पन्न करने की अपार क्षमता है। ध्यान रहे कि जैविक ईंधन वानस्पतिक पदार्थों या जानवरों के अपशिष्ट से तैयार किया जाता है। शोधकर्ता सूक्ष्म शैवाल की ऐसी प्रजातियां तलाश रहे हैं जो बड़े पैमाने पर जैविक ईंधन के उत्पादन के लिए उपयुक्त हों। सूक्ष्म शैवाल की खूबी यह है कि ये सूरज की रोशनी और कार्बन डाइऑक्साइड को कई तरह के जैव-रासायनिक यौगिकों में बदल सकते हैं। जीव-जंतुओं के वर्ग में रखे जाने के बावजूद ये पौधों की तरह क्रिया करके ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। यह चक्र कार्बन को पकड़ने वाले सिस्टम की तरह काम करता है जिसमें वायुमंडल की नुकसानदायक कार्बन डाइऑक्साइड उपयोगी ऑक्सीजन में परिवर्तित की जाती है। सूक्ष्म शैवाल कोशिकाओं के अंदर पाए जाने वाले दूसरे यौगिकों का भी उत्पादन करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अपनी इन खूबियों की वजह से सूक्ष्म शैवाल ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का मुकाबला कर सकते हैं।
सूक्ष्म शैवाल से मिलने वाले उत्पादों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। ये श्रेणियां हैं प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और लिपिड (वसा)। लेकिन शोध से पता चला कि इन सूक्ष्म जीवों से दूसरे भी मूल्यवान जैव-रासायनिक यौगिक मिलते हैं जिनका विभिन्न उद्योगों में प्रयोग होता है। उदाहरण के तौर पर सूक्ष्म शैवाल केरोटिनॉयड यौगिक उत्पन्न करते हैं। इन जीवों से मिलने वाला एक और उपयोगी यौगिक पोलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड है। ये यौगिक लिपिड परिवार के हिस्से हैं और कोशिकाओं की ऊर्जा की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इन यौगिकों से डायबिटीज और अर्थराइटिस के इलाज में मदद मिलती है। सूक्ष्म शैवाल से बनने वाला जैविक ईंधन जीवाश्म ईंधन के सबसे प्रबल विकल्पों में गिना जाता है। तेल का नवीकरण नहीं किया जा सकता लेकिन जैविक ईंधन ऊर्जा का नवीकरणीय और संधारणीय स्रोत है। सूक्ष्म शैवाल खुद जैविक ईंधन नहीं बनाते। वे वसा का उत्पादन करते हैं। एक विशेष प्रक्रिया से इस वसा से जैविक ईंधन तैयार किया जाता है। इस समूची प्रक्रिया की लागत बहुत ज्यादा बैठती है। इसी वजह से जैविक ईंधन तेल और गैस उद्योग से स्पर्धा नहीं कर पा रहा है। लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भविष्य में नई तकनीकों के विकास से जैविक ईंधन जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता कम कर सकता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।