अशोक उपाध्याय
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सत्ता में वापसी की लेकिन पंजाब के नतीजों ने राजनीतिक समीकरणों पर फिर से गौर करने पर बाध्य कर दिया है। आम आदमी पार्टी को पंजाब में मिली अपार सफलता ने देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अस्तित्व को ही चुनौती दे दी है। अब गुजरात में आप भाजपा को चुनौती देने के लिये लगातार ताल ठोंक रही है। दिल्ली विधानसभा में आप पहले से ही काबिज है और पंजाब की जीत ने उसका मनोबल बढ़ा दिया है।
ताजा विधानसभा चुनावों के बाद से गुजरात की राजनीति गरमा गई है जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। विधानसभा में सीटों के लिहाज से आम आदमी पार्टी का इस राज्य में अभी कोई वजूद नहीं है लेकिन जिस तरह से उसके नेता अरविंद केजरीवाल पंजाब में मिली आशातीत सफलता को भुनाने के लिये गुजरात का लगातार दौरा कर रहे हैं उससे साफ है कि वह वहां पर भी अपनी पार्टी को कांग्रेस के विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है और इस सदी के शुरू में जब वह पहली बार वहां मुख्यमंत्री बने तब से लेकर अब तक भाजपा एक भी चुनाव नहीं हारी है। नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीत चुकी है और लोकसभा चुनावों में भी वह गुजरात में अव्वल साबित हुई है। चुनाव के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल के बाद नरेंद्र मोदी भी गुजरात पहुंचे और उन्होंने वहां ताबड़तोड़ तीन रोड शो किये व जनता का समर्थन बनाये रखने का नये सिरे से संदेश दिया।
गुजरात में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है और अन्य दलों के साथ समीकरण साधने का निरंतर प्रयास कर रही है। गुजरात की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से पिछड़ी जाति और पाटीदार समुदाय के नेता के रूप में हार्दिक पटेल का नया नाम उभरा है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हार्दिक पटेल ने 2015 में पाटीदार समुदाय के हितों की लड़ाई तेज की और राजनीतिक क्षितिज पर उनका नाम तेजी से उभरा। उन्होंने भाजपा के लिये नई चुनौतियां खड़ी कीं और इसका फायदा उठाकर कांग्रेस ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। कांग्रेस हाईकमान द्वारा हार्दिक पटेल को तवज्जो देने से गुजरात में बाकी कांग्रेस नेता खासे नाराज हैं। गुजरात के एक और बड़े नेता अहमद पटेल गांधी परिवार के काफी करीबी रहे लेकिन अब उनके निधन के बाद राज्य में कांग्रेस को संगठित रखने में अड़चने आ रही हैं।
कांग्रेस हार्दिक पटेल के बूते गुजरात में अपनी स्थिति को मजबूत करने को लेकर आश्वस्त थी लेकिन उन्होंने कुछ ही दिन पहले भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार की तारीफ करके सबको चौंका दिया। अब अटकलें लगने लगी हैं कि वह कांग्रेस का दामन छोड़कर चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम सकते हैं। ऐसे में कयास लगने लगे हैं कि वहां भी ले-देकर पंजाब वाली स्थिति न हो जाये।
पंजाब की राजनीति ने भाजपा के लिये गुजरात में चुनौती खड़ी की है कि अगर वहां कांग्रेस पहले से ज्यादा कमजोर हुई तो उसका किसे लाभ होगा। आप सभी राष्ट्रीय दलों के लिये चुनौती बनना चाहता है और अगर उसके नारों पर गौर करें तो हकीकत को समझने में ज्यादा आसानी होगी। आप का हर नेता अपने जनसंबोधन से पहले और अंत में यह नारा अवश्य लगाता है, इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय। दरअसल आप देश की बड़ी कैडर वाली पार्टियों वामपंथी दलों और भाजपा के नारों को ही भुनाने लगी है। यह कुछ ऐसे है- किनारा तुम्हारा, वोट हमारा, जीत हमारी। एक और छोटा-सा उदाहरण लें जैसे कि काेरोना संकट काल में मोदी सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज देना शुरू किया। सब राशन की दुकान से मुफ्त अनाज ले सकते थे और यह योजना काफी लोकप्रिय हुई। अरविंद केजरीवाल हमेशा से नरेंद्र मोदी की योजनाओं को अपने नाम करने की नई-नई तरकीबें निकालने में माहिर रहे हैं। उन्होंने घोषणा कर डाली कि वह सबको घर पर ही मुफ्त राशन मुहैया करा देंगे। फिर अनुमति नहीं मिलने पर उसका ठीकरा भी केंद्र सरकार पर फोड़ना शुरू कर दिया। पंजाब जीतने के बाद आप ने तमाम लोकलुभावन योजनाओं को तुरंत लागू करके संदेश दिया है कि जीतने की स्थिति में वह बाकी राज्यों में मुफ़्त बिजली और घर पर ही राशन उपलब्ध करा देगी। दिल्ली की तरह मोहल्ला क्लीनिक खोलेगी और सरकारी स्कूलों की क्षमता बढ़ा देगी। दरअसल वह इन योजनाओं को नये माॅडल के रूप में पेश करके जनमानस को पक्ष में करने की कवायद कर रही है।
गुजरात में आम आदमी पार्टी अपने समीकरण बना रही है लेकिन भाजपा की जड़ें वहां बहुत मजबूत रही हैं। यह सही है कि नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद से भाजपा को वहां पर राज्य स्तर का बड़ा नेता अभी तक नहीं मिल पाया है और अब भी पार्टी नरेंद्र मोदी के बूते ही टिकी हुई है। गोधरा कांड के कारण आलोचनाएं झेलने के बाद नरेंद्र मोदी ने ‘गुजरात गौरव’ की नई राजनीति करके अपनी मुश्किलें आसान कर दीं। उन्होंने विकास के साथ-साथ महिलाओं को प्राथमिकता देने की राजनीति का नया प्रयोग किया, उनके लिये अनेक योजनाएं बनाईं और गुपचुप तरीके से हर बार उनका वोट बटोरते रहे। बाकी दल धर्म और जातपात की राजनीति में ही उलझे रहे और नरेंद्र मोदी जेंडर के आधार पर राजनीति को नई दिशा देते चले गये। बाद में बाकी राज्यों ने इसका अनुसरण किया लेकिन तब तक जनलोकप्रियता की दौड़ में नरेंद्र मोदी आगे निकल चुके थे। अरविंद केजरीवाल जेंडर आधारित राजनीति पर दो कदम आगे दिखना चाहते हैं। उन्होंने दिल्ली में तो सरकारी बसों में महिलाओं के लिये यात्रा मुफ्त कर रखी है। बहरहाल, सबकी निगाहें गुजरात के चुनावों पर टिकी हैं और पूरा विपक्ष अपनी ताकत झोंकने लगा है। गुजरात नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा का मजबूत गढ़ है और इसे भेदने के प्रयास किस हद तक सफल होते हैं या फिर यह अभेद्य दुर्ग बना रहेगा, यह तो वक्त ही बता पाएगा।
लेखक यूनीवार्ता के संपादक रहे हैं।