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अपने ज़ुबिन के लिए न्याय चाहता है असम

ज़ुबिन गर्ग के रूप में असम की आवाज, जो खामोश हो गई है, लेकिन उनके गीत कानों में गूंजते रहेंगे। असमिया संगीत जगत के गायक सुपरस्टार का आम लोगों के साथ अनोखा जुड़ाव था। वह शासन की बेबाक आलोचना के...

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ज़ुबिन गर्ग के रूप में असम की आवाज, जो खामोश हो गई है, लेकिन उनके गीत कानों में गूंजते रहेंगे। असमिया संगीत जगत के गायक सुपरस्टार का आम लोगों के साथ अनोखा जुड़ाव था। वह शासन की बेबाक आलोचना के लिए विख्यात थे। युवा पीढ़ी रूढ़िवाद को धत्ता बताने के ज़ुबिन के अंदाज़ से सम्मोहित थी।

असम की राजधानी गुवाहाटी से कुछ ही दूरी पर एक गांव में, जो सांस्कृतिक प्रतीक बन गए 21 वर्षीय युवा ज़ुबिन गर्ग का पैतृक ग्राम है, जब उसकी चिता को रोते-सुबकते लोगों के विराट समूह के बीच अग्नि भेंट किया गया तो आसमान 21 राइफल की सलामी फायरिंग से गूंज उठा। इससे पूर्व भूपेन हज़ारिका को 2021 में ऐसा राजकीय सम्मान मिला था।

ज़ुबिन के लिए तीन दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया गया। जैसे-जैसे आग की लपटें बढ़ती गईं, लाखों प्रशंसक उनकी ‘मायाबिनी’ के सामूहिक गीत गाते रहे। इस गीत का सार उनके कई अन्य गीतों की तरह न केवल इस गायक सुपरस्टार के शब्दों का जादू लिए था, बल्कि असमिया और गैर-असमिया की पीढ़ियों के साथ उनके अनोखे जुड़ाव को दर्शाता है। गीत के बोल हैं ‘इस जादुई रात के बीचोंबीच, मैं दूर से तुम्हारा चेहरा पहचान सकता हूं। तुम चुपचाप मेरे दिल के किसी कोने में समा गए हो, मेरे मुरझाए मन पर ओस की एक ताज़ा बूंद की तरह, चमकती धूप के जैसे, वर्ना तो, मैं बरसों तक तूफ़ान के भंवर में रहा, यूं अंधेरे से मेरी दोस्ती बहुत पहले हो चुकी थी।’

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किशोरावस्था में ही ज़ुबीन अपनी पहली एल्बम के साथ असमिया संगीत जगत पर छा गए। हज़ारिका जैसे महान कलाकार की लोक एवं शास्त्रीय संगीत के सम्मिश्रण वाली मौलिक बंदिशें सुनने के आदी श्रोताओं के लिए ज़ुबीन की आवाज़ ताज़गी लिए रही। वो नियम का एक अपवाद थे। उन्होंने गायकी के किसी नियम का पालन नहीं किया, अपने बनाए संगीत, पटकथा पर पेशकारी से जीते-जी किंवदंती बन गए। ज़रा सोचिए, करीब 40 भाषाओं में 35,000 गाने- उनमें एक था फिल्म गैंगस्टर का ‘या अली’, जिसने उन्हें बॉलीवुड में प्रसिद्धि दिलाई, ऐसी जगह जिसके लिए उन्होंने घर आना छोड़ दिया था। उम्र सिर्फ़ 52 साल रही।

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अपने विशिष्ट अंदाज़ में उन्होंने अपना समर्पित प्रशंसक वर्ग अर्जित कर लिया था। खासकर युवाओं के बीच, जो रूढ़िवाद और पूर्वाग्रहों को धत्ता बताने के ज़ुबिन के तरीके से सम्मोहित थी, उनके जोशीलेपन और आमजन में प्रचलित शब्दों के प्रयोग से भी, राजनीति और राजनेताओं का मखौल बनाने से, बच्चों के साथ मंच पर गाते-गाते उनकी तरह नाचने पर, मदद मांगने वालों के प्रति उदारता से, जानवरों एवं पेड़ों के प्रति प्रेम पर और बड़ा सितारा होने के बावजूद लोगों के लिए उनकी सुलभता से वे मंत्रमुग्ध थे। इन सबके बीच, असमिया संस्कृति और लोगों के प्रति उनका प्रेम चमकता रहा, जिसका वे जमकर बचाव करते और खुलकर प्रदर्शन करते।

असम से बाहर के कई मीडिया टिप्पणीकारों और सांस्कृतिक विशेषज्ञों के लिए, न केवल गुवाहाटी में बल्कि असम के गांवों-कस्बों की सड़कों पर उनके गीत गुनगुनाते, रोते या आंसू थामने की कोशिश करते लोगों के विशाल सागर को देखना हैरानीजनक रहा व पूछने लगे—उनके अविश्वसनीय आकर्षण की व्याख्या क्या है? अपने लोगों के दिलो-जान में इस कदर कैसे समा गए?

इसके अनेक जवाब हैं और शायद कई साल बाद भी हम इसका कोई एक सटीक जवाब न दे पाएं। उनका जादू धर्म, जातीयता, भाषा व क्षेत्र से परे था, जिनका प्रयोग कई राजनेता लोगों को बांटने और घृणा व सांप्रदायिकता भड़काने को करते रहे।

ज़ुबीन, उनके गीतों, संगीत और संदेशों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया से, असम के लोगों का उनको श्रद्धांजलि देने को इतनी बड़ी तादाद में उमड़ना पुष्टि करता है कि विभाजन और विखंडन के प्रयासों के बावजूद उनके संगीत ने असम को कलह के वक्त भी बांधे रखा, उस पर मरहम का काम किया। उनके बोल युवाओं और मध्यम उम्र के लोगों व वृद्धों के दिलों को छूते, वे सब जो अनिश्चित और असुरक्षित समय से जूझ रहे, अपने भविष्य को लेकर चिंतित, हिंसा-हानि, सशस्त्र आंदोलनों व सत्ता से परेशान हैं, वे सब चीज़ें जिन्होंने उनकी भूमि और समाज को बर्बाद कर रखा है। ज़ुबिन ने अपने बोलों से उनकी आलोचना करने में कसर नहीं छोड़ी। जब सशस्त्र गुट उल्फा (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम) ने असम के बिहू उत्सव समारोहों में हिंदी गीतों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, तो उन्होंने इसकी निंदा की व कहा कि वे ऐसी सांस्कृतिक दबंगई से विचलित नहीं होंगे।

वे राजनेताओं, मंत्रियों का मज़ाक उड़ाते, और एक बार मुख्यमंत्री तक से पूछा, जिन्होंने ज़ुबिन की तरह मंच पर छलांग लगाकर चढ़ते हुए तस्वीरें छपवाईं, ‘आप मेरी नकल क्यों कर रहे हैं?’ उनके फॉलाेअर्स को उनका यह मनमौजी, कटाक्ष युक्त हास्य और बेबाक रंग-ढंग खूब जंचा। इंस्टाग्राम पर 1.28 मिलियन फॉलोअर्स और लोगों के दिलोदिमाग पर किसी राजनेता से कहीं अधिक पकड़ के साथ, उनका रुतबा बहुत बड़ा था। हालांकि राजनीति में नहीं थे तथापि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध कर अपना दृष्टिकोण जाहिर किया और समाजवाद में अपने विश्वास को व्यक्त करते रहते। बताया कि कैसे उन्होंने कभी भाजपा का समर्थन किया था क्योंकि तब लोग असम में ‘पोरीबोर्तन’ चाहते थे। ऐसा नहीं था कि उनमें कमियां नहीं थीं, कुछ कमजोरियां जिन्हें खुद खुलकर स्वीकार किया।

मेरे (लेखक के) चचेरे भाई, ‘डी’कॉम भुयान, जो ज़ुबीन के साथ काम करते थे और अच्छी तरह जानते थे, उनकी अदम्य इच्छाशक्ति के बारे में लिखते हैं ‘वे अथक थे। उनके शरीर पर नील पड़ जाते थे, उनका कार्यक्रमों का दबाव बेहद था, फिर भी तत्परता मानो दिव्य जैसी। जहां अधिकांश लोग थकावट या व्यावहारिकता का हवाला देकर हार मान लेते वहीं ज़ुबीन ऐसा नहीं करते। वे तूफ़ान में जीते थे। ऐसी ही एक नींद-विहीन शूटिंग के बाद, वे मेरी ओर मुड़े, उनकी आंखें चमक रही थीं, और मुझ से कहा—‘डी’कॉम, जीवन अभ्यास के लिए नहीं बना। आप बस इससे बार-बार खेलते हैं, जब तक यह समझ न आए’।

ज़ुबीन का स्वास्थ्य इतिहास यदि इसे भयावह नहीं तो भी आश्चर्यजनक तो ज़रूर बनाता है कि पूर्वोत्तर के इस एकमात्र सुपरस्टार को तथाकथित पूर्वोत्तर भारत महोत्सव के लिए सिंगापुर की अपनी यात्रा के दौरान खुले समुद्र में न सिर्फ तैरने के लिए जाने दिया बल्कि उकसाया भी गया। सिंगापुर पुलिस उनके डूबने की परिस्थितियों की जांच कर रही है। असम में भी पुलिस जांच के आदेश दिए गए हैं। सरकार ने मुख्य आयोजक श्यामकानु महंत और ‘उनसे जुड़े किसी संगठन को असम में किसी भी समारोह या उत्सव के आयोजन से रोकने’ को काली सूची में डालने की घोषणा की है।

जुबिन के दाह संस्कार के दौरान जिन शख्सियतों की छवियां गौरतलब रहीं - उनमें ज़ुबीन की पत्नी गरिमा का फूट-फूट कर रोना, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का मुश्किल से आंसू रोक पाना शामिल था। ज़ुबिन की मौत हरेक असमिया परिवार के लिए निजी क्षति है। तमाम राजनेता-सत्ताधारी हो या विपक्षी - बिना किसी द्वेष के एक साथ दाह संस्कार में मौजूद थे। अब शासन के सामने बड़ी चुनौती है : ज़ुबीन के लिए न्याय की मांग कर रहे हज़ारों लोगों की बढ़ती नाराज़गी से कैसे निबटा जाए?

असम की अधीर आवाज़, जो खामोश हो गई है, लेकिन उसके गीत-संगीत बजते रहेंगे।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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