अनूप भटनागर
यह कैसा इत्तेफाक है कि अदालतों के फैसलों पर अमल नहीं करने के कारण सरकारी अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही करने वाली शीर्ष अदालत महत्वपूर्ण मामलों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने से सहमति व्यक्त करने के अपने ही करीब चार साल पुराने फैसले पर अभी तक अमल नहीं करा सकी है। जबकि शीर्ष अदालत के 2018 के इस फैसले पर कई उच्च न्यायालय सफलतापूर्वक अमल कर रहे हैं। महत्वपूर्ण मुकदमों की सीधी कार्यवाही प्रसारित करने वाले फैसले पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अभी तक अमल नहीं किये जाने की वजह भी स्पष्ट नहीं हैं।
संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मुकदमों के सीधे प्रसारण संबंधी 26 सितंबर, 2018 के पीठ के फैसले पर अमल के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विचारक केएन गोविन्दाचार्य, पूर्व अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल इंदिरा जयसिंह और एक्टिविस्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कई बार मामलों के सीधे प्रसारण का मुद्दा उठाया। लेकिन इस मामले में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण पर अपनी सहमति व्यक्त करते हुए अपने फैसले में कहा था कि इस तरह का खुलापन सूरज की रोशनी जैसा होगा, जो सर्वश्रेष्ठ कीटनाशक है।
हां, इस फैसले के बाद इतना जरूर हुआ कि वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के एक आवेदन पर शीर्ष अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को नोटिस जारी किया। यहीं नहीं, न्यायालय की ई-कमेटी ने जून, 2021 में न्यायिक कार्यवाही में अधिक पारदर्शिता लाने के मकसद से सीधा प्रसारण और न्यायालय की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के बारे में नियमों का मसौदा जारी करके सभी हितधारकों से सुझाव मांगे थे।
नियमों के इस मसौदे में स्पष्ट किया गया था कि वैवाहिक विवाद, बलात्कार के अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत हो रही कार्यवाही और महिलाओं के प्रति हिंसा के मामलों को सीधे प्रसारण के दायरे से बाहर रखा जायेगा।
इस समय गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और पटना उच्च न्यायालय में महत्वपूर्ण मुकदमों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण हो रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह की मान्यता के लिए दायर याचिकाओं की सुनवाई के सीधे प्रसारण के लिए आवेदन दाखिल हुआ था, लेकिन केन्द्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह न तो किसी मौलिक अधिकार के हनन का मामला है और न ही यह राष्ट्रीय महत्व का कोई विषय है। लेकिन, महत्वपूर्ण मामलों के सीधे प्रसारण की हिमायत करने वाला उच्चतम न्यायालय ही अपने फैसले पर अभी तक अमल नहीं कर सका है।
इस संबंध में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि हाल ही में संपन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में अदालत के फैसलों पर लंबे समय तक अमल नहीं होने का मामला उठाया था। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि अदालतों के आदेशों पर अधिकारी अमल नहीं करते हैं, जिसकी वजह से न्यायालय की अवमानना के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है।
उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के बाद पहली बार अयोध्या में विवादास्पद बाबरी मस्जिद-श्रीराम जन्म भूमि विवाद पर हो रही सुनवाई का सीधा प्रसारण करने या फिर इसकी ऑडियो रिकार्डिंग की व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया था। लेकिन समय के अभाव की वजह से आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविन्दाचार्य का यह अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिए पूरी तरह व्यवस्था होने तक प्रथम चरण पर अमल के लिए पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इंटरनेट के माध्यम से न्यायालय परिसर में ही एक निर्धारित क्षेत्र में सीधे प्रसारण की संभावनाएं तलाशने का विकल्प उपलब्ध रहेगा।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में किसी मुकदमे की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करना या वीडियो रिकॉर्डिंग की व्यवस्था करना या इसकी अनुमति देना न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया था। लेकिन एक सवाल यह भी है कि सीधे प्रसारण या ऑडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति देने की न्यायालय की व्यवस्था के बाद न्यायिक कार्यवाही में पारदर्शिता के पहलू का क्या होगा।
न्यायपालिका के काम में बेहतर पारदर्शिता लाने संबंधी सितंबर, 2018 के फैसले के बाद न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबड़े प्रधान न्यायाधीश बने। वर्तमान प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण भी उच्चतम न्यायालय की इस ऐतिहासिक व्यवस्था पर अभी तक प्रभावशाली तरीके से अमल नहीं कर सके। न्यायमूर्ति एनवी रमण का कार्यकाल 26 अगस्त को समाप्त हो रहा है। इन चार महीने में संभव है कि शीर्ष अदालत सीधे प्रसारण के मामले में कोई ठोस कदम उठा ले। लेकिन, अभी तो ऐसा लगता है कि देशवासियों का किसी अन्य संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के किसी ऐसे मुकदमे का इंतजार करना होगा, जिसकी सुनवाई संविधान पीठ कर रही हो।