कृत्रिम बारिश योजना में खाद्य संकट के जोखिम
दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बारिश करवाने की योजना जहां फसलों व खेती के लिए नुकसानदेह है वहीं इसके नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की भी आशंका कम नहीं। इसमें खाद्य सुरक्षा के लिए भी जोखिम हैं। अव्यावहारिक योजनाओं के बजाय प्रदूषण नियंत्रण के वैज्ञानिक समाधान अपनाने चाहिए।
दिवाली उत्सव पर प्रतिवर्ष की जाने वाली आतिशबाज़ी से गंभीर वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसे कम करने के लिए इस साल दिल्ली सरकार ने दिवाली के अगले दिन कृत्रिम बारिश दके जरिये मौसम का मिज़ाज बदलने की योजना बनाई है, जिससे खरीफ फसलों की कटाई-गहाई और रबी की बुआई पर असर पड़ने की आशंका है, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा साबित हो सकती है।
पिछले छह दशक से देश की खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार किसानों से धान और गेहूं खरीदती है, जिसमें लगभग 80 प्रतिशत योगदान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास के राज्यों का रहा है, जहां अभी अक्तूबर-नवंबर महीने में खरीफ फसलों—धान, ज्वार, बाजरा, मूंग, अरहर, कपास आदि की कटाई-गहाई और रबी फसलों —गेहूं, जौ, चना, सरसों, मसूर, आलू आदि की बुआई चल रही है, जिसके लिए बिना बारिश वाला सूखा मौसम अति आवश्यक है।
निस्संदेह, जब किसान खरीफ फसलों की उपज समेटने और रबी की बुआई में व्यस्त हैं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास के राज्यों की कृषि उपज विपणन मंडियां अनाज से भरी हुई हैं, तब दिल्ली सरकार द्वारा दिवाली के अगले दिन कृत्रिम बारिश करवाने की योजना अव्यावहारिक है जिससे किसान का नुकसान भी हो सकता है। ऐसे समय की जाने वाली कृत्रिम बारिश के चलतेे किसानों की खरीफ फसल उपज और मंडियों में अनाज की बर्बादी तथा बुआई की गई फसलों के खराब होने की संभावना रहेगी।
उल्लेखनीय है कि सामान्य प्राकृतिक वर्षा तब होती है जब सूरज की गर्मी से नम हवा गर्म और हल्की होकर ऊपर उठती है। ऊपर उठी हुई हवा का दबाव कम हो जाता है और आसमान में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह ठंडी हो जाती है। जब इस हवा में सघनता बढ़ जाती है तो वर्षा की बूंदें बड़ी होकर हवा में देर तक नहीं ठहर पातीं और बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं। लेकिन कृत्रिम वर्षा करने के लिए सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग करके कृत्रिम बादल बनाकर वर्षा करवाई जाती है।
मानव-निर्मित गतिविधियों के जरिये कृत्रिम बादल बनाने और फिर उनसे वर्षा कराने की क्रिया को ‘क्लाउड सीडिंग’ कहा जाता है। हालांकि, क्लाउड सीडिंग के कई फायदे हैं, लेकिन मौसम परिवर्तन की यह तकनीक पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। इसके नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों में जल और वायु प्रदूषण, पारिस्थितिक तंत्र का विघटन, असामान्य मौसम परिवर्तन और मिट्टी व पानी में रसायनों का जमाव शामिल है। इसके उपयोग से सिल्वर आयोडाइड जैसे हानिकारक रसायन हवा, पानी और मिट्टी में मिल सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं, और पड़ोसी क्षेत्रों में वर्षा में कमी या अत्यधिक वर्षा व बाढ़ जैसे दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। कृत्रिम वर्षा से प्राकृतिक मौसम चक्र बाधित हो सकता है, जिससे अप्रत्याशित सूखा या अति वर्षा की स्थिति बन सकती है और किसानों व पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। मौसम के संतुलन में बदलाव के दीर्घकालिक अवांछित प्रभाव हो सकते हैं, जिन्हें अभी मौसम वैज्ञानिक पूरी तरह समझ नहीं पाए।
राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण लगभग पूरे वर्ष बना रहता है, लेकिन सर्दी के महीनों (अक्तूबर-मार्च) में मानसून की वापसी से वायु गति और तापमान कम होने के कारण पृथ्वी की सतह पर वायु प्रदूषण का घनत्व बढ़ जाता है। पराली जलाने के अलावा, दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए अन्य कारक—वाहनों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण कार्य से उठने वाली धूल आदि मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। प्रदूषण में पराली जलाने की महीनेवार हिस्सेदारी अलग-अलग होती है। नवंबर में यह लगभग 30 प्रतिशत और बाकी महीनों में मात्र 0–5 प्रतिशत तक सीमित रहती है। अतः वायु प्रदूषण के लिए वाहन, उद्योग और निर्माण कार्य जैसे स्थानीय कारक अधिक जिम्मेदार हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष सर्वोच्च अदालत ने पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को जेल और भारी जुर्माना लगाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त निर्देश जारी किए हैं। जबकि दिल्ली सरकार की मांग के अनुरूप दिल्लीवासियों को दिवाली पर पटाखे जलाने की अनुमति देना वायु प्रदूषण रोकने की सरकारी नीति में विरोधाभास प्रतीत होता है।
निस्संदेह, वायु प्रदूषण पर्यावरण और मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, लेकिन वायु प्रदूषण रोकथाम के अब तक के सरकारी प्रयास कम व्यावहारिक और नाकाफी साबित हुए हैं। इसी कड़ी में दिवाली के अगले दिन दिल्ली सरकार की कृत्रिम बारिश की योजना अव्यावहारिक ही नहीं, बल्कि देश की कृषि और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हो सकती है। राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु कोरे प्रचार पर सरकारी धन की बर्बादी करने वाली योजनाओं के बजाय सरकार को वैज्ञानिक समाधान अपनाने की आवश्यकता है—जैसे कंबाइन हार्वेस्टर पर ‘स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम’ अनिवार्य करना ताकि पराली खेत में दबाकर जैविक खाद बनाई जा सके, और वाहन तथा उद्योगों के प्रदूषण को प्रभावी रूप से नियंत्रित करना।